जीएसटी (GST) का क्या मतलब होता है : नियम, फुल फॉर्म, अर्थ एंव विशेषताएं और लाभ – हानि
GST FULL FORM In Hindi
GST KA FULL FORM: GOODS & SERVICE TAX
GST FULL FORM IN HINDI: वस्तु एंव सेवा कर
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What is GST in Hindi
वस्तु एवं सेवा कर का परिचय (GST in Hindi)
About GSt in Hindi : वस्तु एवं सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है। हमारे देश में इसे 1 जुलाई, 2017 से लागू किया गया है।
इसके पूर्व हमारे देश में केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये गये थे।
भारत एक प्रजातान्त्रिक गणतन्त्र (Democratic Republic) देश है तथा हमारे देश में कानून की सर्वोच्च शक्ति संविधान में निहित है।
हमारे संविधान में इस बात का उल्लेख है कि कानूनी अधिकार के बिना किसी भी कर का संग्रहण नहीं किया जा सकता है।
GST निष्कर्ष:अतः वस्तु एवं सेवा कर का परिचय (सम्बन्धित प्रावधान) जानने के पूर्व संक्षेप में अप्रत्यक्ष करों की पृष्ठभूमि जानना भी उचित रहेगा।
अप्रत्यक्ष करों की पृष्ठभूमि
(Background of Indirect Taxes)
कर से आशय (Meaning of Tax) : कर सरकार द्वारा लगाया गया आर्थिक प्रभार है जिसका भुगतान जनता द्वारा सरकार को किया जाता है।
सरकार इस धन का प्रयोग जनता को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए करती है। कर सामान्यतः व्यक्ति या सम्पत्ति पर लगाया जाता है।
करों के प्रकार : कर का भार वहन करने की दृष्टि से इसे निम्न दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
(1) प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)
(2) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)
(1) प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) :
यदि कर का वास्तविक भार भी उसी व्यक्ति को वहन करना पड़े जिस पर यह कर लगाया गया है, तो ऐसे कर को प्रत्यक्ष कर कहते हैं। जैसे, आयकर।
आयकर किसी व्यक्ति की आय पर लगाया जाता है। पूर्व में कई अन्य प्रत्यक्ष कर प्रभाव में रहे हैं जैसे धनकर, उपहार कर, सम्पदा शुल्क (Estate Duty) आदि। वर्तमान में प्रमुख प्रत्यक्ष कर आयकर ही है।
(2) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) :
यदि कर का वास्तविक भार उसी व्यक्ति को वहन नहीं करना पड़े जिस पर यह लगाया गया है, बल्कि इसे अन्य व्यक्ति पर हस्तान्तरित कर दिया जाये तथा अन्तिम उपभोक्ता को इसका भार वहन करना पड़े तो इसे अप्रत्यक्ष कर कहते हैं।
यह कर माल अथवा सेवाओं पर लगाया जाता है। वर्तमान में ऐसे करों में वस्तु एवं सेवा कर (GST) एवं सीमा शुल्क प्रमुख हैं।
1 जुलाई, 2017 से पूर्व कई अप्रत्यक्ष कर प्रभाव में थे जिनमें केन्द्रीय विक्रय कर (CST), राज्य वैट (State Vat), उत्पाद शुल्क (Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) आदि प्रमुख अप्रत्यक्ष कर थे।
Job Work Under GST in Hindi :
CGST अधिनियम (धारा- 28) के अनुसार , कोई व्यक्ति की पंजीकृत वस्तु पर कोई दूसरा व्यक्ति के द्वारा treatment करके परिभाषित करना , अर्थात जो उस व्यक्ति क कार्य करता है तो जॉब वर्कर कहते है |
वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से पूर्व संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 265 के अनुसार केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार द्वारा बिना कानूनी अधिकार के किसी भी प्रकार का कोई भी कर नहीं लगाया जा सकता है अथवा नहीं वसूला जा सकता है।
कानून बनाने एवं कर या शुल्क लगाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 245 द्वारा दिया गया है।
वस्तु एवं सेवा कर GST का अर्थ एवं विशेषताएँ
वस्तु एवं सेवा कर से आशय (GST in Hindi)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(12A) के अनुसार मानवीय उपयोग की शराब की पूर्ति पर देय कर के अलावा माल या सेवा या दोनों की आपूर्ति पर कोई कर है।
संविधान में दी गई की यह परिभाषा संक्षिप्त है तथा इसकी विशेषताओं पर कोई प्रकाश नहीं डालती है। अतः हमें विद्वानों के विचारों को ध्यान में रखकर इसका अर्थ समझना होगा।
‘वस्तु एवं सेवा कर’ माल एवं सेवाओं के उपभोग पर लगाया गया गन्तव्य आधारित कर है।
यह निर्माण से लेकर अन्तिम उपभोग तक प्रत्येक लेन-देन पर लगाया जाने वाला कर है जिसमें पिछले लेन-देनों पर चुकाये गये करों की जमा (क्षतिपूर्ति के रूप में) स्वीकृत हो जाती है।
संक्षेप में, यह एक ऐसा कर है जिसमें केवल मूल्य वृद्धि (Value Addition) पर ही कर लगाया जाता है तथा इस कर का भार अन्तिम उपभोक्ता द्वारा वहन किया जाता है।
वस्तु एवं सेवा कर की प्रमुख विशेषताएँ
वस्तु एवं सेवा कर की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु एवं सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है (GST is an indirect tax) :
माल एवं सेवा कर एक अप्रत्यक्ष कर है। जैसा कि पूर्व में भी बताया गया है कि अप्रत्यक्ष कर ऐसा कर होता है जिसका भार अन्तिम उपभोक्ता को वहन करना होता है।
अन्य बीच के मध्यस्थ व्यापारी अथवा वितरक यद्यपि इस कर का भुगतान तो करते हैं परन्तु वे इसे क्रेता से वसूल करके इसको क्रेता पर हस्तान्तरित कर देते हैं तथा वसूल की गई कर की राशि में से चुकाई गई कर की राशि अपने पास रख लेते हैं तथा शेष राशि सरकार में जमा करा देते हैं।
2. यह समस्त माल एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है (It is levied on supply of all goods and services) :
सामान्यतः वस्तु एवं सेवा कर सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है जब तक की किसी वस्तु या सेवा को कर के दायरे से बाहर नहीं रखा गया हो।
उदाहरण के लिए मानवीय उपयोग की अलकोहल युक्त शराब की आपूर्ति को इस अधिनियम से बाहर रखा गया है।
अतः ऐसी शराब की आपूर्ति पर इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इसी प्रकार पैट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस, कच्चा तेल एवं विमान ईंधन को भी प्रारम्भ में अस्थाई रूप से इसके क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
इन वस्तुओं को GST के दायरे में लाने की तिथि GST Council द्वारा बाद में निर्धारित की जायेगी। इसी प्रकार कोई वस्तु माल की परिभाषा में नहीं आती है तो उसकी आपूर्ति पर भी इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे, जैसे—अंश एवं प्रतिभूतियाँ ।
3. यह कर केवल मूल्य संवर्धन पर ही लगाया जाता है (It is levied only on value addition):
यह कर व्यापारी द्वारा बढ़ाये गये मूल्य पर ही लगाया जाता है।
उदाहरण के लिए किसी व्यापारी ने ₹ 10,000 का माल खरीदा एवं 18 प्रतिशत कर (GST) चुकाया। ₹1,800 की कर की राशि को व्यापारी अपनी लागत में सम्मिलित नहीं करेगा।
व्यापारी ने उस माल पर ₹ 2,000 का खर्चा किया तथा ₹ 500 अपने लाभ के जोड़कर ₹ 12,500 में बेच दिया तथा ग्राहक से 12,500 × 18% – ₹2,250 कर (GST) वसूल किया।
व्यापारी ₹ 2,250 के कर में से अपने द्वारा चुकाये गये कर के ₹ 1,800 अपने पास रख लेगा तथा शेष ₹ 450 सरकार में जमा करा देगा जो उसके द्वारा की गई ₹2,500 की वृद्धि का 18 प्रतिशत है।
GST के तहत कर पर कर नहीं लगाया जाता है अर्थात् व्यापारी द्वारा चुकाये गये ₹ 1,800 पर कर नहीं लगाया गया है।
4. यह गन्तव्य आधारित उपभोग पर कर है (It is destination based tax on consumption) :
यदि माल के निर्माण एवं उपभोग का स्थान एक ही राज्य में हो तो उसी राज्य सरकार को कर की प्राप्ति का अधिकार होगा।
परन्तु यदि माल के निर्माण का स्थान एवं उसके उपभोग या आपूर्ति का स्थान भिन्न राज्य में हो तो स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि कर प्राप्ति का अधिकार कौन से राज्य को है? ऐसी स्थिति में चूँकि यह कर गन्तव्य पर आधारित है,
अत: कर प्राप्ति का अधिकार उस राज्य को होगा जहाँ माल का उपभोग हुआ है अथवा माल की आपूर्ति की गई है। उदाहरण के लिए, यदि कोई माल महाराष्ट्र में निर्मित होता है तथा उसको राजस्थान भेजा जाता है तथा राजस्थान में इसकी आपूर्ति होती है एवं उपभोग होता है।
अतः इस माल का गन्तव्य स्थान या पूर्ति का स्थान या उपभोग का स्थान राजस्थान में है तथा इस माल पर कर की प्राप्ति का अधिकार राजस्थान सरकार को होगा।
5. हमारे देश में दोहरा जी.एस.टी. मॉडल को लागू किया गया है (Dual GST model has been implemented in our country):
विश्व के अधिकांश देशों ने अपनी सामाजिक एवं आर्थिक संरचना के अनुसार जी.एस.टी. (GST) के दो प्रारूपों में से किसी एक प्रारूप को अपनाया है।
इनमें से एक है राष्ट्रीय स्तर पर जी.एस.टी. (GST) जिसमें यह कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है एवं दूसरा प्रारूप दोहरा जी.एस.टी. (Dual GST) प्रारूप (model) है|
जिसमें यह कर केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा एक साथ लगाया जाता है। भारत ने कनाड़ा एवं ब्राजिल द्वारा अपनाये गये दोहरा जी.एस.टी. प्रारूप (Dual GST model) को ही अपनाया है।
यदि माल अथवा सेवाओं की आपूर्ति एक ही राज्य में हुई है (Intra-state supply) तो केन्द्र सरकार द्वारा लगाये गये कर को केन्द्रीय जी.एस.टी. (CGST) कहा जायेगा तथा राज्यों अथवा संघीय क्षेत्रों द्वारा लगाये गये कर को राज्य जी.एस.टी. (SGST) / संघीय क्षेत्र जी.एस.टी. (UTGST) कहा जायेगा।
6. अनेक अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर एक कर (Single tax in place of several indirect taxes):
जी.एस.टी. (GST In Hindi) लागू होने से पूर्व भारत में अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये जा रहे थे, जैसे, केन्द्रीय बिक्री कर, राज्य मूल्य संवर्द्धित कर (State VAT), उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि।
अब इनमें से अधिकांश करों को जी.एस.टी. में सम्मिलित कर लिया गया है तथा एक कर जी.एस.टी. (GST) लागू किया गया है। जी.एस.टी. में सम्मिलित किये गये केन्द्र एवं राज्य के विभिन्न कर निम्न प्रकार हैं-
A. जी.एस.टी. में सम्मिलित किये गये केन्द्र के कर
- केन्द्रीय उत्पाद शुल्क
- अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (विशेष महत्त्व के माल)
- चिकित्सकीय एवं प्रसाधन सामग्री पर उत्पाद शुल्क
- अतिरिक्त सीमा शुल्क (CVD)
- विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (SAD)
- सेवा कर
- इन करों के साथ में केन्द्र द्वारा आरोपित उपकर (सैस) तथा अधिभार (सरचार्ज)
B. जी.एस.टी. में सम्मिलित किये गये राज्य के कर
- वैट/बिक्री कर
- केन्द्रीय बिक्री कर
- लक्जरी कर
- क्रय कर
- प्रवेश कर, चुंगी या स्थानीय निकाय कर
- मनोरंजन कर
- शर्त, जुआ एवं लाटरी कर
- उक्त करों के साथ लगने वाले उपकर (सैस) एवं अधिभार (सरचार्ज)
यद्यपि अधिकांश अप्रत्यक्ष करों को जी.एस.टी. में सम्मिलित कर लिया गया है, परन्तु फिर भी कुछ कर ऐसे रह गये हैं जो इसमें सम्मिलित नहीं किये गये हैं। ये कर निम्नलिखित हैं-
A. केन्द्रीय कर जो जी.एस.टी. में सम्मिलित नहीं किये गये-
- आधारभूत सीमा शुल्क
- शोध एवं विकास उपकर
- निर्यात शुल्क
- राशिपातन विरोध शुल्क
- सुरक्षा शुल्क
B. राज्य कर जो जी.एस.टी. में सम्मिलित नहीं किये गये
- राज्य उत्पाद शुल्क
- स्टाम्प शुल्क
- प्रोफेशन पर कर
- मोटर वाहन कर
महत्त्वपूर्ण टिप्पणी : कुछ वस्तुओं को वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में नहीं लिया गया है। इन पर पुराने कर ही लगाये गये हैं।
इसके अलावा कुछ ऐसी वस्तुएँ भी हैं जिनको यद्यपि वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में तो लिया गया है परन्तु पुराने कर भी लगाये जाते हैं। ऐसी कुछ प्रमुख वस्तुएँ निम्नलिखित हैं-
(1) मानवीय उपयोग की शराब : इसको वस्तु एवं सेवा कर के दायरे से बाहर रखा गया है तथा इसके उत्पादन पर राज्य उत्पाद शुल्क (State Excise) एवं विक्रय पर CST/VAT लगाया जाता है।
(2) पैट्रोल, डीजल, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस आदि : इन वस्तुओं को वस्तु एवं सेवा कर के दायरे से बाहर रखा गया है।
इन पर पुराने कर ही लगाये जाते हैं। इनके उत्पादन पर केन्द्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise) एवं विक्रय पर CST/VAT लगाया जाता है।
(3) तम्बाकू एवं इसके उत्पाद : यद्यपि इनको GST के दायरे में लिया गया है, परन्तु इन वस्तुओं
पर GST के साथ केन्द्रीय उत्पाद शुल्क भी लगाया जाता है।
(4) अफीम, भारतीय भांग तथा अन्य नारकोटिक ड्रग्स एवं नारकोटिक्स : इन वस्तुओं को यद्यपि GST के दायरे में लिया गया है, परन्तु इन वस्तुओं पर GST के साथ राज्य उत्पाद शुल्क (State Excise) भी लगाया जाता है।
7. कर प्रशासन में विकेन्द्रीयकरण (Decentralisation in Administration) :
केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) एवं एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) का आरोपण एवं प्रशासन केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा जबकि राज्य वस्तु एवं सेवा कर/संघीय क्षेत्र वस्तु एवं सेवा कर (SGST) / (UTGST) का आरोपण एवं प्रशासन सम्बन्धित राज्य सरकार/संघीय क्षेत्र सरकार द्वारा किया जायेगा।
8. आयात को अन्तर्राज्यीय आपूर्ति मानना (Import to be treated as inter-state supply):
आयात को अन्तर्राज्यीय आपूर्ति माना जायेगा। चूँकि एक राज्य से दूसरे राज्य में आपूर्ति को (Inter-state) आपूर्ति कहते हैं तथा उस पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर लागू होता है।
उसी प्रकार सेवाओं के आयात को भी अन्तर्राज्यीय आपूर्ति माना जायेगा एवं एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) देय होगा।
माल के आयका पर लगने वाले आधारभूत सीमा शुल्क के अलावा एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) भी देय होगा।
9. निर्यातों को शून्य दर वाली आपूर्ति मानना (Export to be treated as zero rated supply):
निर्यातों को शून्य दर वाली आपूर्ति माना जायेगा। दूसरे शब्दों में माल एवं सेवाओं के निर्यात पर कोई कर देय नहीं होगा।
परन्तु इनपुट कर जमा का लाभ उनको प्राप्त होगा। निर्यातकों को इनपुट कर की जमा वापसी (Refund) के रूप में प्राप्त होगी।
10. इनपुट कर जमा का प्रावधान (Provision of Input Tax Credit) :
इनपुट कर जमा का लाभ केवल पंजीकृत व्यक्ति को ही प्राप्त होता है।
प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति जब माल एवं सेवाओं की आपूर्ति करता है तो आपूर्ति प्राप्तकर्त्ता से वह सी.जी.एस.टी., एस.जी.एस.टी. अथवा आई.जी.एस.टी. (जो भी लागू हो) वसूल करता है।
इसी प्रकार जब उसको माल एवं सेवाओं की आपूर्ति की जाती है तो वह CGST, SGST अथवा IGST (जो भी लागू हो) का भुगतान करता है।
इनपुट कर जमा का अर्थ है कि पंजीकृत व्यक्ति उसके द्वारा वसूल किये गये कर में से चुकाये गये कर की जमा प्राप्त कर लेता है अर्थात् समायोजन कर लेता है तथा शेष राशि ही सरकार में जमा कराता है।
अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि कौन से कर की इनपुट कर जमा कौन-कौन से करों से ली जा सकती है अथवा उनके उपयोग का क्रम क्या होगा। एक कर की दूसरे कर से इनपुट कर जमा लेने के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान हैं-
(A) CGST का समायोजन CGST एवं IGST से किया जा सकता है।
(B) SGST का समायोजन SGST एवं IGST से किया जा सकता है।
(C) IGST का समायोजन IGST, CGST एवं SGST से इसी क्रम में किया जा सकता है।
नोट : CGST का समायोजन SGST से नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार SGST का समायोजन भी CGST से नहीं किया जा सकता है।
11. लघु स्तर पर व्यापार करने वाले व्यक्तियों को पंजीकरण से मुक्ति :
सामान्यतः कर योग्य माल की आपूर्ति करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पंजीकरण करवाना होता है।
परन्तु अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति की एक वित्तीय वर्ष में कुल आवर्त ₹40 लाख/₹20 लाख/₹ 10 लाख (उसके राज्य के लिए जो भी लागू हो) से अधिक नहीं हो तो उस व्यक्ति के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक नहीं होगा।
पंजीकरण से मुक्ति के प्रावधानों को विस्तार से पंजीकरण के अध्याय में समझाया गया है।
12. निश्चित सीमा से अधिक कुल आवर्त नहीं करने वाले व्यक्तियों को कम्पोजीशन स्कीम अपनाने का विकल्प :
ऐसे पंजीकृत व्यापारी जिनकी कुल आवर्त पिछले वित्तीय वर्ष अर्थात् वित्तीय वर्ष 2020-21 में ₹ 15 करोड़ (विशिष्ट श्रेणी के 8 राज्यों में ₹75 लाख) से अधिक नहीं हो तो वे वित्तीय वर्ष 2021-22 में कम्पोजीशन स्कीम का विकल्प अपना सकते हैं।
विशिष्ट श्रेणी के राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा, सिक्किम एवं उत्तराखण्ड हैं।
कम्पोजीशन स्कीम अपनाने वाले व्यक्ति पर विशिष्ट प्रावधान निम्न प्रकार लागू होंगे-
(i) कम्पोजीशन स्कीम अपनाने वाले व्यापारी को निम्न शुल्क प्रदान करना होगा-
Supplier |
CGST |
SGST/UTGST |
TOTAL GST |
Manufacturer |
0.5% |
0.5% |
1% |
Restaurant Services |
2.5% |
2.5% |
5% |
Others |
0.5% |
0.5% |
1% |
(ii) ऐसा व्यक्ति प्रतिमाह विवरणी प्रस्तुत करने के स्थान पर तिमाही विवरणी प्रस्तुत कर सकेगा।
(iii) ऐसा व्यक्ति इस अधिनियम के तहत कर का संग्रह नहीं कर सकेगा तथा उसे उसके द्वारा चुकाये गये कर के सम्बन्ध में इनपुट कर जमा का लाभ नहीं मिलेगा।
(iv) यदि वित्तीय वर्ष के दौरान किसी भी समय उसका कुल आवर्त निर्धारित सीमा 15 करोड़/75 लाख रुपये से अधिक हो जाता है तो उसका विकल्प उसी दिन से समाप्त हो जायेगा।
(v) ऐसा व्यक्ति अन्तर्राज्यीय क्रय तो कर सकता है परन्तु अन्तर्राज्यीय (inter-state) आपूर्ति नहीं कर सकेगा।
13. कर की दरों का सीमित होना (Limited Rates of Tax) :
GST काउन्सिल ने निम्नलिखित चार दरें निर्धारित की हैं-.
Revenue Neutral Rate (RNR) |
18% |
Product/ser. Which are basic necessities |
12% |
Essential Goods |
5% |
Demerit and Luxury Goods |
28%+ cess |
स्पष्टीकरण : उपरोक्त दरें राज्य के भीतर की आपूर्ति की दशा में CGST एवं SGST दोनों के लिये हैं जिनमें 50% CGST के लिये एवं 50% SGST के लिए है।
कुछ दशाओं में काउन्सिल ने उपरोक्त चार दरों के अलावा 0%, 0.25%, 3% की दर भी निर्धारित की है।
राज्य के भीतर की आपूर्ति पर GST की अधिकतम दर 40% तक हो सकती है जिसमें आधा हिस्सा केन्द्र का CGST होगा तथा आधा हिस्सा राज्य का SGST होगा।
अन्तर्राज्यीय आपूर्ति पर भी IGST की दर अधिकतम 40% तक हो सकती है। CGST की दरों का निर्धारण GST काउन्सिल की सिफारिश पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किया जायेगा तथा IGST की दरों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा।
राज्य सरकारों ने काउन्सिल से दरों को +2% कम-ज्यादा करने का विकल्प भी प्राप्त कर लिया है। उदाहरण के लिए, 18% की दर में SGST का हिस्सा 9% है इसे कोई राज्य सरकार 7% से 11% तक रख सकती है।
14. स्व: कर निर्धारण की योजना (Scheme of self assessment) :
इस अधिनियम के तहत प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति उसके द्वारा देय कर का निर्धारण स्वयं करेगा। किसी भी कर अवधि के लिए ऐसा निर्धारण करने के बाद ही वह निर्धारित विवरणी प्रस्तुत करेगा।
वस्तु एवं सेवा कर (GST) के लाभ : (Benefits of GST)
वस्तु एवं सेवा कर का लागू होना सम्पूर्ण देश के लिए सुखद स्थिति है क्योंकि यह अप्रत्यक्ष कर ढाँचे में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सुधार है।
इसके लाभों के कारण ही विश्व के अन्य देशों ने लगभग 60 वर्ष पूर्व ही इसे अपनाना प्रारम्भ कर दिया था तथा अब तक 160 से अधिक देश इसे अपना चुके हैं।
हमारे देश में तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा सिद्धान्त रूप से इसे अपनाने एवं लागू होने के वर्ष की घोषणा के बावजूद इसके वास्तव में लागू किये जाने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गया।
केन्द्र एवं सभी राज्य सरकारों, राजनैतिक दलों, उद्योगपतियों आदि द्वारा एक स्वर में अपनाने का सीधा-सीधा अर्थ है कि यह एक महत्त्वपूर्ण कर सुधार है जिसका लाभ सभी हितधारकों, सरकारों, उद्योग एवं व्यापार जगत एवं उपभोक्ताओं को प्राप्त होगा।
वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने से माल एवं सेवाओं की लागत में कमी आयेगी, आर्थिक विकास में तेज गति से वृद्धि होगी तथा वस्तुएँ एवं सेवाएँ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए मजबूत स्थिति में होंगी।
इस कर व्यवस्था (GST) के लागू होने से विभिन्न वर्गों को होने वाले प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
1. कर पर कर लगाने के बुरे प्रभावों में कमी (Mitigation of ill effects of cascading)
जी.एस.टी. लागू होने से पूर्व देश में केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये जाते थे।
उनमें से अनेक करों के सम्बन्ध में कर जमा का लाभ नहीं मिलता था तथा वे वस्तु की लागत में सम्मिलित कर लिये जाते थे।
जब इन वस्तुओं की बिक्री पर कर वसूल किया जाता था तो पहले चुकाये गये कर पर भी कर की गणना हो जाती थी। इस प्रकार उपभोक्ता को करों का भार अधिक वहन करना पड़ता था।
परन्तु जी.एस.टी. में आपूर्ति के हर स्तर पर कर जमा का लाभ मिलने के कारण अब कर पर कर की गणना नहीं होती है।
2. अनेक करों एवं दोहरे करारोपण की समाप्ति (Elimination of multiple taxes and double taxation) :
हमारे देश में केन्द्र एवं राज्य स्तर पर अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाये जा रहे थे जैसे, वस्तु निर्माण करने पर उत्पाद शुल्क, उस माल को दूसरे राज्य में भेजने पर केन्द्रीय बिक्री कर तथा दूसरे राज्य में उसका विक्रय करने पर राज्य वैट (State VAT) ।
इसके अलावा परिवहन भाड़े पर सेवा कर, शहर में माल के प्रवेश पर ‘प्रवेश कर’, चुंगी आदि कर माल पर लगते थे।
वस्तु एवं सेवा कर में लगभग इन सभी करों को सम्मिलित कर लिया गया है तथा केवल एक कर ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (GST) लगाया गया है।
स्वाभाविक रूप से अधिकांश दशाओं में इस कर की दर पुराने समस्त करों के योग की तुलना में कम रही है। इसके अलावा इसे समान रूप से माल एवं सेवाओं दोनों पर लागू किया गया है।
पुराने करों में अनेकों बार ऐसे विवादास्पद मामले सामने आते थे कि कोई व्यवहार (लेन-देन) माल से सम्बन्धित व्यवहार है अथवा सेवा से सम्बन्धित व्यवहार है।
चूंकि इस कर को माल एवं सेवाओं दोनों पर एकरूपता के साथ लागू किया गया है, अतः अब दोहरे करारोपण की समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जायेंगी तथा व्यवसाय करना आसान रहेगा।
3. एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का निर्माण (Creation of unified or common national market);
सम्पूर्ण देश में एक-समान कर (GST) की दर तथा एक समान प्रक्रिया होने के कारण व्यापार में आने वाली अनेक बाधाएँ स्वतः दूर हो जायेंगी तथा सम्पूर्ण देश एक बाजार जैसा हो जायेगा।
राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये करों की दर, प्रक्रिया आदि में भिन्नता होने के कारण व्यापार में अनेक बाधाएँ आती रही हैं।
4. उत्पादों का प्रतिस्पर्धा के मुकाबले में अधिक सक्षम होना (More Competitive Products):
वस्तु एवं सेवा कर के अपनाने से एक तरफ तो कर का बोझ कम होने के कारण माल का मूल्य घटाना सम्भव होगा।
इसके साथ ही नौकरशाही, लालफीताशाही की समस्याओं में कमी आने के कारण अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन लागतों में कमी आयेगी। हमारे देश में निर्मित माल एवं सेवाएँ विदेशी माल एवं सेवाओं से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो जायेंगी।
विदेशी बाजारों में हमारा माल महँगा होने के कारण हमें आसानी से विदेशी बाजार नहीं मिल पाता है तथा सरकार को आयात-निर्यात करों में परिवर्तन करके सहायता करनी पड़ती है।
इतना ही नहीं दूसरे देश हमारे देश में अपना माल हमारे माल की प्रतिस्पर्धा में आसानी से बेच लेते हैं। इस नये कर के कारण हमारे उत्पाद दोनों तरह की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में सक्षम हो जायेंगे।
इससे हमारे देश में वस्तुओं के निर्माण में वृद्धि होगी तथा भारत सरकार की ‘Make in India’ पहल को भी प्रोत्साहन एवं ताकत मिलेगी।
5. उपभोक्ता अथवा सामान्य जनता के कुल कर भार में कमी (Reduction in overall tax burden of consumers) :
प्रत्येक अप्रत्यक्ष कर का भार उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है। पूर्व कर प्रणाली में उपभोक्ता को केवल बिक्री कर के भुगतान का पता चलता था।
पूर्व में उस माल की लागत में कितने कर जोड़े जा चुके हैं इसका पता उसे नहीं चलता था।
अतः दिखने में उपभोक्ता को यह लग सकता है कि उस पर GST की दर अधिक है, परन्तु कई कर सम्मिलित हो जाने के कारण उपभोक्ता पर कुल कर भार कम हो जाता है तथा उसे वस्तुएँ सस्ती उपलब्ध होती हैं।
6. सरकारी राजस्व में वृद्धि (Increase in Government’s Revenue) :
यह हास्यास्पद लगता है कि उपभोक्ता कम कर चुकायेगा तो फिर सरकारी राजस्व में वृद्धि कैसे हो सकती है? परन्तु वास्तविकता यहीं है कि इससे केन्द्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों के राजस्व में वृद्धि होगी।
ऐसा कई कारणों से सम्भव होगा। एक तो कर का दायरा विस्तृत होगा। जो सेवाएँ, वस्तुएँ तथा व्यक्ति कर के दायरे में अभी नहीं हैं उनके कर के दायरे में आने से सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी।
दूसरे देशी एवं विदेशी माँग में वृद्धि होने के कारण उत्पादन अधिक होने के कारण अथवा सेवाओं की अधिक आपूर्ति होने के कारण सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त होगा।
तीसरे कर कानूनों की अनुपालना से भी कर की चोरी में कमी आयेगी तथा सरकारों को अधिक राजस्व प्राप्त होगा।
7. करों का प्रशासन सुगम होना (Smooth administration of taxes) :
इस कर कानून अर्थात् जी.एस.टी. (GST) में पारदर्शिता है तथा डिजिटल एवं इलैक्ट्रॉनिक साधनों का बिल बनाने, रिटर्न दाखिल करने आदि में प्रयोग किया गया है।
इससे कर प्रशासन आसान होगा तथा लागत में कमी आयेगी। कर अधिकारियों एवं सामान्य व्यापारियों के मध्य व्यक्तिगत सम्पर्क में कमी आने से भी कर-अनुपालना बढ़ेगी।
स्व:कर निर्धारण प्रणाली (Self assessment) को लागू करने से भी कर प्रशासन सुगम रहेगा।
वस्तु एवं सेवा कर GST की हानियाँ (Disadvantages of Goods and Service Tax)
वस्तु एवं सेवा कर लागू किये जाने के पूर्व से ही सरकार द्वारा इसका गुणगान किया जा रहा है तथा लागू करने के बाद भी सरकार द्वारा इसका गुणगान किया जाना जारी है।
पिछले पृष्ठों में हमने इससे मिलने वाले लाभों का अध्ययन भी किया है। किन्तु ऐसा नहीं है कि इस कर के केवल लाभ ही हैं तथा हानियाँ नहीं हैं।
वास्तविकता यह है कि अभी तक तो व्यापारियों में हा-हाकार मचा हुआ है एवं उपभोक्ता महँगाई के कारण असमंजस्य में पड़े हुए हैं तथा कागजी कार्यवाही को पूरा करने में सभी व्यक्ति परेशान हैं।
इस प्रणाली से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयाँ, कमियाँ, दोष अथवा हानियाँ निम्न प्रकार हैं-
1. कम्प्यूटर के ज्ञान का अभाव (Lack of Computer Knowledge) :
जी.एस.टी. की मूल अवधारणा ही कम्प्यूटर प्रणाली पर आधारित है। इसमें व्यापारी द्वारा बिल जारी करने से लेकर रिटर्न प्रस्तुत करने एवं कर जमा कराने तक का सम्पूर्ण कार्य कम्प्यूटर के माध्यम से ही किया जाता है।
अधिकांश व्यापारी कम्प्यूटर का प्रयोग ही नहीं करते हैं और जो करते हैं उनके लिए भी जी.एस.टी. से सम्बन्धित कार्य करना कठिन होता है।
2. जटिल कार्यप्रणाली से कठिनाई (Problem due to complicated working):
इनपुट कर जमा (Input Tax Credit) की जमा प्रदान करने के प्रावधान एवं विपरीत प्रभार तन्त्र के आधार पर कर जमा कराने के कारण इस कर की कार्यप्रणाली काफी जटिल हो गयी है जिससे व्यापारियों को काफी कठिनाई होती है।
एक तो व्यापारी को इनपुट कर जमा का लाभ लेने के कारण उसका पूरा हिसाब-किताब रखना पड़ता है। दूसरे जब तक पूर्तिकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत किये गये विवरणों से इसका मिलान (tally) नहीं हो जायेगा तथा पूर्तिकर्त्ता जब तक ‘आउटपुट कर’ का भुगतान नहीं कर देगा, तब तक इनपुट कर जमा का दावा स्वीकृत नहीं किया जायेगा।
इसी प्रकार विपरीत प्रभार तन्त्र (Reverse charge mechanism) के तहत कर का हिसाब रखना एवं उसकी जमा लेना भी कठिन कार्य है।
3. निजी मामलों एवं गोपनीयता का सार्वजनिक होने का खतरा (Danger of leak out of secret and private matters) :
जी.एस.टी. में व्यवसाय के सभी रिकॉर्ड्स एवं व्यवसायी की निजी जानकारी कम्प्यूटर में रखी जाती है।
कम्प्यूटर के डेटा हेक किये जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। यदि डेटा वास्तव में हेक कर लिये जायें तो इससे व्यवसाय की सम्पूर्ण गोपनीय जानकारी सार्वजनिक हो जायेगी तथा इसका दुरूपयोग किया जा सकता है।
4. कर की ऊँची दरों के कारण कर का भार अधिक होना (Tax burden high due to high rates of tax) :
जी.एस.टी. के सम्बन्ध में यह कहा गया था कि कई करों को मिलाकर एक कर लगाने के कारण उसकी दर कम रहेगी तथा अन्तिम उपभोक्ता को सस्ती वस्तुएँ प्राप्त होंगी। परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है।
वस्तुओं का वर्गीकरण कर की दर से विवेकपूर्ण नहीं किया गया है। 4%, 5% वाली वस्तुओं को 12% की दर में एवं 14%, 15% वाली वस्तुओं को 18% या 28% दर वाली वस्तुओं में रखा गया है। सेवा कर की दर भी 15% के स्थान पर 18% रखी गयी है। अतः अन्तिम उपभोक्ता को अधिक कर चुकाना पड़ रहा है।
5. अनेक विवरणी प्रस्तुत करने की बाध्यता के कारण कठिनाई (Problem due to mandatory furnishing of several returns) :
जी.एस.टी. लागू होने के पूर्व वर्ष में केवल एक विवरणी प्रस्तृत करनी होती थी। अब प्रत्येक माह तीन विवरणी प्रस्तुत करनी होती हैं तथा एक विवरणी वर्ष के अन्त में प्रस्तुत करनी होती है।
इस प्रकार अधिकांश व्यापारियों को 37 विवरणी प्रस्तुत करनी होती है। वह सम्पूर्ण वर्ष इन विवरणियों को भरने में लगा रहता है।
इसके कारण उसके कारोबार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा विवरणी प्रस्तुत करने में वकील की मदद लेना भी जरूरी होता है।
वकीलों ने अपनी फीस में वृद्धि कर दी है जिससे व्यापारियों को सीधा नुकसान है। पिछले दो वर्षों में सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर गया है तथा सरकार प्रस्तुत की जाने वाली विवरणियों की संख्या में कमी करके व्यापारियों को कुछ राहत प्रदान की है।
6. वस्तु उत्पादन करने वाले राज्यों की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव (Adverse effect on the economy of goods manufacturing states) :
हमारे देश में कुछ राज्य तो ऐसे हैं जहाँ वस्तुओं का निर्माण अधिक होता है। दूसरी तरफ कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ वस्तुओं का निर्माण कम होता है एवं उपभोग अधिक होता है।
चूँकि जी.एस.टी. गन्तव्य आधारित उपभोग कर है, अतः माल का निर्माण करके दूसरे राज्यों को निर्यात करने पर उन राज्यों को कोई कर प्राप्त नहीं होता है।
यद्यपि संघीय कर प्रणाली के तहत सभी राज्यों ने अपनी सहमति प्रदान कर दी है, परन्तु ऐसे राज्य समय-समय पर अपना विरोध प्रकट करते रहते हैं।
यद्यपि केन्द्र सरकार ने उनको इस प्रकार होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का आश्वासन 5 वर्षों तक के लिए दिया है। हानि की गणना भी विवाद का विषय है तथा 5 वर्ष बाद तो उनको पूर्व में मिलने वाले सी.एस.टी. (CST) की पूरी हानि होगी।
7. प्रणाली की सुरक्षा का अभाव (Lack of security of system) :
देश के समस्त कम्प्यूटर जी.एस.टी. की वेबसाइट से जुड़े हुए हैं। अतः यदि कम्प्यूटर प्रणाली में कोई दोष (वायरस) उत्पन्न हो जाता है तो सभी व्यावसायिक गतिविधियों में अवरोध आ जाने का खतरा बना रहता है।
8. कर चोरी एवं भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं (No reduction in tax evasion and corruption):
यह माना गया था कि जी.एस.टी. लागू करने से कर चोरी एवं भ्रष्टाचार में कमी आयेगी। परन्तु वास्तव में ऐसा हुआ नहीं है। बिना बिल के माल क्रय-विक्रय की गतिविधियाँ पूर्व की तरह अभी भी जारी हैं तथा कई अधिकारी व्यापारियों से रिश्वत लेते हुए भी पकड़े गये हैं।
जी.एस.टी. की उपरोक्त कमियाँ या परेशानियाँ ध्यान देने योग्य हैं। सरकार यदि इसका सफल क्रियान्वयन चाहती है तो उसे शीघ्र ही इसे युक्तिसंगत एवं सरल बनाना होगा।
पिछले कुछ समय में सरकार ने राहतकारी निर्णय लिये हैं, परन्तु अभी भी कई व्यावहारिक कदम शीघ्र उठाने की आवश्यकता है।
वस्तु एवं सेवा कर का ढाँचा एवं कर संग्रह का प्रशासन (Framework of GST and Administration of Tax Collection)
1. वस्तु एवं सेवा कर का विस्तार (Extent of Goods and Service Tax) :
वस्तु एवं सेवा कर (GST) जम्मू एवं कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। यह अधिनियम 1 जुलाई, 2017 लागू हुआ है यद्यपि इसके कुछ प्रावधानों को भिन्न तिथियों से लागू किया गया है।
2. दोहरा जी.एस.टी. मॉडल को अपनाना (Adoption of Dual GST Model):
हमारे देश में वस्तु एवं सेवा कर के दोहरा मॉडल को लागू किया गया है। इसमें केन्द्र एवं राज्य एक साथ कर लगाते हैं।
सामान्य कर की दर में केन्द्र एवं राज्य का हिस्सा पहले से ही निर्धारित होता है। हमारे देश में वर्तमान में यह 50- 50 है। केन्द्र एवं राज्य अलग-अलग अधिनियम के तहत इस कर को लगाते हैं।
जी.एस.टी. को लगाने, संग्रह करने एवं प्रशासन करने के सम्बन्ध में केन्द्र एवं राज्यों को समान अधिकार है।
3. जी.एस.टी. से सम्बन्धित विभिन्न कानून (Different Laws relating to GST) :
हमारे देश में जी.एस.टी. से सम्बन्धित निम्नलिखित 35 अधिनियम बनाये गये हैं-
Name of Act |
No. |
Name Of Tax |
The Central GST Act, 2017 |
1 |
CGST |
State GST Act, 2017 |
31 |
GST |
The Union Territory GST Act, 2017 |
1 |
UTGST |
The Integrated GST Act, 2017. GST |
1 |
GUEST |
The GST Act, 2017 |
1 |
GST |
4. विभिन्न करों का क्षेत्र एवं प्रशासन (Scope and Administration of various taxes) :
वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत लगाये जाने वाले विभिन्न करों के क्षेत्र एवं प्रशासन सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
QUESTION :
जीएसटी कितने प्रकार के होते है?
Types of GST in Hindi
(i) केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर (Central Goods and Service Tax: CGST) :
यदि माल अथवा सेवा या दोनों का आपूर्तिकर्त्ता तथा प्राप्तकर्त्ता दोनों एक ही राज्य में हो अथवा किसी भी संघीय क्षेत्र में हों तो यह कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है।
इसके लिए केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (CGST Act) लागू किया गया है। इस अधिनियम में 174 धाराएँ एवं तीन अनुसूचियाँ हैं।
इसका पूरा नाम केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 है। इस अधिनियम में प्रयोग की गई अनेक मदों का इसमें स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। अनेक प्रावधानों की कार्यविधि एवं क्रियान्वयन की विधि भी नहीं दी गई है।
अतः इन कमियों को पूरा करने के लिए केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर नियम, 2017 बनाये गये हैं। इनमें अनेक मदों का स्पष्टीकरण एवं अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों की कार्यविधि एवं क्रियान्वयन के सम्बन्ध में विस्तृत नियम दिये गये हैं।
अधिनियम में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न फार्मस् (FORMS) का भी प्रारूप इनमें दिया गया है। वास्तव में ये नियम उक्त अधिनियम के अनुपूरक (supplement) हैं, अतः इनमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं दिया गया है जो उक्त अधिनियम के प्रावधानों से विरोधाभास रखता हो।
वर्तमान में कुल मिलाकर 162 नियम बनाये गये हैं तथा अनेक है फार्म निर्धारित किये गये हैं। इन नियमों में अधिनियम की तरह अक्सर संशोधन होता रहता इसके अलावा अपेलेट ट्रिब्यूनल एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय भी प्रशासनिक अधिकारियों की निर्णयन प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
(ii) राज्य वस्तु एवं सेवा कर (State Goods and Service Tax : SGST) :
यह कर राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है यदि माल का आपूर्तिकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता एक ही राज्य में हो जैसे दोनों या तो राजस्थान में हों या दोनों मध्य प्रदेश में हों।
राजस्थान में इस कर का नाम Rajasthan GST Act एवं मध्य प्रदेश में इस कर का नाम M. P. GST Act होगा।
इस प्रकार सभी 31 राज्य सरकारें (उन तीन संघीय क्षेत्र सरकारों को सम्मिलित करते हुए जिनके अपने विधान मण्डल हैं) अपने ही राज्य के भीतर की आपूर्ति (Intra State Supply) पर यह कर लगायेंगी एवं अधिनियम बनायेंगी।
हमारे देश में राज्यों को कर वसूल करने का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है। इस अधिकार के तहत प्रत्येक राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी विधानसभा से अपने राज्य करें |
का SGST पारित करायें और उसके आधार पर GST वसूल विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा बनाये गये SGST Act एवं नियमों की विषय-सामग्री पूर्णत: केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम एवं नियमों के अनुसार ही होगी।
(iii) संघीय क्षेत्र वस्तु एवं सेवा कर (Union Territory Goods and Service Tax: UTGST):
यदि वस्तु या सेवा या दोनों का आपूर्तिकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता दोनों किसी भी एक संघीय क्षेत्र (अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्ष्यद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली, दमन एवं दीउ, लद्दाख या चण्डीगढ़) में हो तो यह कर उस संघीय क्षेत्र सरकार द्वारा लगाया जायेगा।
टिप्पणी : किसी भी लेन-देन पर SGST एवं UTGST एक साथ नहीं लगेंगे। CGST के साथ या तो SGST लगेगा या UTGST लगेगा।
इस अधिनियम में कुल 26 धाराएँ हैं। इस अधिनियम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि शेष मामलों में केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।
इस अधिनियम एवं नियमों में संशोधन करने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है परन्तु इस अधिनियम एवं नियमों में किया गया कोई भी संशोधन एवं जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना का संसद के दोनों सदनों में पारित होना आवश्यक है।
(iv) एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (Integrated Goods and Service Tax – IGST):
यदि माल या सेवा या दोनों का आपूर्तिकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता दो अलग-अलग राज्यों में हो अथवा दोनों में से एक किसी राज्य में हो तथा दूसरा किसी संघीय क्षेत्र (Union Territory) में हो तो यह कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया एवं एकत्र किया जायेगा।
चूंकि यह गन्तव्य आधारित कर है अतः गन्तव्य वाले राज्य का हिस्सा केन्द्र द्वारा उस राज्य को हस्तान्तरित कर दिया जायेगा। इस कर की राशि उस माल पर लगने वाला CGST + SGST के बराबर होगी।
माल या सेवाओं या दोनों की अन्तर्राज्यीय आपूर्ति पर कर के उद्ग्रहण एवं संग्रहण के लिए केन्द्र सरकार ने एक अलग अधिनियम एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 बनाया है।
इस अधिनियम में अन्तर्राज्यीय आपूर्ति से जुड़े हुए एवं आनुषांगिक मामलों जैसे आयात- निर्यात के सम्बन्ध में भी इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम में कुल 25 धाराएँ हैं।
शेष मामलों में केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम के प्रावधान ही लागू होंगे। आयात को अन्तर्राज्यीय आपूर्ति मानना (Imports to be treated rs Inter-state supply): माल या सेवा या दोनों के आयात को अन्तर्राज्यीय (Inter-state supply) माना जायेगा तथा उस पर सीमा शुल्क के साथ IGST भी देय होगा ।
निर्यात पर कर की दर शून्य होना (Zero rate of tax on exports) : माल या सेवा या दोनों के निर्यात पर कर की दर शून्य है अर्थात् कोई कर देय नहीं है। परन्तु इनपुट कर जमा निर्यात पर उपलब्ध है तथा निर्यातक इसकी वापसी का दावा प्रस्तुत कर सकता है।
(v) माल एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 :
एक राज्य (उत्पादक राज्य) से दूसरे राज्य (उपभोक्ता राज्य) की माल की आपूर्ति करने पर कर की प्राप्ति केन्द्र सरकार एवं उपभोक्ता राज्य की सरकार को होती है।
इस कारण से उत्पादक राज्यों को पुरानी व्यवस्था (Sales Tax) की तुलना में हानि होती है।
इस अधिनियम को लागू करने का उद्देश्य उत्पादक राज्यों को GST प्रणाली को लागू करने से होने वाली हानि की 5 वर्षों तक क्षतिपूर्ति करना है। यह बहुत ही छोटा अधिनियम है।
इसमें कुल 14 धाराएँ एवं एक अनुसूची है। इस अधिनियम के अपने नियम भी हैं। वास्तव में उन नियमों में केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर नियमों के कुछ नियमों को हटाकर शेष नियमों को हुबहू उसी रूप में लागू किया गया है।
इस अधिनियम की अनुसूची में उन वस्तुओं एवं उनकी विशेष श्रेणियों का उल्लेख किया गया है जिनकी राज्य के भीतर एवं अन्तर्राज्यीय आपूर्ति पर यह कर वसूल किया जायेगा।
अनुसूची में दरों का भी उल्लेख किया गया है। वस्तुओं की श्रेणी को अनुसूची में सीमा शुल्क टैरिफ अधिनियम की प्रथम अनुसूची में दिये गये HSN कोड़ नम्बर द्वारा प्रकट किया गया है।
इस अधिनियम में राज्यों को होने वाली क्षति की गणना करने एवं राज्यों को भुगतान करने की विधि के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है।
इस अधिनियम में यह भी प्रावधान कर दिया गया है कि जिन शब्दों एवं अभिव्यक्तियों को इस अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है उनके सम्बन्ध में केन्द्रीय माल एवं सेवा कर अधिनियम अथवा एकीकृत माल एवं सेवा कर अधिनियम में दिया गया अर्थ ही लागू होगा।
5. आगम कर जमा के प्रयोग सम्बन्धी प्रावधान (Provisions relating to utilisation of Input Tax Credit) : निर्माता से लेकर अन्तिम फुटकर आपूर्तिकर्त्ता तक आगम कर जमा के हकदार हैं। किसी भी कर की इनपुट कर जमा उस कर के अलावा अन्य कर के भुगतान के लिए भी प्रयोग की जा सकती है।
टिप्पणी : (1) उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि CGST की जमा SGST से तथा SGST की जमा को CGST से नहीं लिया जा सकता है। Cess की जमा केवल Cess से ली जा सकती है।
(2) IGST की जमा का प्रयोग पहले IGST के Output कर के भुगतान के लिए किया जायेगा तथा यदि शेष बचे तो CGST/SGST / UTGST किसी के भुगतान के लिए भी किसी भी क्रम (Order) में किया जा सकता है। आंशिक रूप से CGST एवं आंशिक रूप से SGST के भुगतान के लिए भी किया जा सकता है।
(3) किसी भी Output कर के भुगतान के लिए पहले IGST की सम्पूर्ण जमा का प्रयोग किया जाना आवश्यक है। IGST की जमा की सम्पूर्ण राशि का प्रयोग करने के बाद ही अन्य किसी जमा (CGST/SGST/ UTGST) का प्रयोग किसी भी कर के Output कर के भुगतान के लिए किया जा सकता है।
(4) CGST की इनपुट कर जमा का प्रयोग पहले CGST के Output Tax के भुगतान के लिए किया जायेगा। यदि जमा का शेष बचे तो IGST के Output Tax के भुगतान के लिए किया जा सकता है।
(5) SGST / UTGST की इनपुट कर जमा का प्रयोग पहले SGST/UTGST के Output Tax के भुगतान के लिए किया जायेगा। यदि जमा का शेष बचे तो IGST के Output Tax के भुगतान के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
उपरोक्त प्रावधानों को Numerical Questions के माध्यम से अध्याय-11 ‘कर का भुगतान’ में समझाया गया है।
6. वस्तु एवं सेवा कर के तहत माल एवं सेवाओं का वर्गीकरण (Classification of goods and services under GST) :
जिस प्रकार आयात-निर्यात व्यापार में माल का वर्गीकरण किया गया है, ठीक उसी प्रकार GST में भी माल एवं सेवाओं का वर्गीकरण किया गया है। सम्बन्धित प्रावधान निम्न प्रकार हैं-
(अ) माल का वर्गीकरण (Classification of Goods) : माल के वर्गीकरण के लिए Harmonised system of Nomenclature (HSN) को ही अपनाया गया है। इसमें प्रत्येक वस्तु को एक कोड नं. दे दिया जायेगा तथा कर योग्य व्यक्ति बीजक जारी करते समय बीजक पर इस कोड का उल्लेख करेगा। इस कोड के आधार पर वस्तु की पूरी पहचान हो जाती है। इसमें कुल 8 डिजिट होती हैं। भारत में ही आपूर्ति करने पर 4 डिजिट काम आती है। आयात-निर्यात व्यापार में 8 डिजिट का प्रयोग होता है। ₹ 1.5 करोड़ तक के आवर्त पर कर योग्य व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं करेगा। ₹1.5 करोड़ से अधिक परन्तु ₹5 करोड़ तक दो डिजिट का प्रयोग होगा। ₹5 करोड़ से अधिक आवर्त वाले कर योग्य व्यक्ति 4 डिजिट का प्रयोग करेंगे।
ब) सेवाओं का वर्गीकरण (Classification of Services): जी.एस.टी. कानून के तहत सेवाओं का वर्गीकरण सेवा लेखांकन कोड (Service Accounting Code- SAC) के अनुसार किया गया है। इसमें भी 8 डिजिट हैं जिनमें प्रारम्भ में दो डिजिट शून्य (00) की हैं।
7. केन्द्र एवं राज्य/संघीय क्षेत्र के करों के हिस्से को बीजक में अलग-अलग दिखानाः
राजस्थान जयपुर के A द्वारा अजमेर के B को ₹ 1,00,000 की आपूर्ति की गई जिस पर कर की दर 18% है । यह राज्य के भीतर की आपूर्ति है तथा इस पर CGST एवं Raj GST दोनों प्रत्येक 9% की दर से बीजक में निम्न प्रकार दिखाये जायेंगे-
SALE PRICE |
1,00,000 |
ADD Raj.GST @ 9% |
9,000 |
ADD: CGST @ 9% |
9,000 |
Invoice Price i.e. cost to Customer |
1,18,000 |
यही माल यदि जयपुर (राजस्थान) से इन्दौर (मध्य प्रदेश) भेजा जाये (Inter-state) या आपूर्ति की जाये तो एक साथ 18 प्रतिशत की दर से IGST लगाया जायेगा। राजस्थान सरकार को कोई कर नहीं मिलेगा। जयपुर का व्यापारी 18,000 केंद्र के खाते मे जमा कराएगा और केंद्र सरकार मध्य प्रदेश सरकार को उसका हिस्सा हस्तांतरित कर देगी |
केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर
केन्द्रीय सरकार ने संघ सूची में उल्लेखित विभिन्न करों में से निम्नलिखित प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर लगाये हैं-
(A) प्रत्यक्ष कर
- (1) कृषि आय को छोड़कर अन्य आय पर कर (प्रविष्टि संख्या 82)।
- (2) निगम कर (प्रविष्टि संख्या 85 ) ।
- (3) सम्पत्तियों के पूँजीगत मूल्य पर धन-कर (प्रविष्टि संख्या 86)।
(B) अप्रत्यक्ष कर
- (1) सीमा शुल्क (निर्यात शुल्क सहित) (प्रविष्टि संख्या 83)
- (2) भारत में निर्मित अथवा उत्पादित तम्बाकू तथा अन्य वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क (प्रविष्टि संख्या
- 84)। परन्तु निम्नलिखित को छोड़कर-
- (अ) मानवीय उपभोग में काम आने वाली शराब ।
- (ब) अफीम, भारतीय भांग तथा अन्य नशीली दवाइयाँ तथा मादक पदार्थ ।
- (3) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वाणिज्य के दौरान समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय- विक्रय पर कर-केन्द्रीय विक्रय कर (प्रविष्टि संख्या 92अ)।
- (4) सेवाओं पर कर (प्रविष्टि संख्या 92स) ।
स्पष्टीकरण (1) उपर्युक्त प्रमुख कर अथवा शुल्क की मदों के अलावा भी प्रथम सूची में अनेक मदें हैं जिनसे केन्द्रीय सरकार राजस्व प्राप्त कर सकती है।
(2) भूतकाल में केन्द्रीय सरकार ने कई अन्य कर अथवा शुल्क लगाये थे परन्तु वे अब प्रभाव में नहीं हैं। जैसे—सम्पदा शुल्क (Estate Duty)। यह कर किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके द्वारा छोड़ी गई सम्पत्तियों पर उन सम्पत्तियों को प्राप्त करने वालों से वसूल किया जाता था।
(3) धन कर को भी वित्तीय वर्ष 2015-16 से समाप्त कर दिया गया है।
राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले कर
राज्य सरकारें द्वितीय सूची अर्थात् राज्य सूची में उल्लिखित विभिन्न प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों को लगा सकती हैं। राज्य सरकारों द्वारा प्रमुख रूप से निम्न करों को लगाया गया है-
- (1) भू-राजस्व अथवा मालगुजारी (प्रविष्टि संख्या 45 ) ।
- (2) कृषि आय पर कर (प्रविष्टि संख्या 46) ।
- (3) भूमि एवं भवन कर (प्रविष्टि संख्या 49)।
- (4) राज्य में निर्मित अथवा उत्पादित निम्नलिखित वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क तथा भारत में अन्य किसी भी स्थान पर निर्मित अथवा उत्पादित ऐसी ही वस्तुओं पर समान अथवा नीची दर से संतुलनकारी शुल्क ( Countervailing duties ) —
- (अ) मानवीय उपभोग के लिए काम में लाई जाने वाली शराब।
- (ब) अफीम, भारतीय भांग अथवा नशीली औषधियाँ अथवा मादक पदार्थ, परन्तु उन औषधीय तथा प्रसाधन सामग्रियों को छोड़कर जिनमें इन पदार्थों का प्रयोग किया गया हो (प्रविष्टि संख्या 51 ) ।
- (5) किसी स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, उपयोग अथवा बिक्री के लिए आने वाली वस्तुओं के प्रवेश पर कर (प्रविष्टि संख्या 52 ) ।
- (6) समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर कर अर्थात् राज्य स्तरीय मूल्य
- संवर्द्धित कर (प्रविष्टि संख्या 54)।
- (7) धंधों, व्यापारों, रोजगारों तथा पेशों पर कर (प्रविष्टि संख्या 60)।
- (8) दस्तावेजों पर स्टाम्प शुल्क की दरें परन्तु उन दस्तावेजों को छोड़कर जिन पर स्टाम्प शुल्क लगाने का अधिकार प्रथम सूची के अनुसार केन्द्रीय सरकार का हो (प्रविष्टि संख्या 63)। स्पष्टीकरण—उपर्युक्त प्रमुख मदों के अलावा द्वितीय सूची में अन्य कई मदें हैं जिनसे राज्य सरकारें राजस्व प्राप्त कर सकती हैं।
केन्द्र अथवा राज्य सरकार दोनों को कर वसूली का अधिकार
(Power of both Central and State Government to collect Tax)
उपर्युक्त वर्णित दो सूचियों के अलावा तृतीय सूची के अन्तर्गत दिये गये मामलों में केन्द्र एवं राज्य सरकार दोनों को कानून बनाने का अधिकार है। चूँकि तृतीय सूची में कर राजस्व की कोई मद नहीं है, अतः आम जनता पर दोहरा करारोपण नहीं हो सकता है। यदि किसी विषय पर केन्द्र और किसी राज्य सरकार दोनों द्वारा कानून बनाये जायें तथा उनमें विरोधाभास हो तो उस परिस्थिति में केन्द्रीय कानून ही मान्य होगा ।
टिप्पणी- इसके अलावा केन्द्रीय सरकार को प्रथम सूची की प्रविष्टि संख्या 97 के अनुसार करारोपण का अवशिष्ट अधिकार भी है। इस अधिकार के तहत केन्द्रीय सरकार को ऐसे किसी भी मामले में कर लगाने का अधिकार है जिसका उल्लेख सूची II एवं सूची III में नहीं हो ।
वस्तु एवं सेवा कर GST की आवश्यकता
(Need for Goods & Service Tax-GST)
सामान्य जनता को लाभ प्रदान करने के लिए अप्रत्यक्ष करों में सुधार किया जाता रहा है। इसी उद्देश्य से इनपुट कर जमा का लाभ देने के लिए उत्पाद शुल्क के सम्बन्ध में 1984 में CENVAT प्रणाली को लागू किया गया। इसी प्रकार पुराने बिक्री कर के स्थान पर 2003 के बाद से विभिन्न राज्यों में VAT प्रणाली लागू की गई।
इसमें भी इनपुट कर जमा का प्रावधान किया गया था। इसके बावजूद भी भारत में माल एवं सेवा कर (GST) की आवश्यकता महसूस की गई। इसका प्रमुख कारण पुराने अप्रत्यक्ष कर ढाँचे में अनेक कमियाँ होना था। पुराने अप्रत्यक्ष कर ढाँचे में प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित थीं—-
मौजूदा अप्रत्यक्ष कर ढाँचे में कमियाँ
1. कर पर कर लगाना (Tax on Tax) : अन्तिम उपभोक्ता तक वस्तु पहुँचने के पूर्व जितने भी कर लगाये जाते थे उनको वस्तु की लागत में सम्मिलित कर लिया जाता था।
उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल में कोई माल बनाने के बाद राजस्थान में लाया जाता है तो इस माल पर सर्वप्रथम उत्पाद शुल्क (Excise vivo Dunyy वसूल की गई। इसके बाद केन्द्रीय विक्रय कर (CST) वसूल किया गया।
इसके बाद माल के परिवहन पर सेवा कर लगाया गया। ये सभी कर राजस्थान के व्यापारी की माल की लागत में सम्मिलित कर लिये जायेंगे तथा जब राजस्थान का व्यापारी उस माल को बेचेगा तथा VAT वसूल करेगा तो विभिन्न करों सहित जो उसकी लागत है उस पर VAT वसूल करेगा।
इस प्रकार उत्पाद के मूल्य में वृद्धि हो जाती है तथा उसका भार अन्तिम उपभोक्ता पर पड़ता है।
2. अनेक करों के कारण कुल कर भार उपभोक्ता पर अधिक होना : माल के निर्मित होने से लेकर अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचने के दौरान अनेक करों के लगाये जाने के कारण वस्तु अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचते-पहुँचते काफी महँगी हो जाती है।
उसी माल पर उत्पाद शुल्क, केन्द्रीय विक्रय कर, सेवा कर एवं राज्य VAT मिलाकर करों की दर एवं राशि दोनों काफी अधिक हो जाते हैं और उपभोक्ताओं को वस्तुएँ महँगी मिलती हैं।
3. विभिन्न राज्य सरकारों के राजस्व हितों में टकराव (Conflict between the revenue interest of the different state governments) : हमारे देश में कुछ राज्यों में या तो वस्तुओं का उत्पादन अथवा निर्माण अधिक होता है अथवा खनिज पदार्थों की उपलब्धता अधिक है।
दूसरी तरफ अनेक ऐसे राज्य है जिनमें वस्तुओं का उत्पादन या निर्माण कम होता है। ये उपभोक्ता राज्य कहलाते हैं।
उत्पादक राज्य से माल दूसरे राज्य में जाता है तो वह राज्य केन्द्रीय विक्रय कर लगाता है जिसकी दर वह अधिक रखने का प्रयास करता है जिससे उसको राजस्व अधिक प्राप्त हो।
दूसरी तरफ उपभोक्ता राज्य की सरकार माल विक्रय पर VAT की दर अधिक रखेगी जिससे उस राज्य सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त हो। दोनों करों का भार उपभोक्ता पर पड़ेगा और उसे महँगी वस्तु प्राप्त होगी।
4. इनपुट कर जमा प्रदान करने में सामंजस का अभाव (Lack of cordination in providing input tax credit) : कुछ करों के सम्बन्ध में तो इनपुट कर जमा का प्रावधान ही नहीं है तथा कुछ करों में इनपुट कर जमा का प्रावधान यद्यपि है परन्तु ऐसी कर जमा केवल उसी कर के सम्बन्ध में है दूसरे कर के सम्बन्ध में नहीं है।
उदाहरण के लिए केन्द्रीय विक्रय कर के सम्बन्ध में इनपुट कर जमा का प्रावधान नहीं है। दूसरी तरफ उत्पाद शुल्क के सम्बन्ध में यद्यपि कर जमा का प्रावधान है परन्तु यह उत्पाद शुल्क के सम्बन्ध में ही है।
राज्य VAT के कर से इसकी जमा नहीं ली जा सकती है। इसी प्रकार VAT कर की इनपुट कर जमा उत्पाद शुल्क के कर से नहीं ली जा सकती है। इससे उपभोक्ता को राहत नहीं मिलती है
5. प्रशासनिक व्ययों का अधिक होना (Administrative expenses to be high): विभिन्न करों के प्रशासन के लिए अलग व्यवस्था होने के कारण सरकार के प्रशासनिक व्ययों में कमी नहीं आती है।
उदाहरण के लिए उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क का प्रशासन एक अलग बोर्ड ‘उत्पाद शुल्क एवं सीमा- शुल्क’ के केन्द्रीय बोर्ड द्वारा किया जाता है।
परन्तु बिक्री कर (VAT) का प्रशासन प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा अपने राज्य में अलग-अलग किया जाता है। इससे प्रशासनिक व्ययों का भार अधिक होता है जो अन्तिम रूप से उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ता है।
6. कर-चोरी एवं काले-धन में कोई कमी नहीं (No reduction in Tax evasion and Black Money) : कर-चोरी एवं काले धन के निर्माण की समस्या हमारे देश में काफी पुरानी है। समय-समय पर सरकार द्वारा इन समस्याओं को दूर करने के प्रयास किये गये हैं, परन्तु इस दिशा में कोई ठोस अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं।
सरकार चलाने वाले राजनेता, कर विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारी, व्यापारी एवं उपभोक्ता (जनता) कोई भी इसके प्रति गम्भीर नहीं है।
ग्राहक को अक्सर यह कहते सुना जा सकता है कि कुछ कीमत कम कर दो, हमें बिल नहीं चाहिए। इसी प्रकार कर विभाग के कर्मचारी यह कहते सुने जा सकते हैं कि सारा काम ठीक से करो” हम कहाँ जायेंगे-हमें तो हमारा हिस्सा चाहिए ही। इसी प्रकार राजनेताओं को अपने चुनावी खर्चों के लिए वसूली चाहिए तो उन्हें भी व्यापारियों को ढील देनी पड़ती है। व्यापारी अपने लाभ में वृद्धि कर लेता है। चूँकि कर प्रणाली में पारदर्शिता नहीं है, अतः चन्द अपवादों को छोड़कर अधिकांश लोग कर चोरी एवं काले धन में भागीदार बन जाते हैं
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम अर्जुन सिंह है. मै अभी बीकॉम से ग्रेजुएशन कर रहा हूं। मुझे वेबसाइट पर आर्टिकल लिखना और शेयर करना बहुत पसंद है। मुझे जितनी भी नॉलेज है वो आपके साथ हमेशा साझा करता रहूंगा। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद!