दोस्तो बिस्किट की बात हो और हमारे दिमाग में Parle G का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता। तो आज के इस लेख मे हम Parle-G Success Story in Hindi (case study of parle g in india) के बारे मे विस्तार से जानेगे |
तो चलते case study की तरफ – आजादी के पहले से ये बिस्किट हर एक इंडियन का साथी बना हुआ है। इसकी पॉपुलैरिटी का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि आज ये सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड का सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट है।
और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि पिछले 28 सालों से इस बिस्किट का प्राइज एक बार भी नहीं बढ़ा है, लेकिन फिर भी इसका रेवेन्यू जो साल दो हज़ार 13 में 5000 करोड़ था वो आज 13,000 करोड़ रुपए को क्रॉस कर चुका है।
Parle-G Success Story in Hindi
तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर Parle G बिस्किट में ऐसा क्या है? ये इतनी तेज रफ्तार से ग्रोथ करता आया है।
दोस्तों आज के इस article में हम जानेंगे पारले जी बिस्किट की हिस्ट्री और इसे सक्सेसफुल बनाने वाली कुछ कमाल की चीज़।
Parle G की शुरुआत कब हुई?
दोस्तों Parle G कंपनी की शुरुवात आज से करीब 93 साल पहले सन 1929 के दौरान मुम्बई के विले पार्ले में हुई थी।
कंपनी के फाउंडर मोहन भैय्या चौहान जी ने इसे एक कन्फेक्शनरी के रूप में शुरू किया था। दरअसल मोहन जी सेल्स के ट्रेनर थे, जिसमें कन्फेक्शनरी मेकिंग का काम जर्मनी से सीखकर आए हुए थे।
स्वदेशी आंदोलन से भारत को मिला पारले-जी बिस्कुट (Parle-G Success Story in Hindi)
ये वो समय था जब आजादी के लिए कई अलग अलग तरह के आन्दोलन चल रहे थे और तभी हमारे देश में स्वदेसी आन्दोलन भी शुरू हुआ था।
अब चूंकि मोहन जी इस प्रोडक्ट से बहुत ज्यादा प्रभावित थे इसलिए उनके मन में यह ख्याल आया कि क्यों ना कोई ऐसा काम शुरू किया जाए जो डिफरेंट होने के साथ साथ अंग्रेजों को आर्थिक रूप से चोट भी पहुंचाए।
और इस तरह उन्होने बिस्किट बनाने का फैसला किया। दरसल दोस्तों आजादी के पहले बिस्किट सिर्फ अमीर लोगों के खाने की चीज होती थी क्यूंकि भारत में मिलने वाले ज्यादातर बिस्किट इम्पोर्टेड और हद से ज्यादा महंगी होती थी।
ऐसे में मोहन जी ने ये तय किया कि वो बिस्किट का एक ऐसा स्वदेशी ब्रान्ड बनाएंगे जिसे भारत के अमीर और गरीब सभी वर्ग के लोग खा सकेंगे।
दोस्तों पारले कंपनी का पहला प्रोडक्ट एक ओरेंज कैंडी था जबकि बिस्किट बनाने का काम उन्होंने साल 1939 में शुरू किया था।
Parle-G History
उस समय मोहन जी के परिवार के सभी 12 सदस्य मिलकर उस बिस्किट फैक्ट्री को संभाल रहे थे और उनका शेड्यूल इतना ज्यादा था कि कंपनी तो उन्होने खोल लिया था |
लेकिन वो अपने ब्रांड का नाम रखना भूल गए थे। अब वो तो फैक्ट्री विले पार्ले में थी तो लोग उस बिस्किट को ऐसे ही पार्ले बोलने लगे और इसीलिए उन्होंने पार्ले ग्लूको नाम से अपने इस बिस्किट ब्रान्ड को लॉन्च कर दिया।
दोस्तों इस बिस्किट का प्राइस इतना कम रखा गया था कि उसमें गरीब से गरीब इन्सान भी इसे खरीद सकता था और सस्ता होने के साथ साथ इसकी क्वालिटी और स्वाद भी लाजवाब था।
जिसके चलते इस बिस्किट की सेल्स सिर्फ कुछ ही सालों में आसमान छूने लगी।
लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया मार्केट में ग्लूकोज बिस्किट के दूसरे ब्रांड भी अंतर करने लगे और बहुत से लोग तो पारले की नकल करके हूबहू उन्ही के जैसा बिस्किट बनाने लगे और इसके चलते लोगों को असली और नकली पहचानने में दिक्कत होने लगी।
दोस्तो ये कोई भी कंपनी नहीं चाहेगा जिसके प्रोडक्ट को दूसरी ब्रान्ड टेकओवर कर ले। उस वक्त कंपनी पैकेजिंग पर कोई खास ध्यान नहीं देते थे|
और इसी चीज का फायदा उठाकर पारले जी ने अपनी पैकेजिंग और ब्रांडिंग पर फोकस किया और इस बिस्किट को यूनीक बनाने के लिए साल 1982 में इसका नाम पारले ग्लूको से बदलकर पारले जी रख दिया।
यादव जी का मतलब लोगो से होता है। उनके ऐसा करने से लोगों के लिए पारले जी और अदा ब्राण्ड को डिफरेंट सेट करना आसान हो गया।
इसके बाद उसको पारले जी ने मार्केटिंग पर भी खूब ध्यान दिया, जिससे की साल दर साल इनकी सेल बढ़ती चली गयी।
Parle-G Revenue :
यहां तक कि साल दो हज़ार 13 में ये 5000 करोड़ का रेवेन्यु करने वाला भारत का पहला एफएमसीजी ब्रान्ड बना था।
उस तो आपको जानकर बेहद हैरानी होगी कि अर्ली नाइंटीज के दौरान पारले जी बिस्किट के एक पैकेट का प्राइस पहली बार 5 रूपये किया गया था और आज करीब ढाई साल बीत जाने के बाद भी इसके सेल पैकेट का प्राइस 5 रूपये है।
तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि कोई कंपनी भला अपने प्रोडक्ट का प्राइस इतने लंबे समय तक सेव कैसे रख सकती है? तो चलिए हम पारले जी के सक्सेस की असली वजह इसकी बिजनेस स्ट्रैटजी को जानते हैं।
नंबर वन लो प्रॉफिट मार्जिन। दोस्तों जैसा की हमने आपको बताया कि पारले जी ने अपने बिस्किट का प्राइस शुरूआत से ही बेहद कम रखा है ।
और प्राइस कम रखने का सीधा मतलब ये है कि इस प्रोडक्ट पर उनका मार्जिन काफी ज्यादा का में 10 तो कंपनी चाहती है कि अपनी कम कीमत की वजह से पारले जी भारत की हर दुकान हर घर और हर वर्ग के लोगों के बीच नजर आता रहे ।
और लोगों के जहन में ये बात हमेशा फिट रहे कि पारले जी पैसे के बदले में सबसे ज्यादा वैल्यू देने वाला बिस्किट है।
Parle-G Marketing Strategy :
वैसे तो कंपनी चाहती है कि अपनी कम कीमत की वजह से Parle G भारत की हर दुकान, हर घर और हर वर्ग के लोगों के बीच नजर आता रहे।
दरसल तो कंपनी इसे एक ड्राइवर प्रोडक्ट की तरह यूज करती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बिजनेस में ड्राइवर किसी ऐसे प्रोडक्ट या सर्विस को कहा जाता है जिन्हें सेल करने का मेन पर्पस प्रॉफिट कमाना नहीं बल्कि कंपनी की ब्रांड अवेयरनेस को बढ़ाना होता है।
लेकिन फिर सवाल यह आता है कि अगर कंपनी ने पारले जी पर प्रॉफिट ले रखा हुआ है तो फिर वह पैसे कैसे कमाती है।
दोस्तों तो पारले कंपनी के पास Parle G के अलावा और भी बहुत से प्रोडक्ट्स हैं जिनमें क्रैक, जैक, डॉन मुन्ना को और भी कई सारे प्रोडक्ट शामिल हैं।
ये सभी हाई मार्जिन प्रोडक्ट्स से तो इस तरह कंपनीअपना जो प्रॉफिट पारले जी पर नहीं कमा पाती है वो इन सभी दूसरे प्रोडक्ट्स के प्रॉफिट से अजस्ट कर लेती है।
नंबर टू कॉपी प्राइस से बट जूझती क्वांटिटी दो तो ये बात हम सभी जानते हैं कि आज के समय में रोटेरियन टेरेल का प्राइस महीनों के हिसाब से बढ़ता है।
ऐसे में ये बात किसी के गले नहीं उतरती कि कोई कंपनी 28 सालों से अपने प्रोडक्ट का प्राइस बढ़ाए बिना उसपर प्रॉफिट कैसे कमा सकती है।
असल में दोस्तों सच्चाई ये है कि पारले जी ने भी समय के साथ साथ लगातार अपने प्राइस को बढ़ाता आया है, लेकिन हम बढ़ा हुआ प्राइस देख नहीं पाते।
अगर आप 15 से 20 साल पहले बिकने वाले Parle G का पैकेट देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि उस समय 5 रूपये वाले पारले जी पैकेट का वजन 90 से 100 ग्राम तक होता था
और आज ये वजन सिर्फ 50 से 60 ग्राम के बीच यानि इतना से देखें तो Parle G भी समय के साथ महंगा हुआ है। बस फर्क इतना है कि कंपनी ने इसके प्राइस के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की है।
दोस्तों Parle G ने एक बार अपने बिस्किट का प्राइस 0.50 रूपये बढ़ा दिया था, जिससे उसकी सेल्स एकदम से नीचे आ गई थी। ऐसे में कंपनी को उसी समय समझ आ गया कि उनका प्रोडक्ट बहुत ही प्राइस सेंसिटिव है।
इसलिए उन्होंने Parle G के पैकेट का प्राइस तो 5 रूपये ही रखा, लेकिन समय के साथ बिस्किट की क्वांटिटी कम करते गए।
नंबर ट्रैक बाई रो मटेरियल शिमला रो प्राइस दो तो बिजनेस चाहे कोई भी क्यों ना हो, लेकिन रोटेरियन को सही और रीजनेबल कीमत पर खरीदा जाना बहुत ज्यादा जरूरी होता है।
कहते हैं कि रोटेरियन की खरीद में जो पैसा बचा लिया जाता है वो कंपनी के लिए सीधा सीधा नेट प्रॉफिट होता है। और Parle G की अगर बात करें तो ये कंपनी सस्ती कीमत पर रोटेरियन खरीदने के लिए पूरे भारत में फेमस है।
दअसल पारले जी अपनी रोमांटिक ऑयल की खरीददारी बहुत सोच समझ कर करती है।
जो इस चीज का खास ख्याल रखा जाता है कि मटेरियल हमेशा डारेक्ट सोर्सेस से ही खरीदा जाए जिससे कि मीडिएटर का कमीशन खत्म हो जाए और रॉ मटेरियल की खरीद में बचाए हुए पैसों की मदद से आज पारले जी अपने प्रोडक्ट्स का प्राइस इतना ही स्टेबल रख पाता है। नंबर को आपरेशनल इफिशिएंसी।
दोस्तों अगर किसी प्रोडक्ट का प्राइस लो और उसका प्रॉफिट मार्जिन बढ़ाना हो तो कंपनी के लिए ये बहुत जरुरी होता है कि उसकी प्रोडक्शन लाइन एफिशियंट हो क्योंकि अगर प्रोडक्शन लाइन एफिशियंट नहीं होगी तो प्रोडक्ट का मैनुफैक्चरिंग कॉस्ट बढ़ेगा और जब मैनुफैक्चरिंग कॉस्ट बढ़ेगा तो कंपनी को प्रोडक्ट का प्राइस भी बढ़ाना पड़ेगा।
दोस्तों ज्यादातर कंपनीज़ इस चीज पर कोई खास ध्यान नहीं देती है। लेकिन Parle G के प्रोडक्शन लाइन को मार्केट में मिसाल दी जाती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पारले जी के 115 टन बिस्किट बनाने में सिर्फ एक परसेंट वेस्टेज होता है और साथ ही पारले जी के इम्प्लॉइज का प्रोडक्टिविटी लेवल भी काफी ज्यादा है
क्योंकि उन्होंने इस पूरे प्रोसेस को इतने बेहतरीन ढंग से सेट किया है कि कंपनी में काम करने वाला कोई भी इम्प्लाई समय बर्बाद नहीं कर सकता है। नंबर मिनिमम कोर्स और पैकेजिंग।
दोस्तों Parle G को जब ये रियलाइज हुआ क्योंकि कस्टमर बहुत ही ज्यादा प्राइस रेंज में तो उन्होंने ब्रांडिंग और पैकेजिंग जैसी चीजों के खर्च को जितना हो सकता था उतना कम कर दिया।
यही वजह कि पहले जहां Parle G बिस्किट वैक्स पेपर्स की पैकेजिंग में आते थे आज वो लोग प्लास्टिक पैकेजिंग में दिखाई देते हैं।
आपने खुद ही गौर किया होगा कि दूसरे ब्रांड की तुलना में पारले जी बिस्किट की पैकेजिंग चीप होते हैं। नंबर सिक्स स्ट्रैटजिक लोकेशन ऑफ फैक्ट्रीज।
दोस्तों आज Parle G के लो प्राइस का एक आम रीजन उसके फैक्ट्री की लोकेशंस भी है। दरअसल जितनी भी जगहों से डिस्ट्रीब्यूशन के एक बड़े हिस्से को कवर किया जा सकता था। Parle G ने उन सभी जगहों पर अपनी फैक्ट्री लगाई हुई है।
यही वजह की आज हमें मुम्बई, कर्नाटक, राजस्थान और हरियाणा जैसे कई जगहों पर पारले जी की फैक्ट्री दिखाई देती है।
दोस्तों फैक्ट्री के इन स्ट्रैटजिक लोकेशंस का फायदा ये होता है कि इससे डिस्ट्रीब्यूशन में आने वाले लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग जैसी कॉस्ट काफी हद तक कम हो जाती है।
सभी प्रोडक्ट्स की सप्लाई तेज होने से इनवेंटरी और फंड्स का रोटेशन भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है। नंबर वन डिफरेंट प्राइस वेरियंट्स।
FAQ : Parle-G Success Story in Hindi
Q 1. Parle G की शुरुआत कब हुई?
Ans. ParleG कंपनी की शुरुवात आज से करीब 93 साल पहले सन 1929 के दौरान मुम्बई के विले पार्ले में हुई थी|
Q 2. पारले कंपनी का मालिक कौन है?
Ans. कंपनी के फाउंडर मोहन भैय्या चौहान जी है |
Q 3. Parle G कितने रुपए का आता है?
Ans. Parle G 5 रूपये का आता है |
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम अर्जुन सिंह है. मै अभी बीकॉम से ग्रेजुएशन कर रहा हूं। मुझे वेबसाइट पर आर्टिकल लिखना और शेयर करना बहुत पसंद है। मुझे जितनी भी नॉलेज है वो आपके साथ हमेशा साझा करता रहूंगा। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद!
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