Gulam Vansh: गुलाम वंश का इतिहास (1206.ई – 1290.ई)

Gulam Vansh: गुलाम वंश का इतिहास (1206.ई – 1290.ई)

gulam vansh: भारत का इतिहास बहुत समृद्ध है और इसमें कई वंश और राजाओं के बारे में जानकारी होती है। यहाँ हम भारत के इतिहास में गुलाम वंश के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे।

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गुलाम वंश का इतिहास

गुलाम वंश भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण वंश है, जो सल्तनत काल में दिल्ली सल्तनत का एक बहुत बड़ा हिस्सा बना था। यह वंश 1206 ई. से 1290 ई. तक दिल्ली सल्तनत का शासन करता था। गुलाम वंश ने दिल्ली सल्तनत के शासनकाल में एक नए अधिकारी वर्ग का उत्थान किया था, जो कि सल्तनत के प्रबंध के लिए जिम्मेदार था। इस अधिकारी वर्ग का नाम अमीर था। अमीरों का संगठन और सल्तनत के प्रबंध में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। गुलाम वंश का सबसे पहला सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक था, जिन्होंने 1206 ई. में दिल्ली सल्तनत की स्थापना की थी।

कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उनका बेटा इल्तुतमिश ने उनकी जगह ली थी। इल्तुतमिश ने सल्तनत के प्रबंध में कुछ बदलाव किए थे, जिसमें से एक था उसने सल्तनत के मंत्रिमंडल की स्थापना की थी। इससे पहले सल्तान अकबर के पापा अमीर तिमूर ने भी एक समान संगठन बनाया था।

उसके बाद सल्तान रुक्नुद्दीन फिरोज तुगलक, जलालुद्दीन खिलजी, गियासुद्दीन बलबन, नसीरुद्दीन महमूद, गियासुद्दीन तुगलक और फिरोज शाह तुगलक गुलाम वंश के सल्तान थे। इन सल्तानों में से कुछ ने दिल्ली सल्तनत के स्थानीय प्रभुत्व को बढ़ाया और कुछ ने उसे कमजोर किया था।

गुलाम वंश के सल्तानों में सगियासुद्दीन बलबन को सल्तनत को फिर से संघर्षशील बनाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने खिलजी और तुगलकों की बड़ी सेनाओं को परास्त कर उन्हें दिल्ली से बाहर निकाल दिया था। उन्होंने एक बड़ी सेना और बढ़िया व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने दिल्ली को एक अधिकृत स्थान बनाने के लिए कई नए निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाया था।

गुलाम वंश के सल्तानों में फिरोज शाह तुगलक सबसे लम्बे समय तक सल्तनत के प्रभुत्व में थे। उन्होंने दिल्ली की राजनीति, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में कुछ अहम बदलाव किए थे। उन्होंने भी दिल्ली में कई नए निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाया था, जिनमें से बहुत से अभी भी उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ मुख्य शहरीकरण और सामाजिक सुधार थे।

फिरोज शाह तुगलक द्वारा दिल्ली में शहरी विकास को प्रोत्साहित किया गया था। उन्होंने दिल्ली में बहुत से नए निर्माण कार्य शुरू किए थे,

जिनमें से कुछ अभी भी अपनी महत्ता बनाए रखते हैं। इनमें से कुछ विशेष बताए जा सकते हैं:

1. फिरोज शाह का किला:

यह दिल्ली में दिल्ली फ़ोर्ट के बाद दूसरा सबसे बड़ा किला है। इसे 1354 में शुरू किया गया था। इसमें बहुत से महल और मंदिर हैं।

2. जामा मस्जिद:

यह दिल्ली की सबसे बड़ी मस्जिद है। यह फिरोज शाह तुगलक द्वारा बनाई गई थी और इसका निर्माण 1354 से 1368 तक हुआ था।

3. दीवान-ए-आम:

यह दिल्ली में सल्तनत के समय का सबसे बड़ा सामाजिक और राजनीतिक संगठन है। इसमें सल्तानत के सभी निर्णय लिए जाते थे।

4. हौज़ खास:

यह दिल्ली में एक बड़ा नगर था जो फिरोज शाह तुगलक द्वारा बनाया गया था। यह दिल्ली में सबसे पुराना नगर है जो अभी भी दिल्ली के राजनीतिक, सामाजिक और संस्कृतिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है।

5. तुगलकाबाद फिरोजशाह तुगलक द्वारा बनाई गई थी। इसमें बहुत से महल और मंदिर है, जो अभी भी सुरक्षित हैं। यह दिल्ली के तुगलकाबाद में स्थित है और यह एक आकर्षक ऐतिहासिक स्थल है।

6. जंगपुरा मॉन्यूमेंट:

यह दिल्ली में एक खूबसूरत मॉन्यूमेंट है जो शाहजहाँ के समय बनाया गया था। यह दिल्ली में खूबसूरत संगमरमर के नक्शों के लिए जाना जाता है।

7. हुमायूं का मकबरा:

यह दिल्ली में सबसे खूबसूरत और शानदार मकबरा है। यह मुगल साम्राज्य के पहले सम्राट हुमायूं के लिए बनाया गया था। यह मकबरा रोमांटिक बाग़ के साथ बना हुआ है।

8. कुतुब मीनार:

यह दिल्ली में एक ऐतिहासिक मीनार है जो दिल्ली के सबसे विख्यात पर्यटन स्थलों में से एक है। इसे 1192 में शुरू किया गया था और यह मुगल सम्राट फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा बनाया गया था।

9. राज घाट:

यह दिल्ली में एक बड़ा घाट है जो यमुना नदी पर स्थित है। यह घाट दिल्ली के लोगों के लिए एक आध्यात्मिक और प्राकृतिक स्थल है।

10. सफदरजंग फॉर्ट:

यह दिल्ली में एक महत्वपूर्ण फ़ॉर्ट है जो मुगल समय में बनाया गया था। यह सफदरजंग के नाम पर रखा गया था जो मुगल सम्राट अब्दुल्ला के तुर्क जाति से संबंधित था।

11. लोटस मंदिर:

यह दिल्ली में एक बड़ा धार्मिक स्थल है जो बहुत खूबसूरत है। यह बड़े साइज के लोटस के फूल की तरह बना हुआ है और यह बहुत शांतिपूर्ण है। इसे बहुत लोग धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सवों के लिए जाना जाता है।

12. राष्ट्रपति भवन:

यह दिल्ली में राष्ट्रपति का आवास है और इसे भारत के सबसे शानदार इमारतों में से एक माना जाता है। इसे ब्रिटिश समय में बनाया गया था और इसके आस-पास एक बहुत खूबसूरत बाग़ है।

13. नेहरू प्लेस:

यह दिल्ली में एक बड़ा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है जो बहुत समय पहले बना था। इसे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था। यहाँ आपको बहुत सारी ब्रांडेड वस्तुएं मिलती ह

14. दारिबा कालेज:

दारिबा कालेज दिल्ली का एक प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थान है। यह कॉलेज ब्रिटिश समय में बना था और इसमें विभिन्न विषयों के लिए उच्च शिक्षा उपलब्ध है।

15. चांदनी चौक:

चांदनी चौक दिल्ली का एक प्रसिद्ध वाणिज्यिक क्षेत्र है। यहाँ आपको अलग-अलग वस्तुओं के लिए बाजार मिलेगा जिसमें से कुछ प्रसिद्ध हैं जैसे कि खान मार्केट और दीवान-ए-खास बाजार।

16. पुरानी दिल्ली:

पुरानी दिल्ली दिल्ली का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक क्षेत्र है। यहाँ आपको बहुत से मुगल वास्तुकला के दर्शनीय स्थल मिलेंगे जैसे कि लाल किला, जमा मस्जिद, चाँदनी चौक और खारिबोली बाजार। इसके अलावा, यहाँ आपको दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध खाने का स्वाद भी मिलेगा।

17. जंतर मंतर:

जंतर मंतर दिल्ली में एक ऐतिहासिक संरचना है जो ज्योतिष और गणित के लिए बनाई गई थी। इस संरचना को समझना और इसे देखना एक अनुभव से कम नहीं है।

 

गुलाम वंश मध्यकाल भारत का एक राजवंश था। इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था जिसे मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद नियुक्त किया था। इस वंश ने दिल्ली की सत्ता पर 1206-1290 तक राज किया |

गुलाम वंश के प्रमुख शासक (gulam vansh ke shasak ) 

 

1. कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210)/ गुलाम वंश का संस्थापक कौन था

कुतुबुद्दीन ऐबक एक तुर्क सैनिक थे जो 1206 से 1210 तक दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान थे। वे तुर्क घुलामों के बीच से उठकर सल्तनत के शासक बने थे। उन्होंने दिल्ली सल्तनत की स्थापना के लिए बहुत सारे सुधार किए थे जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण था अफगानिस्तान और उत्तरी भारत के बीच सीमा की रक्षा का संचालन और दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों का अधिकार लेना।

कुतुबुद्दीन ऐबक एक बहुत ही सख्त शासक थे जो अपने दौर में धर्म और समाज को ठीक करने के लिए कई सुधार किए थे। उनके शासनकाल में न्याय व्यवस्था को सुधारा गया था और जनता के लिए बहुत सारे योजनाएं शुरू की गई थीं। उन्होंने शिक्षा को भी महत्व दिया था और अपनी सलतनत में मदरसों के निर्माण को प्रोत्साहित किया था।

कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत एक शक्तिशाली सल्तनत बन गई थी। उन्होंने अपने सुल्तानत के लिए एक मजबूत सेना बनाई थी जो उन्हें उत्तर भारत में महत्वपूर्ण क्षेत्रों का अधिकार दिलाने में मदद करती थी। वे भीतरी राज्यों को भी जोड़ने के लिए प्रयास किए थे और उनकी सलतनत को एकीकृत करने की कोशिश की थी।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने धर्म के मामले में भी काफी सख्ती बरती थी। उन्होंने हिंदुओं और अन्य धर्मों के प्रति समझौता करने की कोशिश नहीं की थी और इसलिए उनका समझौता अधिकतर मुसलमानों के साथ था। उन्होंने अपने शासनकाल में बहुत सारी मस्जिदें बनवाई थीं और इसलिए वे मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक शासक माने जाते हैं।

कुतुबुद्दीन ऐबक का सलतनत काफी छोटा था लेकिन उनके शासनकाल में वे दिल्ली सल्तनत की मजबूत नींव रखने में सफल रहे थे। उन्होंने अपनी शासनकाल में बहुत सारे सुधार किए थे जो दिल्ली सल्तनत को एक मजबूत सल्तनत बनाने में मदद करते हुए उनके उत्तरदायित्व और शानदार शासनकाल को साबित करते हैं।

 

2. आरामशाह (1210)

आरामशाह, जिसे अल्तामश भी कहा जाता है, कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद दिल्ली सल्तनत का राजा बना। वह दिल्ली सल्तनत का तीसरा सुल्तान था और उसका शासनकाल 1210 से 1211 तक रहा।

आरामशाह को उस समय सिंधु नदी के उत्तरी क्षेत्र में उस समय के सबसे शक्तिशाली राज्य में से एक के राजा के रूप में जाना जाता था। वह अपने बड़े बेटे जलालुद्दीन फ़िरोज़ ख़िलजी को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद अपने राज्य के शासन में कुछ समय के लिए अवकाश लेने के लिए दिल्ली आया था।

आरामशाह का नाम उसकी शांतिपूर्ण व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है। उसने विवेकपूर्ण शासन किया था और उसका शांत स्वभाव उसकी राजनीतिक दक्षता में एक उच्च स्तर की उत्पत्ति का कारण बना। उसने शासनकाल के दौरान दिल्ली के विकास को ध्यान में रखते हुए कुछ सुधार किए थे।

आरामशाह के शासनकाल के दौरान, उसने अपने बेटे को राजा बनाने के लिए अपनी सत्ता का बखूबी समझी थी। उसने उसे उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था लेकिन उसकी मृत्यु के बाद उसके अन्य बेटों के साथ जलालुद्दीन ख़िलजी ने उसे संघर्ष करने के बाद अपनी सत्ता स्थापित की।

आरामशाह शांतिपूर्ण स्वभाव के साथ अपने शासनकाल को काफी समय तक संभाला था, लेकिन उसके राज्य के अंतिम दिनों में उसने बहुत से नुकसान झेले थे। उसके शासनकाल के दौरान उसने जैन समुदाय के प्रति अपनी संवेदनशीलता प्रगट की थी। वह जैन मुनियों की सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाये रखता था।

आरामशाह की मृत्यु के बाद उसके बेटे जलालुद्दीन ख़िलजी ने उसे हराकर सल्तनत का शासक बन गये थे। उन्होंने दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक नया युग शुरू किया था, जिसे ख़िलजी शासनकाल कहा जाता है।

 

3. इल्तुतमिश (1210-1236)

इल्तुतमिश, जिसे अल्तमश भी कहा जाता है, ने 1210 में दिल्ली सल्तनत के शासन पर कब्जा किया था। उसने अपने बेटे रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़ को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।

इल्तुतमिश एक बहुत उदार शासक था और उसने विविध समुदायों के बीच समझौते किए थे। उसने हिंदू राजाओं के साथ भी समझौते किए थे और उन्हें अपनी सेना में भी शामिल किया था।

इल्तुतमिश के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत का शक्ति केंद्र दिल्ली से अगले कुछ सालों में आगरा में स्थानांतरित हुआ था। इसके अलावा, उसने अपनी सत्ता के लिए कई युद्धों का सामना किया था। उसने बंगाल, बिहार, गुजरात और राजस्थान के साथ संघर्ष किया था।

इल्तुतमिश की मृत्यु 1236 में हुई थी। उसके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत के कुछ बहुत महत्वपूर्ण कलाकृतियों का निर्माण हुआ था, जिनमें कुतुब मीनार, ख़्वाजा निजामुद्दीन आहिर के मकबरे, बलबन का मकबरा और आलाई दरवाजा शामिल थे।

 

4. रूकुनुद्दीन फ़ीरोज़शाह (1236)

रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़शाह इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी थे और उनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत के राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हुए थे।

उन्होंने अपने शासनकाल के पहले दशक में दक्षिण भारत में विस्तार के लिए अनेक युद्ध लड़े थे। उन्होंने उन राज्यों को अपने अधीन कर लिया था जो इल्तुतमिश के शासनकाल में जीते नहीं जा सके थे। इससे उनकी सत्ता विस्तार हुई और उन्हें एक महत्वपूर्ण शासक के रूप में माना जाता है।

रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़शाह का समय भी अल्तमश के शासनकाल से अलग था। उन्होंने एक नई राजनीतिक व्यवस्था शुरू की थी, जिसमें उन्होंने सरदार और मुख्तार अधिकारियों को शासन के लिए नियुक्त किया था। इससे उनकी सत्ता को निर्बल बनाने वाली अंतरिक विवादों से बचाया जा सका था।

इसके अलावा, रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़शाह ने धर्म और सामाजिक अधिकारों को समझोते के तहत बदलाव क दिल्ली सल्तनत के समाज में होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ, उन्होंने कृषि, वाणिज्य, और उद्योग जैसे अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी बदलाव लाया। उन्होंने कृषि को बढ़ावा देने के लिए बाँध, नहर, और जल संरचनाएं बनवायीं। वाणिज्य व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए, उन्होंने सड़कों के निर्माण के लिए धन व्यय किया। इससे दिल्ली को मजबूत व्यवसाय केंद्र बनाने में मदद मिली।

उन्होंने अपने शासनकाल के दूसरे भाग में कई नयी नीतियों की शुरुआत की, जैसे कि आम लोगों के लिए उपलब्ध सामाजिक योजनाएं जैसे मुफ्त खाद्यान, मुफ्त इलाज, और शिक्षा। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि बंदगानों और दलितों के अधिकारों को समझौते के जरिए सुनिश्चित किया जाए।

रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़शाह की उपलब्धियों में से एक विशेष उल्लेखनीय है – उन्होंने दिल्ली में पानी की आपूर्ति के लिए ऐसी नहर बनवाई जो अब भी दिल्ली “फीरोज़शाह नहर” के नाम से जानी जाती है। इस नहर का निर्माण वर्ष 1356 ई. में हुआ था। इसे आधुनिक भारत के सबसे बड़े जल संरचनात्मक परियोजनाओं में से एक माना जाता है।

इसके अलावा, रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़शाह ने अपने शासनकाल के दौरान दिल्ली को अपनी विशेषताओं से सशक्त बनाने का भी प्रयास किया था। वे कला, साहित्य, विज्ञान, और धर्म के क्षेत्र में भी अपनी रुचि रखते थे। उन्होंने अपने शासनकाल में कई मंदिरों और मस्जिदों का निर्माण करवाया, जिनमें से जमा मस्जिद और फीरोज़शाह कोठी आज भी दिल्ली में मौजूद हैं।

उनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत के राजनीतिक और सामाजिक संरचनाओं में कई बदलाव हुए, जिन्होंने अगले कुछ शताब्दियों तक अपना प्रभाव जारी रखा। रुक्नुद्दीन फ़ीरोज़शाह दिल्ली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत के विकास में अपना योगदान दिया है |

 

5. रजिया सुल्तान (1236-1240) 

रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत की पहली और अभी तक की एकमात्र महिला सुल्तान थीं। वह अपने भाई जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान सल्तनत की तलवार संभाली थी। जलालुद्दीन खिलजी की मौत के बाद उन्हें सल्तान बनाया गया था।

रजिया सुल्तान ने एक बहुत ही सामाजिक और राजनीतिक सुधार का अभियान शुरू किया था। उन्होंने महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं बनाईं, जिनमें से एक थी उनके समर्थन में खुले में नमाज पढ़ने वाली मस्जिद का निर्माण। वे बुद्धि, बुद्धिमानी, और सामर्थ्य की महिलाओं के लिए जानी जाती थीं।

लेकिन उनके सत्ताधार के दौरान वे कुछ शक्तिशाली उम्रदराजों के विरोध का सामना करने के लिए मजबूर हुईं। इससे उनके शासनकाल को बहुत कम समय मिला था। उनकी सत्ता काफी कम समय तक चली थी और 1240 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, बहुत कम समय तक दिल्ली सल्तनत का कोई अधिकारी सुल्तान नहीं था।

 

6. मुईज़ुद्दीन बहरामशाह (1240-1242)

मुईज़ुद्दीन बहरामशाह दिल्ली सल्तनत का आठवाँ सुल्तान था। वह राजा इल्तुतमिश के पुत्र थे और उनके निधन के बाद वह सल्तान बना था।

उनका शासनकाल बहुत कम समय तक चला था, केवल दो साल तक। इस अवधि के दौरान, वह नेहरू के पास अपनी राजधानी बसाई थी। उनका शासन अत्यंत अस्थायी था, उन्हें कुछ दिनों के लिए ही सल्तान बनाया गया था। उनके शासनकाल में कोई बड़ा इतिहासी घटना नहीं हुई थी।

1242 ई. में, मुईज़ुद्दीन बहरामशाह की मृत्यु हो गई थी और उनके बाद सल्तानी कुतुब शाही खानदान का अधिकारी अल्तामश ने शासन संभाला था।

 

7. अलाऊद्दीन मसूदशाह (1242-1246)

अलाउद्दीन मसूदशाह, दिल्ली सल्तनत का नौवाँ सुल्तान था और मुईज़ुद्दीन बहरामशाह के भाई थे। उनका शासनकाल 1242 से 1246 तक चला।

उनके शासनकाल में, दक्षिणी भारत में होने वाली युद्धों में उन्होंने अपनी सेना को सफलता प्राप्त करने में मदद की। इसके अलावा, उन्होंने दिल्ली में कुछ अधिकारियों को नियुक्त किया और राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए अपनी सेना को तैनात किया।

लेकिन उनका शासन बहुत ही छोटे समय के लिए रहा। 1246 में, उनकी मौत हो गई थी। उनके निधन के बाद, उनके बेटे ने सल्तान बनने की कोशिश की, लेकिन वह जल्द ही हराया गया था और उसे बाद में बलबन्द हो जाना पड़ा।

 

8. नासिरूद्दीन महमूद (1246-1265)

नासिरुद्दीन महमूद दिल्ली सल्तनत का दसवें सुल्तान था और अलाउद्दीन मसूदशाह के पुत्र थे। उनका शासनकाल 1246 से 1265 तक चला।

नासिरुद्दीन महमूद ने अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को समृद्ध बनाने का प्रयास किया। उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सत्ता को स्थापित किया और अपने सेनाओं को उन स्थानों पर तैनात किया जहां पहले से ही समस्याएं थीं।

नासिरुद्दीन महमूद ने अपने शासनकाल में समाज के विभिन्न वर्गों के लिए अनेक योजनाएं आरंभ की। उन्होंने विवाहों के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराईं ताकि लोगों को विवाह की व्यवस्था में कोई कठिनाई न हो। उन्होंने दान और ज़कात के नियमों को सुधारा और समाज के ग़रीब वर्गों के लिए कुछ आर्थिक सुविधाएं भी उपलब्ध कराईं।

नासिरुद्दीन महमूद का शासनकाल बहुत ही सफल था। उन्होंने दिल्ली सल्तनत को स्थायी रूप से स्थापित कर दिया था। उनकी मृत्यु 1265 में हुई थी।

 

9. गयासुद्दीन बलबन (1265-1287)

गयासुद्दीन बलबन दिल्ली सल्तनत के आठवें सुल्तान थे। उनका शासनकाल 1265 से 1287 तक चला। वे अलाउद्दीन ख़िलजी के समर्थक थे और उनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत का संघर्ष उन्नति करता रहा।

गयासुद्दीन बलबन अपने शासनकाल में देश में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने का प्रयास किया। उन्होंने विभिन्न शहरों में कई सुविधाएं उपलब्ध करवाईं जैसे शौचालय, सराय, मुसाफिर खाने आदि। उन्होंने विवाह के नियमों में सुधार किया और विवाह की व्यवस्था को सरल बनाने के लिए कई योजनाएं आरंभ कीं।

गयासुद्दीन बलबन के शासनकाल में सामाजिक और आर्थिक सुधार हुआ। उन्होंने बहुत से ग़रीबों को आर्थिक मदद प्रदान की और दान और ज़कात के नियमों को सुधारा। उन्होंने भी अपने शासनकाल में संगीत, कला और साहित्य को प्रोत्साहित किया था।

गयासुद्दीन बलबन का शासनकाल दिल्ली सल्तनत के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय था। वे दिल्ली सल्तनत के काल में बड़े परिवर्तनों का अवसर बने। उनके शासनकाल में इस्लाम धर्म के लिए बड़ी जीत हुई और दिल्ली सल्तनत में इस्लाम की शक्ति अधिक हुई। उन्होंने भी विविध विचारों और तंत्रों को अपने शासनकाल में शामिल किया था जो दिल्ली सल्तनत के सांस्कृतिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे।

उनके शासनकाल में कुछ आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हुईं। उन्होंने बड़ी संख्या में सिक्खों को दिल्ली में आने से रोक दिया था जो आर्थिक तंगी के कारण उन्हें नुकसान पहुँचाने लगे थे। उनके शासनकाल में मंदसौर व अजमेर के अलावा कोई अधिक बड़ी विजय नहीं हुई। उनकी मृत्यु के बाद उनका बेटा कैकुबाद नाम का सुल्तान बना।

 

10. शमशुद्दीन क्यूम़र्श (1287-1290) / गुलाम वंश का अंतिम शासक(gulam vansh ka antim shasak)

शमशुद्दीन क्यूम़र्श, जिसे अंग्रेजी में खलजी वंश का आखिरी सुल्तान भी कहा जाता है, दिल्ली सल्तनत का सिंहासन अधिकारी था। वह गयासुद्दीन बलबन के पुत्र नसीरुद्दीन महमूद के वजीर थे।

उनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत के अंतिम दिनों की संकट भरी स्थिति थी। उनका सिंहासनारोहण दिल्ली में उत्साह उत्पन्न नहीं किया गया था और वे बहुत कम समय तक सिंहासन पर बैठे रहे। उनकी सत्ता के दौरान दिल्ली सल्तनत के विभिन्न हिस्सों में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई थी।

उनके शासनकाल में दक्षिण भारत के विजय उनके द्वारा हुई। उन्होंने मालवा को अपने अधीन कर लिया था लेकिन इसके अलावा उनके शासनकाल में कोई बड़ी विजय नहीं हुई।

शमशुद्दीन क्यूम़र्श की मृत्यु 1290 ई. में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत में जल्द ही वंशविरोधी ताकतों के बीच युद्ध हो गया जिससे दिल्ली सल्तनत का अंत हो

 

FAQ : Gulam Vansh

गुलाम वंश का प्रथम शासक कौन था?

गुलाम वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था।

गुलाम वंश का संस्थापक कौन था?

गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था। उन्होंने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की थी और उन्हें गुलाम वंश के पहले सुल्तान के रूप में माना जाता है।

गुलाम वंश का अंतिम शासक कौन था?

शमशुद्दीन क्यूम़र्श, जिसे अंग्रेजी में गुलाम वंश का अंतिम शासक या आखिरी सुल्तान भी कहा जाता है, दिल्ली सल्तनत का सिंहासन अधिकारी था।

गुलाम वंश का असली नाम क्या है?

गुलाम वंश का असली नाम ‘गुलाम दिन’ था, जो कि इतिहास में ‘गुलाम वंश’ के नाम से जाना जाता है। यह वंश 13वीं सदी के दौरान दिल्ली सल्तनत के राज्य के अंतर्गत शासन करता था।

 

 

 

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