उद्यमिता क्या है अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं, महत्व

उद्यमिता एक सामान्य परिचय (udyamita kya hai)

उद्यमशीलता के अवसरों की समझ क्या है  किसी भी देश के आर्थिक विकास में उद्यमी का महत्वपूर्ण योगदान होता है उद्यमी के द्वारा ही देश के संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है। उद्यमी देश के संसाधनों का उपयोग करने की जोखिम उठाते है एवं नव सृजन का कार्य सम्पन्न करते हैं। वर्तमान समय में उद्यमी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में उभर कर आ रहे है। आज के युवा बिल गेट्स, मुकेश, अंबानी, मार्क जकरबर्ग, नारायण मूर्ति कुमार मंगलम बिडला जैसे उद्यमियों को अपना आदर्श मानते है एवं यही कारण है कि अमेरिका की ऑपिनियन रिसर्च काउन्सिल के द्वारा किये गये सर्वेक्षण में 18 से 24 वर्ष की मध्य आयु के युवा वर्ग में से 58 प्रतिशत ने अपना व्यवसाय प्रारम्भ करने की इच्छा व्यक्त की।

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उधमिता क्या है और सफल उधमि के गुण

 

उद्यमिता का प्रादुर्भाव मनुष्य द्वारा व्यवसाय की जोखिम उठाने एवं अनिश्चिताओं के सामना करने के ही हो गया। पिछले 150-200 वर्षों के इतिहास पर नजर डाले तो ऐसे बहुत से उद्यमी हुए है जिन्होंने विश्व का ध्यान अपनी ओर साहस से है। आकर्षित किया है। वर्तमान युग में उद्यमिता का महत्व बहुत अधिक हो गया है। आज सम्पूर्ण विश्व उद्यमिता के महत्व को एक मत से स्वीकार करता है कि किसी भी राष्ट्र की आर्थिक उन्नति उद्यमिता पर ही निर्भर है। आज विभिन्न देशों की सरकार अपने यहाँ विश्व के उद्यमियों को ससम्मान, निमंत्रित कर उनसे निवेश के लिए आग्रह करती है, यही तथ्य उद्यमिता महत्व को स्पष्ट करता है।

उद्यमिता का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning & Definitions of Entreprenuirship) :

उद्यमिता को विभिन्न विद्वानों ने विविध अर्थी एवं दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है। कुछ विद्वानों ने इसे विशेषण के रूप में परिभाषित किया है एवं कुछ ने इसे क्रिया के रूप में स्पष्ट किया है। सामान्य अर्थ में उद्यमिता का तात्पर्य जोखिम वहन करने एवं अनिश्चितताओं का सामना करने की योजना एवं आधुनिक समय में उद्यमिता के क्षेत्र में विस्तार हुआ है फल नवीन उपक्रमों की स्थापना उनका निर्देशन एवं नियंत्रण उपक्रम में परिवर्तन एवं सृजनशीलता सुधारात्मक कार्यवाही की जोखिम उठाने की क्षमता को उद्यमिता कहा जाता है। जो व्यक्ति ये योग्यता रखते है उन्हें उद्यमी अथवा साहसी के नाम से जाना है। उद्यमिता की परिभाषाओं को हम निम्न पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं-

(1) प्रो. मुसलमान तथा जेक्सन (Prof. Musselman and Jackson): व्यवसाय को प्रारम्भ करने तथा उसे सफल बनाने के लिये उसमें समय, धन तथा प्रयासों का निवेश करना एवं जोखिम उठाना ही उद्यमिता है।

(ii) प्रो. उदय पारीक एवं मनोहर नादकर्णी (Prof. Udai Pareek & Manohar Nadkarni) के अनुसार : “उद्यमिता से आशय समाज में नये उपक्रम स्थापित करने की सामान्य प्रवृत्ति से है।”

उद्यमिता की विशेषताएँ / प्रकृति (Characterstics/ Nature of enterpreneurship) 

उद्यमिता के अर्थ व परिभाषा का अध्ययन करने के पश्चात उद्यमिता की निम्न प्रमुख विशेषताएँ पाई जाती है

1.नवाचार] (Innovation ) वर्तमान में उद्यमिता केवल परम्परागत कार्यों को सम्पन्न करने की क्रिया नहीं है अपितु इसमें नवीन तकनीक, नवीन उत्पाद या अन्य किसी प्रकार के नवाचार का समावेश होता है। उद्यमी अपने व्यवसाय में जब किसी नवाचार का अपनाता है तब ही उसे उद्यमी की श्रेणी में रखा जाना न्यायोचित होता है। पीटर ड्रकर ने लिखा है कि “नवाचार उद्यमिता का विशिष्ट उपकरण है।”

2.सृजनात्मक उद्यमिता: में उद्यमी द्वारा वस्तु या सेवा के स्थान, रंग,रूप आदि उपयोगिताओं का सृजन करके उसको समाज के लिये अधिक उपयोगी बनाया जाता है। हिजरिच एवं पीटर्स (Hisrich and Peters) के मुताबिक उद्यमिता उपयोगिता सृजित करने की प्रक्रिया है।” उद्यमिता द्वारा अनुपयोगी वस्तुओं को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करके सृजनात्मक कार्य किया जाता है। पीटर एफ. ड़कर भी स्पष्ट करते है कि मिट्टी के ढेर को भी सोने में बदल सकती है। उद्यमिता

3.जोखिम वहन करना (Risk Bearing)

उद्यमिता जोखिम उठाने की क्षमता का पर्याय है। एक उद्यमी नवीन उपक्रम की स्थापना एवं संचालन बाजार में नवीन उत्पादन का प्रस्तुतिकरण बाजार की अनिश्चितताओं के मध्य मूल्य निर्धारण करने के लिये उत्समें अपना धन समय व मेहनत का निवेश कर जोखिम उठाता है। एक उद्यमी मूल्यों में उध्यायचन ग्राहक की रूचियों में परिवर्तन, प्रतिस्पर्धा बदलती सरकारी नीतियों आदि की जोखिम से सदैव घिरा हुआ रहता है. एवं यह न केवल आर्थिक जोखिम अपितु मानसिक जोखिम को भी वहन करता है.

4.अवसर खोजने की प्रक्रिया

(A Process of Searching Opportunity) उद्यमिता अवसर तलाशने की प्रक्रिया है। एक उद्यमी व्यक्तियों की समस्याओं, उनकी आवश्यकताओं आकांक्षाओं सामाजिक व तकनीकी परिवर्तना प्रतिस्पर्धा आदि में भी उद्यमिता के अवसर खोजता है एवं उन्हें क्रियान्वित करता है। जैसे एक औद्योगिक क्षेत्र में खाने हेतु छोटा होटल या रेस्टोरेन्ट नहीं है तो व्यक्तियों की इस समस्या में उद्यमी टिफिन सेन्टर खोलकर नये अवसर खोज लेता है।

5. उपक्रम की स्थापना व संचालन (Establishment and Operation

of Enterprises) उद्यमिता व्यवसाय प्रधान अभिवृत्ति है। यह व्यक्तियों को इस बात की प्रेरणा देती है कि वे नवीन व्यवसायों की स्थापना करें एवं उसका सफलता पूर्वक संचालन करें उद्यमिता द्वारा ही समाज में नवीन उपक्रमों की स्थापना सम्भव हो पाती है इसके अभाव में नवीन औद्योगिक इकाइयों का निर्माण असम्भव है।

6.उच्च उपलब्धि की आकांक्षा का परिणाम (It is the result of high achievement/ambition) उद्यमिता उच्च उपलब्धि की आकांक्षा का परिणाम होती है। उद्यमी अपनी उच्च उपलब्धि की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिये कड़ी मेहनत एवं संघर्ष को सदैव तत्पर है। वे अपने लक्ष्य को येन केन प्रकारेण हासिल करना चाहते है। गैलरमैन ने लिखा है कि उद्यमी उच्च उपलब्धियों के लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं तथा इन्हें प्राप्त किये बिना संतुष्ट नहीं होते है।

7. सिद्धान्तों पर आधारित न कि अतंज्ञान पर

(Based on Principles not on Intuition ) –

उद्यमिता सिद्धान्तों पर आधारित किया है। यह किसी व्यक्ति के अतंज्ञान पर आधारित नहीं होती है। उद्यमिता व्यवसायशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, कानून, सांख्यिकी प्रबन्ध शास्त्र आदि के सिद्धान्तों पर आधारित होती है।

8.पेशेवर किया (Professional Activity) – वर्तमान युग में उद्यमिता एक पेशेवर एवं अर्जित योग्यता है। यदि कोई व्यक्ति इस योग्यता को प्राप्त करना चाहता है तो विभिन्न शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों में शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर इस योग्यता को अर्जित कर सकता है। यही नहीं वर्तमान में विभिन्न सरकारी संगठन भी उद्यमिता प्रवृत्ति को विकसित करने एवं इसमें रुचि जागृत करने हेतु अनेक कार्यक्रमों तथा योजनाओं का संचालन कर रहे है।

9.यह परिवर्तनों का परिणाम है (It is result of different changes)

उद्यमिता त्वरित गति से हो रहे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, तकनीकी, सरकारी नीतियों व नियम आदि में हो रहे बदलाव का परिणाम है परिवर्तनों के कारण व्यक्तियों के विचार एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन आ रहा है जिससे उद्यमिता का विकास हो रहा है।

10.सभी व्यवसायों में आवश्यक 

(Essential in all types of Business): उद्यमिता सभी प्रकार के व्यवसायों में आवश्यक होती है। व्यवसाय चाहे छोटा हो या बड़ा हो, निर्माण प्रक्रिया से संबंधित हो या विपणन प्रक्रिया से संबंधित हो, विकासशील अर्थव्यवस्था में संचालित हो या विकसित अर्थव्यवस्था में संचालित हो, उद्यमिता सभी जगह आवश्यक होती है।

उद्यमिता का महत्व
(Importance of Entrepreneurship)

उद्यमिता किसी भी देश की आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति का आधारस्तम्भ होती है यह देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास का प्रतिबिंध होती है किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था चाहे वह विकसित हो या विकासशील हो, उस राष्ट्र की विचारधारा चाहे पूंजीवादी हो या साम्यवादी या समाजवादी हो, उस राष्ट्र का नेतृत्व चाहे प्रजातान्त्रिक या राजशाही या अधिनायकवादी हो सभी स्थितियों में उद्यमिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह किसी व्यक्ति विशेष के जीवन को ही परिमार्जित नहीं करती है अपितु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को विकासात्मक दिशा प्रदान करती है। इसी कारण येल ब्रोजन ने कहा है कि “उद्यमिता आर्थिक विकास का अनिवार्य अंग है।”

1. देश के आर्थिक विकास का आधार

(Basis of Economic Development of the Nation)

उद्यमिता से प्रत्येक देश का तीव्र एवं संतुलित विकास होता है। उद्यमिता न केवल व्यावसायिक गतिविधियों का आधार है अपितु यह देष में रोजगार अवसरों का सृजन कर, संसाधनों का सदुपयोग कर राष्ट्रीय आय में वृद्धि करती है जिससे पूंजी निर्माण को बल मिलता है एवं देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास होता है।

2.नवीन उपक्रमों की स्थापना में सहायक

(Helps in Establishing new enterprises)

उद्यमी के द्वारा ही नवीन उपक्रमों क स्थापना की जाती है। उद्यमी आवष्यक संसाधनों की व्यवस्था करके जोखिम पूर्ण क्षेत्रों में भी नवीन औद्योगिक इकाइयों की स्थापना करते हैं। देश में विभिन्न औद्योगिक घरानों द्वारा अनेक उपक्रमों की स्थापना की गई है एवं इनसे प्रेरित होकर नवीन उद्यमी भी अनेक साहसिक निर्णय लेकर नये-नये उत्पादों के उद्योग स्थापित कर रहे है टाटा, बिरला, अंबानी, बजाज डालमिया, आदि अनेक उद्यमी घरानों में इस देश में नवीन उपक्रमों की लगातार स्थापना की है एवं कर रहे है।

3.विद्यमान उपक्रमों के विकास एवं विस्तार में योगदान

(Contribution in Development & Expansion of Existing Enterprises).

उद्यमिता विद्यमान उपक्रमों के सफल संचालन एवं उनके विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। उद्यमिता के कारण नये-नये उत्पादों का निर्माण किया जाता है.नवीन उत्पाद विधिया व तकनीक को ईजाद किया जाता है, नये बाजारों की खोज की जाती है, जिससे विद्यमान इकाईयां दीर्घकाल तक बाजार में बनी रहती है एवं उनका निरन्तर विकास एवं विस्तार होता रहता है। पीटर एफ. ड्रकर के शब्दों में “उद्यमिता व्यवसाय के विकास नवप्रर्वतन एवं विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।”

4. नवीन उत्पाद में तकनीक विकास में सहायक (Helps in developing new Products & technique) उद्यमिता के कारण नये उत्पाद एवं नवीन तकनीक का

विकास सम्भव होता है। मानव जीवन में काम आने वाले विभिन्न उत्पादों की उपलब्धता उद्यमिता के कारण ही सम्भव हो पाई है। इसी प्रकार उद्यमिता से विद्यमान उत्पादन विधियों में सुधार एवं परिवर्तन करके नवीन तकनीकों को विकसित किया जाता है।

5. मानवीय क्षमता के पूर्ण उपयोग का अवसर (Opportunity to exploit full human Potentiality ):

उद्यमिता में उद्यमी स्वयं उपक्रम की स्थापना करता है एवं उसको सफल बनाने हेतु वह अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करता है। वह अपने व्यवसाय के विकास एवं विस्तार हेतु अपनी पूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता से कार्य करता है। इस प्रकार उद्यमिता से मानवीय क्षमता का सदुपयोग सम्भव हो पाता है।

6.रोजगार के अवसरों का सृजन (Creation of Employment Copportunity)

उद्यमिता के कारण देश में नवीन रोजगार उत्पन्न होते है। एक उद्यमी नये उपक्रम की स्थापना करता है, नवीन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन एवं वितरण करता है इस कारण स्वतः ही रोजगार के अवसरों का सृजन होता है। रिन्सान के शब्दों में ” विकासपील देशों में उद्यमी रोजगार के अवसर पैदा करने वाला होता है।

7.पूजी निर्माण को प्रोत्साहन

(Promotes Capital Formation) उद्यमिता के परिणामस्वरूप एक उद्यमी नवीन उपक्रमों की स्थापना एवं विद्यमान उद्योगों का विकास एवं विस्तार करता है। इस हेतु वह अपनी पूंजी व जन सामान्य की पूंजी का अप ऋण पत्रों के माध्यम से विनियोग करता है। विनियोग प्रवृत्ति उत्पन्न होने से बचत को प्रोत्साहन मिलता है एवं पूंजी निर्माण को बढ़ावा मिलता है। रेजर नरकर्ट के अनुसार “विकासशील देषों में केवल उद्यमिता ही पूंजी के अमेध दुर्ग को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और पूंजी निर्माण में आर्थिक शक्तियों को गति प्रदान कर सकती है।’

8. संतुलित आर्थिक विकास (Balanced Economic Development):

प्रो. नर्कसे ने स्पष्ट लिखा है कि उद्यमी संतुलित आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उद्यमिता के विकास से देश के प्रत्येक कोने में उद्योगों की स्थापना की जा सकती है। जो क्षेत्र कम विकसित होते हैं यहाँ उद्यमियों को विभिन्न प्रकार की रियायतें व छूटे प्रदान करके अल्पविकसित क्षेत्रों का विकास करके संतुलित आर्थिक विकास किया जा सकता है।

9.राजकीय नीतियों एवं योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायक

(Helps in the execution of Government Policies & Plans) –उद्यमिता के माध्यम से न केवल औद्योगिक नीति का क्रियान्वयन होता है अपितु ये देष के विकास हेतु बनाई गई अन्य योजनाओं एवं नीतियों को लागू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा संचालित विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं में उद्यमी सहभागिता प्रदान कर इनके क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करते हैं।

10. सामाजिक परिवर्तन में सहायक (Helps in Social Change):

उद्यमिता समाज में शिक्षा एवं जागृति की अलख जगाकर, ज्ञानिक अनुसंधान व शोध के परिणाम प्रस्तुत करके अंधविश्वास रूढ़िवादिता व कुप्रयाओं को समाप्त करने में सहायक है। इसी प्रकार उद्यमिता रोजगार प्रदान करके व्यक्तियों की आय में वृद्धि करती है परिणामतः उनके जीवन स्तर में वृद्धि होती है जिससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन आसानी से सम्भव हो जाता है।

सफल उद्यमी के गुण

एक सफल उद्यमी के गुणों के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। अनेक प्रकाशास्त्रियों एवं अर्थशास्त्रियों ने उद्यमी के गुणों का वर्णन किया है। विभिन्न विद्वानों के अनुसार एक सफल उद्यमी में निम्न गुण होने चाहिए-
 

1. शारीरिक एवं मानसिक गुण (Physical and Mental Qualities) :

 
(1) उत्तम स्वास्थ्य एवं कार्य करने की शक्ति
 
(Sound health and Stamina) उद्यमी का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। किसी ने ठीक ही लिखा है कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। अच्छा स्वास्थ्य व्यक्तित्व का एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व होता है। स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति ही अपनी पूर्ण क्षमता से उद्देश्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। कमजोर स्वास्थ्य वाले व्यक्ति जोखिम उठाने एवं नवाचार क्रियायें करने में प्रायः असमर्थ रहते हैं अतः उद्यमी का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
 
यही नहीं, उद्यमी की कार्यशक्ति भी अच्छी होनी चाहीये। उसमें लम्बे समय तक कार्य करने की शक्ति होने पर ही वह पूर्ण मनोयोग एवं उत्साह से अपना कार्य सम्पन्न कर पायेगा अन्यथा वह थकावट, झुंझलाहट आदि महसूस करेगा एवं अपने कार्यों को कुशलता पूर्वक नहीं कर सकेगा।
 
(2) परिश्रमी (Hard working)
 
भारतीय दर्शन में कहा गया है कि उद्येमन हि सिद्धयति कार्याणि मनोरथ एक उद्यमी को सफल होने के लिये उसका परिश्रमी होना आवश्यक है। उद्यमी का कर्म के प्रति सकारात्मक सोच होना चाहिये। जो व्यक्ति कार्य से जी चुराते हैं, सफलता कभी भी उनके नजदीक नहीं आती है। कहा भी गया है कि परिश्रम सफलता की कुंजी है। वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक युग में अपने आपको बाजार में बनाये रखने हेतु कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।
 
(3) कल्पनाशील (Imaginative) उद्यमी में कल्पनाशक्ति का होना भी नितान्त अनिवार्य है। उद्यम की स्थापना से लेकर उसके संचालन तक उद्यमी को विभिन्न नवाचार करने होते हैं जो कि कल्पनाशील होने पर ही सम्भव हो पाते हैं। कल्पनाएँ केवल कोरी कल्पनाएं नहीं होनी चाहिये अपितु वह यथार्थ के नजदीक होनी चाहिए। आर्थर आल्पस के शब्दों में केवल उसी व्यक्ति की महत्वाकाक्षाएँ पूरी होती है जो कर्मवीर होता है। केवल कल्पना करने वाले व्यक्ति की महत्वकांक्षाएँ कभी भी पूरी नहीं होती है।
 
(4) प्रखर बुद्धि एवं स्मरण शक्ति
 
(Sharp Intelligence & Memory) उद्यमी प्रखर बुद्धि का धनी होना चाहिये। प्रखर बुद्धि होने पर ही निर्णयों में सटीकता एवं तत्परता हो पाती है। विभिन्न प्रकार के कार्य भी बुद्धिमता ढंग से पूर्ण करने पर उपक्रम प्रगति व विकास के पथ पर गतिशील होता है। इसी प्रकार उद्यमी में स्मरण शक्ति होनी चाहिए। उसे कब, कहाँ, क्या करना है आदि का निश्पादन तीव्र स्मरण शक्ति होने पर सरल हो जाता है।
 
(5)
 
आत्म विश्वास (Self Confidence) “आत्म विश्वास सफलता की जननी है।” यह उक्ति उद्यमी के सन्दर्भ में सत्य प्रतीत होती है। आत्म विश्वास के सहारे अनेक दुर्गम व कठिन कार्य भी आसानी से सम्पन्न किये जा सकते हैं जबकि इसके अभाव में सामान्य से लगने वाले कार्य भी पूरे नहीं हो पाते है। एक उद्यमी को लक्ष्य प्राप्ति हेतु अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इन विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों का मुकाबला करने में आत्म विश्वास की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
 
 
(6)
 
आषावादी (Optimist) एक उद्यमी को आशावादी होना अत्यन्त आवश्यक है
 
क्योंकि उसे लगातार अनिश्चितताओं एवं जोखिम का सामना करना होता है। असफलता में सफलता छिपी है के मूल मन्त्र को दृष्टिगत रखते हुए उद्यमी को असफलताओं से निराश होकर निष्क्रिय नहीं होना चाहिए अपितु पुनः उत्साह एवं लगन से लक्ष्य •प्राप्ति हेतु तत्पर हो जाना चाहिए। स्टीवेन्सन ने ठीक ही लिखा है कि “सफलता की शर्तें आसान है, हमें कुछ परिश्रम करना है, कुछ सहन करना है, सविश्वास करना है और कभी पीछे नहीं मुलना है।”
 
(7) दूरदर्शिता (Foresightness)
 
उद्यमी को भविष्य का पूर्वानुमान करके उसके आधार पर निर्णय लेना होता है अत: उसको दूरदर्शी होना चाहिए। ग्राहकों की भावी रूचि सरकारी नीति प्रतिस्पर्द्धा बाजार सम्भावना आदि का ठीक से पूर्वानुमान करके एक उद्यमी अपने उपक्रम का विकास एवं विस्तार कर सकता है।
 
(8) प्रभावी व्यक्तित्व (Effective Personality) उद्यमी का व्यक्तित्व प्रभावणाली एवं आकर्षक होना चाहिए। प्रभावी व्यक्तित्व हेतु उद्यमी को गम्भीर शालीन, धैर्यवान वशिष्ट होना चाहिये हँसमुख स्वभाव, प्रसन्न मुख मुद्रा, मथुर वार्ता, हाव-भाव व पौशाक आदि व्यक्तित्व को निखार देते हैं।
 
 

II. सामाजिक एवं नैतिक गुण (Social and Moral Qualities)

 
उद्यमी की सफलता में सामाजिक एवं नैतिक गुणों का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। एक सफल उद्यमी में निम्नांकित सामाजिक एवं नैतिक गुण होने चाहिए –
 
1. मिलनसार (Sociable):
 
उद्यमी क सफलता में उसकी मिलनसारिता का बहुत बड़ा योगदान होता है। उद्यमी को सब के साथ स्नेहपूर्ण वार्तालाप करनी चाहिए उसके सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से उसको आत्मीयता से संबंध बनाने चाहिये एवं परस्पर आत्मीयता जागृत करनी चाहिये मिलनसारिता की वजह से उद्यमी के प्रति लोगों का विश्वास जागृत होता है। अतः उद्यमी • मिलनसार होना चाहिये।
 
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सहयोगी (Co&operative) उद्यमी को सभी वर्गों का सहयोगी होनी चाहिये। उसे
 
व्यवसाय के स्वामियों कर्मचारियों, ऋणदाताओं, पूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों एवं यहाँ तक कि अपने प्रतिस्पद्वियों के साथ भी सहयोग एवं सामजस्यपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये। उधमी में समझौता करने की एवं अपनी भूलो तथा गलतियों को स्वीकार करने की योग्यता होनी चाहिये।
 
3. नम्रता (Politeness):
एक उद्यमी को विनम्र होना चाहिये। कहा भी गया है कि “विनवता का कुछ मूल्य नहीं लगता किन्तु इससे बहुत मिलता है।” नम्रता से उद्यमी की लोकप्रियता में वृद्धि होती है। नम्रता का यह आशय नहीं है कि वह अपनी प्रतिष्ठा व स्वाभिमान के विरुद्ध कोई कार्य करें।
 
4. चरित्रवान (Sound character) एक उद्यमी का चरित्र निर्मल होना चाहिये। चरित्रवान उद्यमी अपने कार्यों एवं व्यवहार से सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों पर अपनी छाप छोड़ता है एवं उन्हें अपना बना लेता है। चरित्र के संबंध में कहा भी गया है कि अगर चरित्र खोया तो सब कुछ खोया” प्रो. हाविन्स के अनुसार चरित्रवान व्यक्ति अपनी आँखों के द्वारा अपने हाव-भाव द्वारा अपनी वाणी द्वारा अपने कथन तथ्यों द्वारा अपने लोगों में अपना मन डाल देता है।
 
5.
 
ईमानदार (Honesty)
 
उद्यमी को ईमानदार होना चाहिये। बेईमानी एवं गलत तरीके से उद्यमी अल्प समय के लिये सफल हो सकता है किन्तु
दीर्घकालीन सफलता हेतु ईमानदारी पूर्वक व्यावसायिक गतिविधियों का कियान्वयन होना जरूरी है। उद्यनी को “ईमानदारी एक सर्वोत्तम नीति है के आधार पर अपनी नीतियों व योजनाओं का निर्धारण एवं उनका पालन करना चाहिये।
 
6.
 
निष्ठावान (Loyal) –
 
एक उद्यमी को न केवल सामान्य अपितु विशेष एवं सकटकालीन परिस्थितियों में भी अपने सहयोगियों ग्राहको पूर्तिकर्ताओं, सरकार आदि के प्रति निष्ठावान रहना चाहिये। उद्यमी को कालाबाजारी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव, मुनाफाखोरी, चार बाजारी जैसे हथकंडे अपनाकर विभिन्न वर्गों के प्रति अपनी निष्ठा को भंग नहीं करना चाहिये।
 
7. मानवीयता (Humanity): एक उद्यमी को उपक्रम में कार्यरत विभिन्न कर्मचारियों के प्रति नानवीय दृष्टिकोण रखना चाहिये। उसे अपने कर्मचारियों एवं अधीनस्थों के साथ स्नेह, अपनत्व, प्यार व सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिये। कर्मचारियों के साथ मधुर संबंधों के निर्माण से श्रम आवर्तन कम होता है जिससे अनुभवी व योग्य कर्मचारियों का ठहराव एवं उद्यमी के प्रति मान सम्मान व अपनत्व की भावना में वृद्धि होती है।
 
8.सुशील स्वभाव (Likeable disposition):
 
उद्यमी का स्वभाव सुशील होना चाहिये। सद्व्यवहार, नम्रता, व्यवहार कुशलता, सद्व्यवहार आदि गुणों से सम्पन्न उद्यमी व्यवसाय में सफलता प्राप्त करता है। सुशील स्वभाव वाला व्यक्ति अपने विरोधियों को भी अपना बनाने की क्षमता रखता है।
 

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