vikari shabd kise kahate hain :शब्द जब वाक्य में प्रयुक्त होता है तब वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित होता है तथा इस सम्बन्ध की अभिव्यक्ति के लिए शब्द कई स्वरूपों में प्रकट होता है। प्रयोग अथवा रूप परिवर्तन की दृष्टि से शब्दों के दो भेद किये गये हैं-

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विकारी शब्द किसे कहते हैं |
विकारी शब्द किसे कहते हैं (vikari shabd kise kahate hain) :
एसे शब्द जिनके स्वरूप मे लिंग, वचन, काल आदि के प्रभाव से विकार होता होता हो अर्थात सब परिवर्तन हो जाते हो – विकारी शब्द कहलाते है |
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विकारी शब्द के प्रकार / भेद (vikari shabd ke bhed)
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
1. संज्ञा –
साधारण शब्दों में ‘नाम’ को ही संज्ञा कहते हैं। जैसे ‘राम ने आगरा में सुन्दर ताजमहल देखा।’ इस वाक्य में हम पाते हैं कि ‘राम’ एक व्यक्ति का नाम है, आगरा स्थान का नाम है, ताजमहल एक वस्तु का नाम है तथा ‘सुन्दर’ एक गुण का नाम है। इस प्रकार ये चारों क्रमशः व्यक्ति, स्थान, वस्तु और भाव के नाम हैं। अतः ये चारों संज्ञाएँ हुईं।
संज्ञा की परिभाषा : – Vikari Shabd
परिभाषा – ‘किसी प्राणी, स्थान, वस्तु तथा भाव के नाम का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते है |
संज्ञा के भेद- Vikari Shabd
संज्ञा के मुख्य रूप से तीन भेद हैं-
i. व्यक्तिवाचक संज्ञा
ii. जातिवाचक संज्ञा
iii. भाववाचक संज्ञा
i. व्यक्तिवाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से एक ही व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम का बोध हो उसे ‘व्यक्तिवाचक संज्ञा’ कहते हैं। व्यक्तिवाचक संज्ञा, ‘विशेष’ का बोध कराती है ‘सामान्य’ का नहीं। व्यक्तिवाचक संज्ञा में व्यक्तियों, देशों, शहरों, नदियों, पर्वतों, त्योहारों, पुस्तकों, दिशाओं, समाचार- पत्रों, दिनों, महीनों आदि के नाम आते हैं।
ii. जातिवाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से किसी जाति के संपूर्ण प्राणियों, वस्तुओं, स्थानों आदि का बोध होता हो, उसे ‘जातिवाचक संज्ञा’ कहते हैं। गाय, आदमी, पुस्तक, नदी आदि शब्द अपनी पूरी जाति का बोध कराते हैं, इसलिए जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं। प्रायः जातिवाचक संज्ञा में वस्तुओं, पशु- पक्षियों, फल-फूल, धातुओं, व्यवसाय संबंधी व्यक्तियों, नगर, शहर, गाँव, परिवार, भीड़-जैसे समूहवाची शब्दों के नाम आते हैं।
iii. भाववाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से प्राणियों या वस्तुओं के गुण, धर्म, दशा, कार्य, मनोभाव आदि का बोध हो, उसे ‘भाववाचक संज्ञा’ कहते हैं। प्रायः गुण-दोष, अवस्था, व्यापार, अमूर्तभाव तथा क्रिया के मूलरूप भाववाचक संज्ञा के अंतर्गत आते हैं।
भाववाचक संज्ञा की रचना मुख्य पाँच प्रकार के शब्दों से होती है-
- जातिवाचक संज्ञा से
- सर्वनाम से
- विशेषण से
- क्रिया से
- अवयव से
1. जातिवाचक संज्ञा से –
जातिवाचक संज्ञा
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भाववाचक संज्ञा
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शिशु
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शैशव, शिशुता
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विद्वान
|
विद्वता
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मित्र
|
मित्रता
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पशु
|
पशुता
|
पुरुष
|
पुरुषत्व
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सती
|
सतीत्व
|
लड़का
|
लड़कपन
|
गुरु
|
गौरव
|
बच्चा
|
बचपन
|
सेवक
|
सेवा
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2. सर्वनाम से –
सर्वनाम
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भाववाचक संज्ञा
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मम
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ममता/ ममत्व
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स्व
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स्वत्व
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आप
|
आपा
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सर्व
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सर्वस्त्व
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निज
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निजत्व
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अपना
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अपनत्व
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एक
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एकता
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3. विशेषण से –
विशेषण
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भाववाचक संज्ञा
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भयानक
|
भय
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विधवा
|
वैधव्य
|
चालक
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चालाकी
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शिष्ट
|
शिष्टता
|
ऊँचा
|
ऊंचाई
|
नम्र
|
नम्रता
|
बुरा
|
बुराई
|
मोटा
|
मोटापा
|
स्वस्थ
|
स्वास्थ्य
|
मीठा
|
मीठास
|
4. क्रिया से –
क्रिया
|
भाववाचक संज्ञा
|
सुनना
|
सुनवाई
|
गिरना
|
गिरावट
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चलना
|
चाल
|
कमाना
|
कमाई
|
बैठना
|
बैठक
|
पहचाना
|
पहचान
|
खेलना
|
खेल
|
जीना
|
जीवन
|
चमकना
|
चमक
|
सजाना
|
सजावट
|
5. अव्यव से –
क्रिया
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भाववाचक संज्ञा
|
दूर
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दुरी
|
ऊपर
|
उपरी
|
धिक्
|
धिक्कार
|
शीघ्र
|
शीघ्रता
|
मना
|
मनाही
|
निकट
|
निकटता
|
निचे
|
निचाई
|
समीप
|
सामीप्य
|
2. सर्वनाम -Vikari Shabd
भाषा में सुन्दरता, संक्षिप्तता एवं पुनरुक्ति दोष से बचने के लिए जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है वह ‘सर्वनाम’ होता है। सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ है ‘सब का नाम’। अर्थात् सभी संज्ञाओं के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। इससे वाक्य सहज एवं सरल हो जाता है। जैसे-सीता आज शाला नहीं आई क्योंकि सीता बीमार है। इसके स्थान पर यदि यह कहा जाए ‘सीता आज शाला नहीं आई क्योंकि ‘वह’ बीमार है तो सर्वनाम के प्रयोग से यह वाक्य अधिक सरल एवं सुन्दर बन जाएगा।’
सर्वनाम की परिभाषा –
परिभाषा-‘संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं।’ जैसे-मैं, तुम, वह, हम, आप, उसका आदि।
सर्वनाम के भेद –
सर्वनाम के निम्नलिखित छः भेद हैं-
- पुरुषवाचक
- उत्तमपुरुष – मैं, हम
- मध्यमपुरुष – तुम, तेरा
- अन्यपुरुष – वह, उसे
- निश्चयात्मक
- अनिश्चयवाचक
- सम्बन्धवाचक
- प्रश्नवाचक
- निजवाचक
जो, सो, उसकी कौन, किससे, स्वयं, स्वतः
(i) पुरुषवाचक सर्वनाम-
जिन सर्वनामों का प्रयोग कहने वाले, सुनने वाले व जिसके विषय में कहा जाए के स्थान पर किया जाता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं-
(अ) उत्तम पुरुष-
बोलने वाला या लिखने वाला व्यक्ति अपने लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग करता है वे उत्तम पुरुष सर्वनाम कहलाते हैं|
जैसे – मैं, हम, हम सब हम लोग आदि।
(ब) मध्यम पुरुष –
जिसे सम्बोधित करके कुछ कहा जाए या जिससे बातें की जाए या जिसके बारे में कुछ लिखा जाए, उनके नाम के बदले में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम मध्यम पुरुष सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे- तू, तुम, आप, आप लोग, आप सब।
स) अन्य पुरुष-
जिसके बारे में बात की जाए या कुछ लिखा जाए, उनके नाम के बदले में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम अन्य पुरुष सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे-वे, वे लोग, ये, यह, आप।
(ii) निश्चय वाचक सर्वनाम –
जो सर्वनाम निकटस्थ अथवा दूरस्थ व्यक्ति या पदार्थ की ओर निश्चित संकेत करते हैं, उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
इसके मुख्य दो प्रयोग हैं-
(a) निकट की वस्तुओं के लिए यह, ये।
(b) दूर की वस्तुओं के लिए वह, वे।
(iii) अनिश्चयवाचक सर्वनाम –
जिस सर्वनाम से किसी ऐसे व्यक्ति या पदार्थ का बोध होता हो जिसके विषय में निश्चित सूचना नहीं मिलती, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे- कुछ, कोई। ‘कोई’ सर्वनाम का प्रयोग प्रायः प्राणिवाचक सर्वनाम के लिए होता है।
जैसे कोई उसे बुला रहा है।
‘कुछ’ सर्वनाम का प्रयोग वस्तु के लिए होता है, जैसे-कुछ केले यहाँ पड़े हैं। कुछ रुपये दे दो।
(iv) सम्बन्धवाचक सर्वनाम –
दो उपवाक्यों के बीच में प्रयुक्त होकर एक उपवाक्य की संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरे उपवाक्य के साथ दर्शाने वाला सर्वनाम सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहलाता है।
जैसे- जो, जिसे, जिसका, जिसको।
जो सोएगा, सो खोएगा।
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
जो सत्य बोलता है, वह नहीं डरता।
(v) प्रश्नवाचक सर्वनाम-
जिस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए होता है, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे-क्या, किससे, कौन।
वहाँ दरवाजे पर कौन खड़ा है?
कल तुम किससे बात कर रहे थे? आज तुम्हें क्या चाहिए?
(vi) निज वाचक सर्वनाम-
ऐसे सर्वनाम जिनका प्रयोग वक्ता या लेखक (स्वयं) अपने लिए करते हैं, निजवाचक कहलाते हैं। यथा-आप, अपना, स्वयं, खुद आदि।
जैसे-मैं अपनी पुस्तक पढ़ रहा हूँ। मेरे घर कब आ रहे हैं? इन वाक्यों में ‘अपनी’ तथा ‘मेरे’ शब्द निजवाचक सर्वनाम हैं।
3. क्रिया – Vikari Shabd
क्रिया का अर्थ है करना। क्रिया के बिना कोई वाक्य पूर्ण नहीं होता। किसी वाक्य में कर्ता, का तथा काल की जानकारी भी क्रिया पद के माध्यम से ही होती है। हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत है संस्कृत में क्रिया रूप को ‘धातु’ कहते हैं।
धातु- हिन्दी क्रिया पदों का मूल रूप ही ‘धातु’ है।
धातु में ‘ना’ जोड़ने से हिन्दी के क्रिया पद बनते हैं, जैसे-
पढ़ + ना = पढ़ना, उठ + ना
पढ़ना, उठ + ना = उठना आदि।
क्रिया की परिभाषा :
परिभाषा: ‘जिस शब्द से किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते हैं।
1. कर्म के आधार पर-
क्रिया शब्द का फल किस पर पड़ रहा है, वह किसे प्रभावित कर रहा है, इस आधार पर किया जाने वाला भेद कर्म के आधार क्रिया के भेद के अन्तर्गत आता है। इसे आधार पर क्रिया के प्रमुख दो भेद हैं-
(अ) सकर्मक क्रिया-
स अर्थात् सहित, अतः सकर्मक का अर्थ है-कर्म के साथ।
परिभाषा – ‘जिस क्रिया का फल कर्ता को छोड़कर कर्म पर पड़े, वह सकर्मक क्रिया कहलाती है |
जैसे-बच्चा चित्र बना रहा है या गीता सितार बजा रही है।
अब यदि प्रश्न किया जाए कि बच्चा क्या बना रहा है तो उत्तर होगा-‘चित्र’ (कर्म) तथा गीता क्या बजा रही है तो उत्तर होगा- ‘सितार’ (कर्म) ।
सकर्मक क्रिया के दो भेद हैं-
(i) एक कर्मक-
जिस वाक्य में क्रिया के साथ एक कर्म प्रयुक्त हो, उसे एक कर्मक क्रिया कहते जैसे-‘माँ अखबार पढ़ रही है।’ यहाँ माँ के द्वारा एक ही कर्म (पढ़ना) हो रहा है।
(ii) द्विकर्मक क्रिया-
जिस वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त हों, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे-अध्यापक छात्रों को कम्प्यूटर सिखा रहे हैं। क्या सिखा रहे हैं? -कम्प्यूटर। किसे सिखा रहे हैं? -छात्रों को (छात्र सीख रहे हैं।) इस प्रकार दो कर्म एक साथ घटित हो रहे हैं।
(ब) अकर्मक क्रिया-
जिस वाक्य में क्रिया का प्रभाव या फल कर्ता पर पड़ता है क्योंकि कर्म प्रयुक्त नहीं होता उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे-आशा गाती है। कौन गाती (कर्म) है? – आशा (कर्ता)।
2. संरचना के आधार पर-
वाक्य में क्रिया का प्रयोग कहाँ किया जा रहा है, किस रूप में किया जा रहा है, के आधार पर किये जाने वाले भेद संरचना के आधार पर कहलाते हैं।
इसके पाँच प्रकार हैं।
(अ) संयुक्त क्रिया-
जब दो या दो से अधिक भिन्न अर्थ रखने वाली क्रियाओं का मेल हो, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे-अतिथि आ गए हैं। स्वागत करो। इस वाक्य में ‘आ गए मुख्य क्रिया है तथा ‘स्वागत करो’ सहायक क्रिया है। इस प्रकार मुख्य एवं सहायक क्रिया दोनों का संयोग है अतः इसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
मुख्य क्रिया के साथ सहायक क्रियाएँ एक से अधिक भी हो सकती हैं।
(ब) नामधातु क्रिया-
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्द जब धातु की तरह प्रयुक्त होते हैं, उन्हें नामधातु’ कहते हैं और इन नामधातु शब्दों में जब प्रत्यय लगाकर क्रिया का निर्माण किया जाता है तब शब्द ‘नाम धातु क्रिया’ कहलाते हैं। जैसे-
-हाथ (संज्ञा) – हथिया (नामधातु) – हथियाना (क्रिया)
-सूखा (विशेषण) – सूखा (नामधातु) – सुखाना (क्रिया)
-अपना (सर्वनाम) – अपना (नामधातु) – अपनाना (क्रिया)
(स) प्रेरणार्थक क्रिया-
जब कर्ता स्वयं कार्य का संपादन न कर किसी दूसरे को करने के लिए रित करे या करवाए उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-
सरपंच ने गाँव में तालाब बनवाया। इसमें सरपंच ने स्वयं कार्य नहीं किया, बल्कि अन्य लोगों को प्रेरित कर उनसे तालाब का निर्माण करवाया अतः यहाँ प्रेरणार्थक क्रिया है।
द) पूर्णकालिक क्रिया-
जब किसी वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हों तथा उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले सम्पन्न हुई हो तो पहले सम्पन्न होने वाली क्रिया पूर्ण कालिक क्रिया कहलाती है। इन क्रियाओं पर लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह अव्यय तथा क्रिया विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त होती है।
जैसे-
मूल धातु में ‘कर’ लगाने से सामान्य क्रिया को पूर्णकालिक क्रिया का रूप दिया जा सकता है।
– बलवीर खेलकर पढ़ने बैठेगा।
– वह पढकर सो गया |
इन वाक्यों में खेलकर (‘खेल’ मूल धातु + कर) एवं पढ़कर (पढ़ मूल धातु + कर) पूर्णकालिक क्रिया कहलाएगी।
पूर्णकालिक क्रिया का एक रूप ‘तात्कालिक क्रिया’ भी है। इसमें एक क्रिया के समाप्त होते तत्काल दूसरी क्रिया घटित होती है तथा धातु + ते से इस क्रिया पद का निर्माण होता है। जैसे-
पुलिस के आते ही चोर भाग गया।
इसमें ‘आते ही तात्कालिक क्रिया है।
(य) कृदन्त क्रिया-क्रिया शब्दों मे जुड़न वाले प्रत्यय ‘कृत’ प्रत्यय कहलाते हैं तथा कृत प्रत्य के योग से बने शब्द कृदन्त कहलाते हैं। क्रिया शब्दों के अन्त में प्रत्यय योग से बनी क्रिया कृदन्त क्रिय कहलाती है। जैसे-
क्रिया कृदन्त क्रिया
चल- चलना, चलता चलकर
लिख- लिखना, लिखता, लिखकर।
(3) काल के आधार पर जिस काल मे क्रिया सम्पन्न होती है उसके अनुसार क्रिया के ती भेद हैं-
(अ) भूतकालिक क्रिया–
क्रिया का वह रूप जिसके द्वारा बीते समय में कार्य के सम्पन्न हो का बोध होता है, भूतकालिक क्रिया कहलाती है। जैसे- वह विदेश चला गया। उसने बहुत सुन्दर गीत गाया
(ब) वर्तमानकालिक क्रिया–
क्रिया का वह रूप जिससे वर्तमान समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है, वर्तमानकालिक क्रिया कहलाती है। जैसे-
गीता हॉकी खेल रही है। विमल पुस्तक पढ़ रहा है।
(स) भविष्यत् कालिक क्रिया-
क्रिया का वह रूप जिसके द्वारा आने वाले समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है, भविष्यत् कालिक क्रिया कहते हैं। जैसे-
-गार्गी छुट्टियों में कश्मीर जाएगी।
-दिनेश निबन्ध प्रतियोगिता मे भाग लेगा।
4. विशेषण – Vikari Shabd
विशेषता बतलाने वाला शब्द ही विशेषण कहलाता है। विशेषण के प्रयोग से व्यक्ति, वस्तु का यथार्थ स्वरूप तो प्रकट होता ही है साथ ही भाषा की प्रभावशीलता भी बढ़ जाती है।
विशेषण की परिभाषा :
परिभाषा – ‘ऐसे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाते हैं, विशेषण कहलाते हैं।’ विशेषण जिस शब्द की विशेषता बतलाता है, वह शब्द ‘विशेष्य’ कहलाता है। जैसे-नीला आकाश, छोटी पुस्तक एवं भला व्यक्ति में नीला, छोटी एवं भला शब्द विशेषण है तथा आकाश, व्यक्ति विशेष्य हैं।
विशेषण के प्रकार-
विशेषण पाँच प्रकार के होते हैं-
- गुणवाचक विशेषण
- संज्यावाचक विशेषण
- परिमाणवाचक विशेषण
- संकेतवाचक विशेषण
- व्यक्तिवाचक विशेषण
(i) गुणवाचक विशेषण –
ऐसे शब्द जो किसी संज्ञा या सर्वनाम के गुण, दोष, रूप, रंग, आकार, स्वभाव अथवा दशा का बोध कराते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
जैसे- पुराना कमीज, काला कुत्ता, मीठा आम आदि ।
(ii) संख्यावाचक विशेषण-
ऐसे शब्द जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित/अनिश्चित संख्या, कम या गणना का बोध कराते हैं, वे संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-
(अ) नश्चित संख्या वाचक विशेषण – जैसे-एक, दूसरा, तीनों, चौगुना आदि एवं (ब) अनिश्चय संख्यावाचक- जैसे कई, कुछ, बहुत, सब आदि।
(iii) परिमाण वाचक विशेषण –
ऐसे शब्द जो किसी वस्तु, पदार्थ या जगह की मात्रा, तौल या माप का ध कराते हैं वे परिमाण वाचक विशेषण कहलाते हैं। इसके दो उपभेद हैं-
(अ) निश्चित परिमाण वाचक विशेषण – जैसे दो लीटर, पाँच किलो एवं तीन मीटर आदि।
(ब) अनिश्चित परिमाण वाचक विशेषण – जैसे थोड़ा, बहुत, कम, ज्यादा आदि।
(iv) संकेतवाचक विशेषण – ऐसे शब्द जो सर्वनाम हैं किन्तु वाक्य में विशेषण के रूप में प्रयुक्त हो रहे अर्थात् संज्ञा की विशेषता प्रकट कर रहे हैं वे संकेतवाचक विशेषण कहलाते हैं। चूंकि मूल रूप में ये सर्वनाम हैं इसलिए ये विशेषण ‘सार्वनामिक विशेषण’ भी कहलाते हैं।
जैसे-
इस गेंद को मत फेंकों।
उस पुस्तक को पढ़ो।
कोई सज्जन आए हैं।
इन वाक्यों में इस, उस था कोई शब्द सार्वनामिक अथवा संकेतवाचक विशेषण हैं।
(v) व्यक्तिवाचक विशेषण-
ऐसे शब्द जो मूल रूप से व्यक्तिवाचक संज्ञा हैं किन्तु वाक्य में प्रशेषण का कार्य कर रहे हैं, उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं। यद्यपि ये स्वयं संज्ञा शब्द हैं किन्तु क्य में अन्य संज्ञा शब्द की ही विशेषता बता रहे हैं। जैसे-बनारसी साड़ी, कश्मीरी सेब, बीकानेरी भुजिया दि। इनमें बनारसी, कश्मीरी एवं बीकानेरी ऐसे ही संज्ञा शब्द हैं जो यहाँ विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए
प्रविशेषण – Vikari Shabd
ऐसे शब्द जो विशेषण की विशेषता बतलाते हैं, प्रविशेषण कहलाते हैं। जैसे-
वह बहुत परिश्रमी है। शीला अति विनम्र लड़की है। इन दोनों वाक्यों में परिश्रमी व विनम्र विशेषण तथा ‘बहुत’ व ‘अति’ प्रविशेषण हैं।
विशेषण की रचना
कुछ शब्द मूल रूप में विशेषण ही होते हैं किन्तु कुछ संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया या अव्यय शब्दों कसाथ प्रत्यय जोड़कर विशेषण बनाए जाते हैं। जैसे-
(i)
संज्ञा से विशेषण-
संज्ञा + प्रत्यय = विशेषण
रंग + ईन = रंगीन
राष्ट्र + ईय = राष्ट्रीय
स्वर्ण + इम = स्वर्णिम
(ii) सर्वनाम से विशेषण-
मैं + एरा = मेरा
तुम + हारा = तुम्हारा
(iii) क्रिया से विशेषण-
पूजन + ईय = पूजनीय
लूट + एरा = लुटेरा
झगड़ा + आलू = झगड़ालू
(iv) अव्यय से विशेषण-
बाहर + ई = बाहरी
पीछे + ला = पिछला
FAQ: vikari shabd kise kahate hain
Q 1. विकारी कितने प्रकार के होते हैं?
Ans. विकारी 4 प्रकार के होते हैं:- संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण |
Q 2. संज्ञा विकारी कैसे हैं?
Ans. किसी प्राणी, स्थान, वस्तु तथा भाव के नाम का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते है |
Q 3. विकारी शब्द का अर्थ क्या होता है?
Ans. एसे शब्द जिनके स्वरूप मे लिंग, वचन, काल आदि के प्रभाव से विकार होता होता हो अर्थात सब परिवर्तन हो जाते हो – विकारी शब्द कहलाते है |
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम अर्जुन सिंह है. मै अभी बीकॉम से ग्रेजुएशन कर रहा हूं। मुझे वेबसाइट पर आर्टिकल लिखना और शेयर करना बहुत पसंद है। मुझे जितनी भी नॉलेज है वो आपके साथ हमेशा साझा करता रहूंगा। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद!
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