Swastik Chinh ||स्वस्तिक की उत्पत्ति कैसे हुई?||Swastik Ki Utpatti Kaise Hui

 स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति (swastik chinh)


आज हम जानेंगे की Swastik Ki Utpatti Kaise Hui और इसके क्या महत्व है।। और इसके बारे में रहस्यमई बाते भी जानेंगे |

Swastik Meaning in Hindi

पहले हम जानते है कि स्वास्तिक शब्द कैसे बनता है।
स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला।

इतिहास में ऐसा भी लिखा हुआ है कि स्वास्तिक 11000 या 12000 से भी अधिक पुराना है ।

 

 

Swastik Ki Utpatti Kaise Hui
          Swastik Ki Utpatti Kaise Hui

 

व्यापार न चले तो क्या करे : स्वस्तिक उपाय

किसी का व्यापार नहीं चल रहा हो तो वह जहां व्यापार होता है वहा को देहलीज पर सुबह दोनों तरफ कुमकुम का स्वास्तिक बनाकर उसपर सफेद पुस्प चढकर कामना करे ये उपाय सिर 5 – 7 करके देखे आपको लाभ जरूर होगा।। परन्तु मन में विश्वाश जरूर होना चाहिए जब है हमारे सारे काम सिद्ध होंगे।

जानें क्या है स्वस्तिक चिन्ह का महत्व:

स्वास्तिक चिन्ह का महत्व और लाभ तो इतना है को ये धन सम्पत्ति, वैभव और सुख शांति सब प्रदान करता है। स्वस्तिक को गणेशजी का रूप भी माना जाता है।

 

 

स्वास्तिक को भारतीय संस्कृति का मंगलकारी और शुभकारी चिन्ह माना जाता है। स्वास्तिक को भारतीय संस्कृति के अनुसार पूजा-पाठ और शुभ कार्यों में उपयोग अर्थ उसको वहा स्थापित किया जाता है। यह माना जाता है कि जहां स्वास्तिक होता है और अगर वहा और कोई भगवान् की मूर्ति ना हो तो भी वह पूजा संपन मानी जाती हैं और अगर गणेशजी को पूजा में भी अगर गणेशजी को मूर्ति ना हो और वहा स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाए और उसकी पूजा की जाए तो वह पूजा भी पूरी मानी जाती हैं।।

पितरों की कृपा प्राप्ति के लिये भी स्वस्तिक लाभकारी होता है। घर में गोबर से स्वास्तिक चिन्ह बनाने से घर में पितरों की कृपा और सुख व समृद्धि के साथ शान्ति भी आती है।

हिन्दू सभ्यता में स्वास्तिक चिन्ह सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण चिन्ह माना जाता है. हर शुभ कार्य के लिए इस प्रतीक का उपयोग किया जाता है. चाहे विवाह हो या गृह प्रवेश या शिशु जन्म हर अवसर पर इस प्रतीक का उपयोग किया जाता है. कुछ लोग मानते है स्वास्तिक चिन्ह की उत्पत्ति हिन्दू धर्म में हुई थी. संस्कृत में स्वास्तिक का अर्थ होता है शुभ. इसीलिए हर कार्य में इस चिन्ह का उपयोग होता है।


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स्वास्तिक की उत्पत्ति कैसे हुई- पुराणों के अनुसार :

 

गणेश पुराण के अनुसार, जब गणेश जी अपनी अपनी माता के कहने पर घर के बाहर रखवाली कर रहे थे कि कोई भी भीतर ना जाए। और वहा उसी समय शिवजी भगवान् आ गए पर गणेशजी उनको अंदर नहीं जाने दे रहे थे तो शिवजी भगवान् को क्रोध आ गया और उन्होंने गणेशजी का सिर काट दिया ।। और फिर जब गणेशजी को फिर से सिर लगाने के लिए शिवजी भगवान् ने अपने गण को कहा कि जाओ और उसका सर लेकर आओ जिसकी मा उसकी तरफ पीठ देकर सो रही हो और उस बच्चे का मुख दक्षिण दिशा की तरफ हो। तो शिव जी के गण एक हाथी के बच्चे का सिर लाए फिर शिवजी भगवान् ने वह सिर गणेशजी को लगाया,तब से वह गणपति कहलाए । 

जिस हाथी के बच्चे का सिर लाए थे उसी का धड वहा पड़ा पड़ा तड़प रहा था। और उस हाथी के बच्चे का चारो पैर चारो दिशाओं में थे मतलब वह जमीन पर पड़ा था और दर्द के मारे उसके पैर अलग अलग दिशा में थे।  गणेशजी ने उस हाथी के बच्चे का सिर जहां से कटा था वहा पर हाथ रख दिया था और वहां शिवजी आ गए गणेशजी ने उनको कहा कि आप इस हाथी के बच्चे को वरदान दीजिए और इसे जिंदा करो। 

फिर शिवजी भगवान् ने उसको वरदान दिया और उसे स्वास्तिक बना दिया ।। और कहा की जहां पर गणेशजी की पूजा होगी वहा पर स्वास्तिक के बिना पूजा अधूरी मानी जाएगी। तभी वह लक्ष्मीजी आए और बोले कि इस स्वास्तिक में जो चार बिंदी भी होगी जिसमे हमेशा लक्ष्मी का निवास होगा। और वहा पर 33 करोड़ देवी देवता भी थे तो उन्होंने भी आशीर्वाद दिया कि जहां स्वास्तिक होगा वहा पर हम सब रहेंगे । 

जब से ही स्वास्तिक को हर पूजा में स्थापित किया जाता है।माना जाता है कि जहां स्वास्तिक होता है और अगर वहा और कोई भगवान् की मूर्ति ना हो तो भी वह पूजा संपन मानी जाती हैं और अगर गणेशजी को पूजा में भी अगर गणेशजी को मूर्ति ना हो और वहा स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाए और उसकी पूजा की जाए तो वह पूजा भी पूरी मानी जाती हैं।।


 

धन्यवाद!🙂

 

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