अभिप्रेरणा व्यक्ति की कार्य करने की (Capacity) एवं उसके द्वारा किये गये कार्य निष्पादन (Performance) मे जो अंतर होता है उसको न्यूनतम (Minimize) करने का कार्य करती है। यह एक मनोवैज्ञानिक ऊर्जा है जो व्यक्तियों को संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु प्रेरित करती है।
अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning & Definitions of Motivation):-
अभिप्रेरणा का अर्थ:-
प्रबंध एक नवोदित विषय है एवं प्रबंध का एक महत्वपूर्ण कार्य अभिप्रेरणा संबंधी नित्य नवीन विचारधाराओं की उत्पत्ति एवं इसके कार्य विस्तार को दृष्टिगत रखते हुये विचारकों ने इसे विविध प्रकार से परिभाषित किया है। बास (Luthans) के शब्दों में आज प्रत्येक व्यक्ति जन सामान्य एवं विद्वानों की अभिप्रेरणा के संबंध में अपनी-अपनी परिभाषाएँ है।” सामान्य अर्थों में अभिप्रेरणा एक आंतरिक इच्छा या भावना है जो किसी कर्मचारी को पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिये उत्प्रेरित करती है। अभिप्रेरणा की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार से है:-

अभिप्रेरणा की परिभाषा
1.स्टैनले पेन्स (Stanley Vance) के अनुसार:
“कोई भी ऐसी भावना या इच्छा जो किसी व्यक्ति की इच्छा को इस प्रकार परिवर्तित कर दें कि वह व्यक्ति कार्य करने को प्रेरित हो जाए, उसे अभिप्रेरणा कहते है।
2. कुन्दुज तथा ओडोनेल (Koontz & ODonnell) के शब्दों में : “लोगों को इच्छित तरीके से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना अभिप्रेरणा है।”
3. मैक्फारलैण्ड (Mefarland) के मतानुसार –
अभिप्रेरण मूलत: मनोवैज्ञानिक धारणा है। इसका संबंध किसी कर्मचारी अथवा अमें कार्यकर रही उन शक्तियों से है जो उसे किसी कार्य को विधिवत तरीके से करने या न करने हेतु प्रेरित करती है।”
4. विलियम जी. स्कॉट (William G. Scott) के मतानुसार
‘अभिप्रेरणा का तात्पर्य लोगों को इच्छित लक्ष्यों कोप्राप्त करने के लिए कार्य करने हेतु प्रेरित करने की प्रक्रिया सेहै।
5. विलियम ग्लूक (William Glueck) के अनुसार ‘अभिप्रेरण वह आंतरिक स्थिति है जो मानवीय व्यवहार को अर्जित प्रवाहित एवं कियाशील रखती है।”
निष्कर्ष: इस प्रकार उपरोक्त वर्णित परिभाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि अभिप्रेरणा प्रबंध का वह महत्वपूर्ण कार्य है जो व्यक्तियों की भावनाओं, इच्छाओं आवश्यकताओं आदि का अध्ययन कर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास करता है, जिससे व्यक्ति कार्य करने को तत्पर होकर संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपना अधिकतम योगदान प्रदान करता है।
अभिप्रेरणा की प्रकृति तथा विशेषताएँ
(Characterstics of Motivation):-
विभिन्न परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए अभिप्रेरणा
की निम्नांकित प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती है
1.यह एक सतत् प्रक्रिया है।
2.यह एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है।
3 यह मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि है।
4.अभिप्रेरण केवल मानवीय संसाधनों का ही किया जा
सकता है।
5 अप्रेरणा की विभिन्न विधियां होती है।
6 . अभिप्रेरण संतुष्टि का कारण नहीं अपितु परिणाम है।
7. यह व्यक्तियों की कार्य क्षमता कार्य कुशलता में वृद्धि करती है।
8 अभिप्रेरणा मनोबल से भिन्न होती है।
9.अभिप्रेरण में सम्पूर्ण व्यक्ति अभिप्रेरित होता है। उसका कोई एक भाग नहीं।
10. यह प्रबंधकीय सफलता का कारण एवं परिणामदोनों है।
अभिप्रेरण आवश्यकता एवं महत्व (Motivation – Needs & Importance)
उत्पादन के विभिन्न साधनों में मानव ही सजीव एवं सक्रिय साधन है अभिप्रेरणा के माध्यम से मनुष्य को सक्रिय एवं गतिशील बनाया रखा सकता है। यदि मानवीय संसाधन अभिप्रेरित होकर कार्य करने हेतु तत्पर हो जाये तो उत्पादन के अन्य साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग एवं संगठन के लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से संभव हो जाती है। इसीलिए उपक्रम के प्रत्येक कर्मचारी को अभिप्रेरित करना नितान्त आवश्यक है। अभिप्रेरणा के महत्व को के दृष्टिगत रखते हुए ही रेन्सिस लिकट (Rensis Likert) ने इसे प्रबंध का हृदय (The Core of Managment) माना
अभिप्रेरणा का संबंध मानवीय पहलू से है अभिप्रेरण से व्यक्तियों की कार्यक्षमता में वृद्धि की जाती है एवं उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास किया जाता है। यदि किसी उपक्रम के कर्मचारियों को अभिप्रेरित नहीं किया जायेगा तो उनकी योग्यता एवं कार्यक्षमता में निरन्तर हास होता जायेगा, इसीलिए एलेन (Allen) ने लिखा है कि अपर्याप्त अभिप्रेरित व्यक्ति एक सुदृढ़ संगठन का प्रभाव समाप्त कर देते है। (Poorly motivated people can nullify the soundest organization.)
अभिप्रेरणा के महत्व को अग्रांकित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
1. निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक (Helps in achieving determined goals):
किसी भी संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अभिप्रेरणा अत्यंत आवश्यक है। अभिप्रेरण से कर्मचारियों को उन कार्यों को करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिनको करने से संस्था के लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं। संस्था के पास प्रचुर मात्रा में वित्तीय संसाधन, उच्च व गुणवत्ता किस्म का माल श्रेष्ठ व आधुनिक तकनीक तथा अन्य संसाधनों की उपलब्धता होने के बावजूद भी अभिप्रेरण के अभाव में संगठन का लक्ष्य प्राप्त करना कठिन है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए एलेन ने ठीक ही लिखा है कि अपर्याप्त अभिप्रेरित कर्मचारी सुदृढ संगठन का प्रभाव भी समाप्त कर देते है।
किसी भी संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु अभिप्रेरणा अत्यंत आवश्यक है। अभिप्रेरण से कर्मचारियों को उन कार्यों को करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिनको करने से संस्था के लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते है। संस्था के पास प्रचुर मात्रा में वित्तीय संसाधन, उच्च व गुणवत्ता किस्म का माल श्रेष्ठ व आधुनिक तकनीक तथा अन्य संसाधनों की उपलब्धता होने के बावजूद भी अभिप्रेरण के अभाव में संगठन का लक्ष्य प्राप्त करना कठिन है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए एलेन ने ठीक ही लिखा है कि अपर्याप्त अभिप्रेरित कर्मचारी सुदृढ़ संगठन का प्रभाव भी समाप्त कर देते है।
2. कार्य संतुष्टि में अभिवृद्धि
(Increase in job satisfaction):
अभिप्रेरणा के द्वारा कर्मचारी द्वारा किये जाने वाले कार्य के प्रति उसकी रूचि पैदा करके, उसके कार्य की महत्ता एवं उपादेयता का विश्लेषण करके कर्मचारी की।
कार्य संतुष्टि बढ़ाई जा सकती है। यदि कर्मचारी की कार्य के प्रति रुचि जागृत नहीं की जायेगी तो वह कार्य के प्रति उत्साहित नहीं रहेगा। यही नहीं, एक कर्मचारी अपने लाभों की तुलना अन्य व्यक्तियों को प्राप्त लाभों से करता है एवं तुलनात्मक दृष्टि से उसे ज्यादा लाभ मिलते है तो वह कार्य के प्रति संतुष्टि महसूस करता है, अभिप्रेरण के द्वारा कर्मचारी की इस आवश्यकता को पूरा किया जाता है अभिप्रेरणा आवश्यकता पूर्ति के माध्यम से कर्मचारी को संतुष्ट करने का प्रयास करती है तथा विभिन्न वित्तीय एवं अवित्तीय घटकों द्वारा कार्य संतुष्टि स्तर में अभिवृद्धि करती है।
3.संसाधनों का सदुपयोग
(Proper utilisation of resources):
संस्था के मानवीय संसाधनों के कुशलतम उपयोग हेतु कर्मचारियों को अभिप्रेरित किया जाना आवश्यक है। एक कुशल कर्मचारी को यदि अभिप्रेरित नहीं किया जाता है तो उसकी कार्यक्षमता एक अकुशल कर्मचारी के समान होती है। अभिप्रेरणा से कर्मचारी की योग्यताओं का विकास करके संस्था हित में उनका सदुपयोग किया जा सकता है। एक अभिप्रेरित कर्मचारी व्यक्तिगत हितों की अपेक्षा संस्था के हितों को प्राथमिकता प्रदान करता है।
4. मनोबल में वृद्धि (Improves morale):
मनोबल कार्य करने की इच्छा का नाम है अभिप्रेरणा से कर्मचारी की आवश्यकता की पूर्ति होती है एवं उसे मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है। मानसिक संतुष्टि के परिणाम स्वरूप कर्मचारी का व्यवहार एवं प्रवृतियां संस्था के अनुकूल बनती है, जिससे कर्मचारी में अधिकाधिक कार्य करने की इच्छा जागृत होती है एवं उसका मनोबल बढ़ता है।
5. अच्छे श्रम सम्बन्धों का निर्माण (Build good labour relations):
अभिप्रेरणा इस बात पर बल देती है कि श्रमिक मूलतः एक मनुष्य है। अतः उसके साथ सम्मानजनक मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिये अभिप्रेरणा से प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के मध्य पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास पनपता है, जिससे कर्मचारियों की शिकायतों, नैराश्य, हताशा, हड़ताल, तालाबंदी आदि में कमी आती है एवं अच्छे श्रम संबंधों की स्थापना होती है।
6. कर्मचारी अनुपस्थिति एवं आवर्तन में कमी (Reduced employee absenteeism & turnover ):
अभिप्रेरित कर्मचारी अपने कार्य एवं वातावरण से संतुष्ट होते हैं। कार्य एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने में वे अपना सकारात्मक सहयोग देते है, जिससे कर्मचारी अनुपस्थिति में कमी आती है। अभिप्रेरित कर्मचारी स्थायी रूप से संस्था में बने रहते हैं जिससे श्रम आवर्तन दर में भी कमी आती है। इस प्रकार एक अच्छी एवंसुदृद्ध अभिप्रेरण व्यवस्था से कर्मचारी अनुपस्थिति एवं आवर्तन मेंकमी लायी जा सकती है।
7. प्रबंधकीय कार्यों का आधार (Basis of managerial functions):
प्रबंध के विभिन्न कार्य यथा नियोजन, संगठन, समन्वय निर्देशन नियंत्रण आदि को सम्पन्न करने के लिये अभिप्रेरणा आवश्यक है। यदि कर्मचारियों को अभिप्रेरित नहीं किया गया तो वे प्रबंध के इन आधारभूत कार्यों का निष्पादन उचित ढंग से नहीं करेंगे ब्रीच के शब्दों में “अभिप्रेरण की समस्या प्रबंध कार्यवाही की कुंजी है। “
8. परिवर्तनों में सुविधा (Facilitates changes):
सामान्यतःकर्मचारियों का परिवर्तनों के प्रतिनकारात्मक सोच रहता है, वे अपने इस नकारात्मक रवैये के कारण परिवर्तनों का विरोध करते है। अभिप्रेरणा के द्वारा कर्मचारियों के इस नकारात्मक चिन्तन को सकारात्मक चिन्तन में परिवर्तित करने में सरलता एवं सुगमता रहती है। परिणामतः वर्तमान समय में त्वरित गति से होने वाले तकनीकी परिवर्तन, विषयवस्तु परिवर्तन आदि को कर्मचारी सहजता से स्वीकार कर लेता है।
9. समूह भावना का विकास
(Development of team spirit):
अभिप्रेरण की क्रियान्विति से कर्मचारी संतुष्ट एवं लाभान्वित होते हैं तथा उनके मध्य स्नेह, सहयोग एवं सामंजस्य की भावना का विकास होता है। इन भावनाओं के उत्पन्न होने से संगठन में समूह भावना पनपती है, जिससे संस्था के उद्देश्य प्राप्ति में सहायता मिलती है।
10. संस्था ख्याति में वृद्धि
(Enhance corporate image):
जो संस्था अपने कर्मचारियों को संतुष्ट एवं प्रसन्न रखती है, व्यावसायिक जगत में उस संस्था की ख्याति में चार चांद लग जाते है। कर्मचारी ऐसी संस्था में कार्य करना पसंद करते हैं जहाँ उनकी आवश्यकताओं व इच्छाओं को पूरा कर उनको खुश रखने का प्रयास किया जाता है। ऐसे संगठनों में अन्य संस्थानों के कर्मचारी भी कार्य करने के लिए लालायित रहते है।
11. व्यावहारिक प्रबंध की कुंजी
(Key to behavioural management action):
ई.एफ.एल. ब्रीच के शब्दों में “अभिप्रेरणा व्यावहारिक प्रबंध की एक कुंजी है तथा निष्पादित रुप में प्रबंध का एक महत्वपूर्ण कार्य है। सभी प्रबंधकीय कार्यों में अभिप्रेरणा की कियान्विति आवश्यक है। अभिप्रेरणा के क्रियान्वयन से ही प्रबंधकीय कार्यों में गति लाई जा सकती है।”
अभिप्रेरणा की तकनीकें
(Techniques of Motivation):
कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिये विभिन्न साधना एवं विविध तकनीकों को काम में लिया जाता है। अध्ययन के दृष्टिकोण से इन तकनीकों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है:
A. वित्तीय तकनीके (Financial techniques):
कर्मचारी अभिप्रेरण में वित्तीय तकनीकों का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रबंध विचारको ने सर्वसम्मति से वित्तीय तकनीकों के महत्व को स्वीकार किया है। वित्तीय तकनीकों का संबंध मुद्रा या आर्थिक अभिप्रेरण से है। यह सर्वविदित तथ्य है कि वित्त से व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ सामाजिक एवं विलासिता की आवश्यकताओं की पूर्ति भी संभव है। अतः वित्तीय तकनीकें अभिप्रेरणा के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
वित्तीय तकनीक में उच्च वेतन वेतन वृद्धि बोनस लाभों में हिस्सेदारी, पेंशन, ग्रेच्यूटी, बीमा, भविष्य निधि अंशदान, विशेष वेतन वृद्धि आदि शामिल किये जाते है।
B. अवित्तीय तकनीक
(Non financial techniques):
अभिप्रेरण की अवितीय तकनीकों का धन या मुद्रा से
कोई संबंध नहीं होता है। ये तकनीके मनोवैज्ञानिक होती है। जो व्यक्ति की भावनाओं एवं इच्छाओं को पूरा करने में सहायक होती है। अवित्तीय तकनीक वैयक्तिक एवं सामूहिक दोनों प्रकार की हो सकती है। वैयक्तिक अद्वितीय तकनीक में व्यक्तिगत सम्पर्क पदोन्नति, विकास के अवसर, कार्य विस्तार आदि शामिल किये जा सकते हैं। सामूहिक अवित्तीय तकनीक में समूह चर्चा सहभागिता सम्मेलन एवं समाएँ, सामूहिक प्रशिक्षण आदि सम्मिलित किये जा सकते हैं। कुछ प्रमुख अवित्तीय तकनीकों का सविस्तार वर्णन निम्न प्रकार से है:
1. पद एवं सेवा सुरक्षा
(Status & Job security):
कर्मचारियों को निरन्तर स्थायी रूप से कार्य उपलब्ध करवाकर उन्हें सेवा सुरक्षा प्रदान की जाती है। सेवा सुरक्षा प्रदान करने से कर्मचारी छटनी सेवामुक्ति आदि की जोखिम से मुक्त हो जाता है एवं उसे अभिप्रेरित किया जाना सरल हो जाता है। इसी प्रकार कर्मचारी उच्च पदों को प्राप्त करना चाहता है तथा वर्तमान पद को बनाये रखना चाहता है। यह सुविधा प्रदान करके भी अभिप्रेरण किया जा सकता है।
2. प्रशंसा एवं सम्मान (Praise & Honour)
कर्मचारियों द्वारा अपने उत्तरदायित्वों को सफलतापूर्वक निश्चित समय में पूर्ण करने पर उनकी
किया जाता है ताकि उनकी कार्य के प्रति रूचि बढ़ें एवं निरसता में कमी आये कार्य परिवर्तन से कर्मचारियों के अनुभव एवं मनौवैज्ञानिक विकास में बढ़ोतरी होती है।
3. समूह चर्चा (Group discussion)
समूह चर्चा के तहत कर्मचारियों के एक विशेष वर्ग या समूह के साथ सामयिक विषय पर विचार मंथन किया जाता है। इसमें सभी कर्मचारियों को अपने विचार रखने का अवसर मिलता है एवं अन्य व्यक्तियों के विचारों को जानने का मौका मिलता है। इस विधि से कर्मचारियों के आत्मविश्वास, मनोबल एवं उनके ज्ञानार्जन में वृद्धि होती है।
4● विकास के अवसर
(Opportunity for development)
कर्मचारी के योग्य विकास अवसर
उन्हें पर्याप्त अवसर प्रदान करके अभिप्रेरित किया जा [सकता] है। इस हेतु संस्थान द्वारा कर्मचारियों के शिक्षण प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिये। एवं बुनौतियां
(Competition & challenges) संस्थान के बहुत से कर्मचारी योग्य व दक्ष होने के
बावजूद भी पूर्ण मनोयोग से कार्य नहीं करते है. ऐसे कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने क लिए स्वस्थ प्रतिस्पद्धों का आयोजन किया जाना चाहिये कर्मचारी संस्था के पूर्व रिकार्डस को तोड़कर नया रिकार्ड बनाने हेतु जी-जान लगा देते है एवं प्रतियोगिता में विजयश्री का वरण करना चाहते है। इसी प्रकार कुछ कर्मचारी चुनौतियों को स्वीकार करने में गर्वित महसूस करते है उनको अभिप्रेरित करने के लिए संस्था के लक्ष्यों एवं उनको सौंपे जाने वाले
सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की जानी चाहिये एवं उपयुक्त अवसरों पर उनका सम्मान किया जाना चाहिये। कर्मचारियों की प्रशंसा एवं सम्मान करने से उनके आत्म सम्मान आत्मविश्वास एवं मनोबल में बढ़ोतरी होती है। कर्मचारियों को शाबाश धन्यवाद पदोन्नति तथा प्रमाण पत्र आदि देकर प्रशंसा एवं सम्मान व्यक्त किया जा सकता है।
5. प्रबंध में सहभागिता
(Partcipation in Management)
कर्मचारियों को के महत्वपूर्ण कार्यों, लक्ष्यों व्यूह रचनाओं, नीति निर्धारण एवं निर्णयों में भागीदारी देकर अभिप्रेरित किया जा सकता है। सहभागिता से कर्मचारी अधिक उत्तरदायी एवं सृजनशील हो जाता है तथा संस्था के प्रति अपनत्व की भावना बढ़ जाती है। निर्णयों में सहभागिता होने से कर्मचारी निर्णयों से बद्ध हो जाते है, जिससे संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति सरलता से होती है एवं कर्मचारी भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है।
6. प्रभावी नेतृत्व एवं (Effective leadership & Supervision)
अच्छा नेतृत्व में मानव के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण उनकी समस्याओं के समाधान में रूचि तथा निरीक्षण कार्य में उनके साथ सद्व्यवहार करता है, जिससे श्रम संबंधों में मधुरता आती है। अच्छा नेतृत्व कर्मचारियों में कार्य के प्रति रूचि जागृत करता है। कर्मचारी अभिप्रेरण हेतु पर्यवेक्षण की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। एक अच्छा पर्यवेक्षक अपने मानवीय व्यवहार से तथा व्यवहारिक एवं सहयोगात्मक पर्यवेक्षण करके कर्मचारियों के साथ अनौपचारिक सों का निर्माण करता है, जिससे कर्मचारियों की कार्य के प्रति रुचि व लक्ष्य प्राप्ति के प्रति उत्साह बढ़ता है।
7. अधिकार प्रत्यायोजन (Delegation of authority)
किसी कर्मचारी को केवल उत्तरदायित्व सौपना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे इस उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए पर्याप्त अधिकार दिये जाने चाहिये। उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों को अधिकार प्रत्यायोजित कर उन्हें अभिप्रेरित कर सकते है। अधिकार प्रत्यायोजन से कर्मचारियों में विश्वास जागृत होता है, उनमें कार्य करने की भावना प्रोत्साहित होती है एवंअधीनस्थों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
8.कार्य विस्तार एवं कार्य परिवर्तन (Job expansion & alteration):
कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिये कार्य विस्तार एवं कार्य परिवर्तन एक उपयोगी उपाय है। इसमें एक व्यक्ति को एक कार्य सौंपने की बजाय समूह को कई कार्य सौंप दिये जाते है, जिससे कर्मचारी कार्य संपादन के दौरान सामाजिक संबंधों को स्थापना भी कर लेते है। कार्य परिवर्तन में कर्मचारियों का एक निश्चित समयान्तराल में कार्य परिवर्तित किया जाता है ताकि उनकी कार्य के प्रति रूचि बढ़ें एवं निरसता में कमी आये कार्य परिवर्तन से कर्मचारियों के अनुभव एवं मनौवैज्ञानिक विकास में बढ़ोतरी होती है।
9. प्रतिस्पर्द्धा एवं चुनौतियां
(Competition & challenges):
संस्थान के बहुत से कर्मचारी योग्य व दक्ष होने के बावजूद भी पूर्ण मनोयोग से कार्य नहीं करते है, ऐसे कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का आयोजन किया जाना चाहिये। कर्मचारी संस्था के पूर्व रिकार्डस को तोड़कर नया रिकार्ड बनाने हेतु जी-जान लगा देते है एवं प्रतियोगिता में विजयश्री का वरण करना चाहते है। इसी प्रकार कुछ कर्मचारी चुनौतियों को स्वीकार करने में गर्वित महसूस करते हैं उनको अभिप्रेरित करने के लिए संस्था के लक्ष्यों एवं उनको सौंपे जाने वाले कार्यों को चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
10. स्वस्थ वातावरण
(Healthy Environment):
कार्य स्थल पर स्वस्थ वातावरण रहने से कर्मचारी संतुष्ट रहता है तथा संतुष्ट कर्मचारी उपक्रम के लिए अधिक मेहनत एवं मनोयोग से कार्य करने में रूचि लेता है अत: संगठन में कार्य स्थल की दशाएँ अच्छी होनी चाहिये। यही नहीं, एक कर्मचारी अपने कार्य के दौरान या कार्य के पश्चात जहाँ आराम करता है उस स्थान का वातावरण भी अच्छा होना चाहिये ।
अभिप्रेरणा की विचारधाराएँ (Theoris/Concepts of Motivation):
अभिप्रेरणा की कुछ प्रमुख विचारधाराएँ निम्न प्रकार है
1.मास्लो पिरामिड या मास्लो की आवश्यकता क्रम पर आधारित विचारधाराएँ (Maslow’s hierarchy of needs theory):
अभिप्रेरण की इस विचारधारा का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक अब्राहम एच मास्लो द्वारा सन् 1943 में किया गया यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त है एवं वह उन आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु प्रयत्न करने को तत्पर रहता है। मास्लों के मतानुसार यदि यह ज्ञात कर लिया जावे कि किस कर्मचारी की कौनसी आवश्यकता अधूरी है तो उस अधूरी आवश्यकता को पूर्ण करके व्यक्ति को अभिप्रेरित किया जा सकता है। यह विचारधारा अभिप्रेरणा की सर्वश्रेष्ठ विचारधाराओं में से एक है। मास्लो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में पांच आवश्यकताओं की क्रमबद्धता विद्यमान होती है, जो निम्न प्रकार से है:
1. शारीरिक आवश्यकताएँ (Physiological needs)
शारीरिक आवश्यकताएँ मनुष्य की प्राथमिक
आवश्यकताएँ होती है। मनुष्य के जीवन अस्तित्व को बनाये रखने हेतु शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति आवश्यक होती है ये आवश्यकताएँ सर्वाधिक आवश्यक प्रभावशाली एवं शक्तिशाली मानी जाती है जिनकी पूर्ति मनुष्य हर स्थिति में करना चाहता है। इन आवश्यकताओं में भोजन, कपड़ा, मकान, यौन सम्पर्क, स्वच्छ हवा, धूप आदि की आवश्यकताएँ शामिल की जाती है। मनुष्य की ये आवश्यकताएँ ज्यों ही संतुष्ट हो जाती है, फिर ये आवश्यकताएँ उसे अभिप्रेरित नहीं करती है।
2. सुरक्षात्मक आवश्यकताएँ (Safety needs)
सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की उत्पति शारीरिक
आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात होती है। जब किसी व्यक्ति को भावी शारीरिक या मानसिक संकट का भय उत्पन्न होता है तो वह अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है। भविष्य में आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक संकटों के प्रति सुरक्षा के लिए आश्वस्त होना ही इन आवश्यकताओं की उत्पति का मुख्य कारण है। इनमें आजीवन आय का साधन, बीमा, पेन्शन, भविष्य निधि आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।
3. स्नेह या अपनल की आवश्यकताएँ (Love or Belonging Needs)
मानव एक सामाजिक प्राणी है सामाजिक होने के कारण वह समाज में अपना मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है। वह अपने जीवन में पारस्परिक स्नेह, प्यार, अपनत्व मित्रता आदि की आकांक्षा रखता है जब किसी व्यक्ति में इस प्रकार की आकांक्षा उत्पन्न होती है तो यह उसकी सामाजिक या स्नेह की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की उत्पति शारीरिक एवं सुरक्षात्मक आवश्यकता की उचित स्तर तक संतुष्टि होने के बाद होती है। यदि व्यक्ति की अपनत्व या सामाजिक आवश्यकताओं
की संतुष्टि नहीं होती है तो वह असहयोग, विरोध करने को तत्पर हो जाता है।
4. स्वाभिमान या अहंकारी आवश्यकताएँ (Esteem or Ego needs)
सामाजिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के पश्चात व्यक्ति की अहम् (Ego ) एवं स्वाभिमान (Esteem) की आवश्यकताएँ उत्पन्न होती है। इस आवश्यकता में व्यक्ति कार्यरत संस्थान में पद, मान स्थिति, मान्यता प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता, निर्णयन अधिकार आदि की इच्छा करने लगता है। इन आवश्यकताओं में व्यक्ति स्वयं को महत्वपूर्ण सिद्ध करना चाहता है। व्यक्ति की इनमें से कुछ आवश्यकताएँ संतुष्ट हो जाती है एवं संभव है कि कुछ आवश्यकताएँ जीवन पर्यन्त भी संतुष्ट नहीं हो। इस आवश्यकता की पूर्ति विशेष योग्यता एवं क्षमता रखने वाले व्यक्ति ही कर पाते है। सामान्य व्यक्तियों की यह आवश्यकता सामान्यतः असंतुष्ट ही रहती है।
5. आत्म विकास की आवश्यकताएँ (Self actualisation needs)
मास्लो के मतानुसार आवश्यकताओं की क्रमबद्धता में यह अंतिम आवश्यकता है। आत्म विकास की आवश्यकता का तात्पर्य व्यक्ति की उस आवश्यकता से है, जिसमें एक व्यक्ति वह बनना चाहता है जो वह बन सकता है, अर्थात उसके लिए उसमें क्षमता एवं योग्यता है। मानव में आत्म विकास की आवश्यकता उसके भीतर की सृजनशीलता, क्षमता एवं योग्यताओं के कारण पैदा होती है जब व्यक्ति अपनी भीतर छिपी हुई शक्तियों को जागृत कर वह सब कुछ बनना चाहता है। जो वह बन सकता है की भावना से उत्प्रेरित हो जाता है तो यह आवश्यकता मनुष्य को कार्य करने हेतु अभिप्रेरित करती है। यह आवश्यकता किसी अभाव या कमी अथवा असंतुष्टि का परिणाम नहीं है अपितु यह दबी हुई क्षमताओं को उभारने हेतु स्वतः उत्पन्न होती है मास्लो ने इस आवश्यकता का वर्णन करते हुए लिखा है कि एक संगीतकार को संगीत बनाना चाहिये, एक पेन्टर को पेन्ट करना चाहिये, एक कवि को कविता लिखनी चाहिये, यदि वह अन्ततोगत्वा प्रसन्न होना चाहता है। जो भी एक मनुष्य बन सकता है उसे बनना चाहिये।”
11. हर्जबर्ग की द्विघटक विचारधारा(Herzberg’s Two Factor Theory)
द्विघटक विचारधारा के प्रतिपादक मनोवैज्ञानिक फेडरिक हर्जबर्ग माने जाते है। उन्होनें एवं इनके साथियों ने Psychological Service Pittsburgh में करीब 200 इंजीनियर्स पर शोध किया एवं उनसे कार्य के बारे में विचार जानकार इस विचारधारा का प्रतिपादन किया हर्जबर्ग के मतानुसार जब व्यक्ति कार्य स्थल पर अपने कार्य से असंतुष्टि प्राप्त करता है तो उस असंतुष्टि का कारण वह वातावरण है जहाँ वह काम करता है। इस वातावरण को जो घटक प्रभावित करते हैं हजबर्ग ने उन्हें स्वास्थ्य या आरोग्य घटक के नाम से संबोधित किया।
ये घटक व्यक्ति को अभिप्रेरित नहीं करते हैं किन्तु उसे असंतुष्ट होने से रोकते है अर्थात ये कर्मचारियों की संतुष्टि को बनाये रखने हेतु आवश्यक होते है। अभिप्रेरक घटक की आवश्यकता आरोग्य घटक के पश्चात होती है। अभिप्रेरक घटक कर्मचारियों को संतुष्टि व अभिप्रेरणा प्रदान करने का कार्य करते है। इन घटकों में 6 घटकों की पहचान की गई है।
1. स्वास्थ्य / आरोग्य घटक (Hygiene factor): हर्जबर्ग ने स्वास्थ्य घटकों के नाम से जिन घटकों की पहचान की उनमें निम्नलिखित प्रमुख है:
1) संस्था की नीतियाँ (Company Policies)
2) संस्था का प्रशासन (Administration)
3) कार्य दशाऐं (Working Conditions)
4)पर्यवेक्षण (Supervision)
5) पारस्परिक वैयक्तिक संबंध (Inter personalRelations)
6) वेतन या मजदूरी (Salary or Wages)
7) अनुषंगी लाभ (Fringe Benefit)
8) कार्य सुरक्षा (Job Security)
2. अभिप्रेरक घटक (Motivating factor):
ये घटक कार्य से संबंधित घटक होते है। इन्हें संतुष्टि प्रदान करने वाले घटक भी कहा जाता है। हर्जबर्ग एवं उनके साथियों द्वारा प्राप्त निष्कर्षो के अनुसार अभिप्रेरक घटक में निम्न बिन्दुओं को शामिल किया जा सकता है:
1.उपलब्धियाँ (Achievement)
2.मान्यता एवं सम्मान (Recognition &Honour)
3. विकास ( Development or Advancement)
4.उत्तरदायित्व (Responsibility)
5.व्यक्तिगत उन्नति ( Personal Development)
6.कार्य की प्रकृति (Nature of Job)
3. मेकग्रेगर की ‘एक्स’ एवं ‘बाई’ विचारधारा (‘X’ and ‘Y’ Theory of MeGregor)
अभिप्रेरण की ‘एक्स एवं वाई विचारधारा का प्रतिपादन लेखक एवं मनोवैज्ञानिक डगलस मेकग्रेगर ने अपनी पुस्तक Human Side of Enterprises में किया। मेकग्रेगर ने इस विचारधारा में मानव अभिवृत्तियों एवं व्यवहार के संबंध में परस्पर दो विरोधी विचारधाराएँ प्रस्तुत की है। उन्होंने कार्यशील व्यक्तियों की कार्य के प्रति उनकी धारणा के आधार पर ‘एक्स’ एवं ‘बाई’ समूह के रूप में उनका वर्गीकरण किया। इनमें ऋणात्मक मान्यताओं वाली विचारधारा को उन्होनें ‘एक्स’ नाम दिया एवं सकारात्मक मान्यताओं वाली विचारधारा को ‘वाई’ नाम से सम्बोधित किया। मेक्ग्रेगर के अनुसार इन मान्यताओं के आधार पर कर्मचारियों की प्रवृत्ति का अध्ययन कर उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है।
(1) ‘एक्स’ विचारपारा (‘X’ theory)
एक्स विचारधारा कर्मचारियों के प्रति नकारात्मक एवं निराशाजनक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह विचारधारा परम्परागत अवधारणा पर आधारित होने के कारण मनुष्य को नियंत्रित रखने पर बल देती है। इस विचारधारा की प्रमुख मान्यताएँ कर्मचारी समूह के संबंध में निम्न प्रकार से है:
1.एक औसत कर्मचारी स्वभावतः आलसी होता है एवं वह कम से कम काम करना चाहता है अर्थात ये कार्य को बोझ समझते है एवं उससे बचना चाहते है।
2.ये लोग उत्तरदायित्वों से दूर रहना पसंद करते है।
ये
3.येपरिवर्तनका विरोध करते है एवं परम्परागत विधियोंसे ही कार्य करना पसंद करते है।
4, ये सामान्यत महत्वाकांक्षी नहीं होते हैं, सृजनशीलता का अभाव पाया जाता है।
5. कर्मचारी आत्मकेन्द्रित या स्वार्थी होता है एवं संस्था से इनका बहुत कम लगाव होता है।
6.इनसे कार्य करवाने लिए दण्ड, नय, प्रताड़ना कासहारा लिया जाता है।
7. ये कर्मचारी आर्थिक एवं वित्तिय लाभों के लिए कार्य करते है।
(2) ‘बाई’ विचारधारा (Y’ theory):
‘वाई’ विचारधारा एक्स विचारधारा के बिल्कुल विपरीत है यह मानवीय संसाधनों के प्रति सकारात्मक रवैया प्रस्तुत करती है। यह कार्य वातावरण में में सकारात्मक एवं उत्तरदायित्वपूर्ण भूमिकाओं को प्रमुख आधार मानती है। इस विचारधारा को कर्मचारियों के संबंध में प्रमुख मान्यताएँ निम्न प्रकार से है।
1.कर्मचारी कार्य को स्वाभाविक एवं सहज किया मानते हैं।
2.ये नवीन विधियों एवं परिवर्तनों का स्वागत करते है एवं उनको अपनाना चाहते है।
3.ये महत्वाकांक्षी होते हैं तथा उत्तरदायित्व को स्वीकार करते है।
4. ये कर्मचारी कल्पनाशील एवं सृजनशील होते है। ये स्वप्रेरित एवं स्वनियंत्रित होते है।
5.ये कर्मचारी अपनी क्षमता एवं योग्यता का अधिकतम सदुपयोग करना चाहते है।
6.ये केवल आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु काम नहीं करते है, अपितु स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास हेतु काम करते है।
7.ये कर्मचारी अपनी क्षमता एवं योग्यता का
सदुपयोग करना चाहते है।
8.ये केवल आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु काम नहीं करते हैं, अपितु स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास हेतु काम करते है।
III. विलियम औची की ‘जेड’ विचारधारा (William Ouchi’s Z theory) :
अभिप्रेरण की इस विचारधारा को प्रतिपादित करने का श्रेय अमेरिकन प्रबंधशास्त्री प्रो. विलियम जी. औची को जाता है। इन्होंने अपनी Theory 2 How American Business can meet the Japanese Challenge नामक पुस्तक, जो कि सन् 1981 में प्रकाशित हुई थी में इस विचारधारा का वर्णन किया है। प्रो. औधी ने अमेरिका एवं जापान की कई बड़ी बड़ी कम्पनियों की प्रबंध व्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात यह पुस्तक लिखी एवं इस अध्ययन एवं शोध से प्राप्त निष्कर्षो को उन्होनें ‘जेड’ विचारधारा नाम से प्रस्तुत किया।
जेड विचारधारा जापानी एवं अमेरिकी प्रबंध की तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। इसमें जापानी तथा अमेरिकी कम्पनियों की अच्छाइयों को शामिल किया गया है। प्रो. ओची ने मूलरूप से इस विचारधारा में जापानी प्रबंध की उन विशेषताओं को उजागर किया है, जिसकी वजह से यह अमेरिकी प्रबंध से श्रेष्ठ माना जाता है।
प्रो. औची के अनुसार जापानी प्रबंध का मूल आधार विश्वास (Trust) मर्मशता (Subtlety) तथा आत्मीयता (Intimacy) है इनके अनुसार ये तीनों तत्त्व अभिप्रेरक घटक
1. आजीवन रोजगार योजना (Life time employment):
प्रो. औची के मुताबिक कर्मचारियों को जीवन पर्यन्त रोजगार दिया जाना चाहिये जापानी संस्थान में एक बार चयन के पश्चात मंदीकाल में भी कम्पनिया किसी कार्मिक की छटनी या जबरन छुट्टी नहीं करती है। संस्थाएँ घाटा उठाकर भी अपने कार्मिकों को बनाये रखती है। इससे कर्मचारी संगठन के प्रति वफादार एवं निष्ठावान बनते हैं।
2. मंदगति से मूल्यांकन एवं पदोन्नति (Slow evaluation & Promotion)
आँधी ने अपने निष्कर्षो में बताया कि जापानी प्रबंधक यह मानते है कि उत्पादकता किसी एक व्यक्ति की देन नहीं होकर सामूहिक प्रयासों का परिणाम होती है अतः किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत उपलब्धि के आधार पर पदोन्नत न करके इस आधार पर पदोन्नत किया जाना चाहिये कि वह कार्य समूह को किस प्रकार अभिप्रेरित करता है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि प्रो. औधी के अनुसार लम्बवत पदोन्नति स्थान पर समानान्तर पदोन्नति की जानी चाहिये। जापानी प्रबंधक सामान्यतया किसी व्यक्ति को रोजगार से हटाते नहीं है एवं उनकी मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति के गुण / अवगुण का मूल्यांकन करने के लिए 12 वर्ष की अवधि अत्यंत अल्प है। अवे दीर्घकाल करीब 10 वर्षों की सेवा के पश्चात् अपने कर्मचारियों का प्रथम कार्य मूल्यांकन करते है।
3. जीवन वृति पथ (Career path)
जापान में प्रबंधकों की विशेषज्ञता पर अधिक बल नहीं दिया जाता है। यह विचारधारा मानती है कि कर्मचारियों की जीवन वृत्ति पथ का निर्धारण गैर विशिष्टिकृत (Non specialised) आधार पर होना चाहिये जापान में यह प्रयास रहता है कि प्रबंधक समस्त विभागों के कार्यों को समझे इस हेतु कार्य परिवर्तन की नीति होती है।
4. मानवीयता पर बल (Emphasis on humanity):
यह विचारधारा स्पष्ट करती है कि प्रबंधकों को
कर्मचारियों पर पूर्ण ध्यान देना चाहिये। उन्हें अपने कर्मचारियों का ध्यान केवल कार्यस्थल तक ही सीमित नहीं रखना चाहिये। प्रबंधकों को कर्मचारी के साथ-साथ उसके परिवार उसकी रुचियों, महत्वकांक्षाओं आदि का ध्यान रखना चाहिये एवं कर्मचारी के साथ सदैव मानवीयता पूर्ण व्यवहार करना चाहिये।
5. सामूहिक निर्णयन
(Collective desion making)
यह विचारधारा इस तथ्य पर जोर देती है कि संस्था के कर्मचारियों को निर्णयन में भागीदार बनाया जाना चाहिये। इसके लिए निर्णय लेते समय संस्था के कर्मचारियों से परामर्श किया जाना चाहिये, उनसे सलाह एवं सुझाव मांगे जाने चाहिये जो निर्णय कर्मचारियों से जुड़े हुये हो एवं प्रत्यक्ष रूप से उनको प्रभावित करते हो ऐ निर्णया के लिए सामूहिक निर्णयन प्रक्रिया का सहारा लिया जाना चाहिये।
6. मानव संसाधन विकास
(Human resource development)
इस विचारधारा के अनुसार कर्मचारियों में कार्य के प्रति लगन एवं उत्साह पैदा करने के लिए मानव संसाधन विकास की योजना बनानी चाहिये कर्मचारियों की छिपी हुई क्षमता को पहचानकर इन क्षमताओं के विकास हेतु उचित के शिक्षण प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये एवं कर्मचारियों को इस हेतु प्रेरित किया जाना चाहिये। कार्य संवर्द्धन तथा कार्य समृद्धि के द्वारा मी अधीनस्थों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
7. अनौपचारिक नियंत्रण (Informal control)
जेड विचारधारा में संस्था के कर्मचारियों के साथ अनौपचारिक संबंधों का निर्माण करके उन पर अनौपचारिक नियंत्रण के तरीको से नियंत्रण करने का प्रयास किया जाता है। इस हेतु प्रबंधकों को अपने अधीनस्थों में विश्वास तथा सहयोग की भावना पर बल देना चाहिये।
निष्कर्ष:
इस प्रकार उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि जंड विचारधारा अभिप्रेरण के एक नये दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है। इस विचारधारा का मूल तत्व पारस्परिक विश्वास, स्नेह एवं सहयोग है।
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त
(Principles of Motivation)
कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने में कुछ निश्चित सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए। प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं।
1. कर्मचारियों में सुरक्षा की भावना उत्पन्न की जानी चाहिए। 2. कर्मचारियों को उनकी उपलब्धियों से अवगत करवाना चाहिए।
3. उनके कार्यों के लिए उनको प्रशंसा करनी चाहिए तथा उन्हें मान्यता देनी चाहिए। 4. कर्मचारियों में संस्था के प्रति आत्मीयता का भाव उत्पन्न करना चाहिए।
5. कर्मचारियों को उन्नति एवं विकास का अवसर देना चाहिए।
6. कर्मचारियों का कुशल नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।
7. कर्मचारियों के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए।
8. कर्मचारियों के धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विचारों का स्वागत करना चाहिए।
9. कर्मचारियों के सुझावों पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।
10. कर्मचारियों को संस्था के नीति-निर्धारण में पर्याप्त सहभागिता देनी चाहिए।
11. संगठन में समूह भावना (Team-spirit) उत्पन्न करनी चाहिए।
12. कर्मचारियों को निराश नहीं होने देना चाहिए।
13. कार्य को रुचिकर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
14. कर्मचारी के व्यक्तिगत अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए।
15. कर्मचारी को आन्तरिक दबी हुई शक्तियों के विकास का प्रयोग करना चाहिए।
अभिप्रेरणा के उद्देश्य
(Objects of Motivation)
अभिप्रेरणा देने का मूल उद्देश्य व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करना है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक उद्देश्य हैं, वे निम्नलिखित हैं:
1. कर्मचारियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
2. कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करना।
3. कर्मचारियों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करना।
4. व्यवसाय में अच्छे मानवीय सम्बन्धों का निर्माण करना तथा उन्हें सुदृढ़ बनाना।
5. कर्मचारियों के मनोबल को सुदृढ़ करना।
6. कर्मचारियों की कार्यक्षमता में सुधार करना तथा बनाए रखना।
7. कर्मचारियों को कार्य सन्तुष्टि प्रदान करना।
8. मानवीय साधनों का सदुपयोग करना।
9. संस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करना।
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम अर्जुन सिंह है. मै अभी बीकॉम से ग्रेजुएशन कर रहा हूं। मुझे वेबसाइट पर आर्टिकल लिखना और शेयर करना बहुत पसंद है। मुझे जितनी भी नॉलेज है वो आपके साथ हमेशा साझा करता रहूंगा। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद!
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