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Open Savings Account for Minor Online |
बैंक ग्राहक कई प्रकार के हो सकते हैं। सामान्यतः कोई भी व्यक्ति या संस्था अथवा व्यक्तियों का समूह जो प्रसंविदा करने के लिये कानूनी रूप से सक्षम हो तथा विधिसम्मत ढंग से बैंक में अपना खाता खोलने के लिये आवेदन करे और बैंक की शर्तों को मानने को तत्पर हो तो बैंक का ग्राहक बन सकता है। कभी-कभी बैंक ऐसे व्यक्तियों को भी अपना ग्राहक बना लेता है जो कानूनी रूप से सक्षम नहीं हैं किन्तु उनके हितों के रक्षार्थ कानून ऐसी इजाजत देता हो। विभिन्न प्रकार के बैंक ग्राहकों को संक्षिप्त रूप में तालिका द्वारा बताया जा सकता है।
बैंक के ग्राहक वे सब व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह या संस्थाएँ होती हैं जो बैंक में खाता खोलते हैं, किन्तु बैंक एवं ग्राहकों के व्यावसायिक सम्बन्धों में बैंक को बड़ी सावधानी रखनी पड़ती है। चूंकि बैंक में खाता खोलने के साथ ही बैंक और ग्राहक के बीच प्रसंविदा की स्थिति उत्पन्न होती है और भारतीय प्रसंविदा अधिनियम की धारा 11 के अन्तर्गत ग्राहक में प्रसंविदा करने की वैधानिक सक्षमता जरूरी है अर्थात् ग्राहक जो बैंक में खाता खोलता है वह वयस्क हो, स्वस्थ मस्तिष्क वाला हो तथा वह वैधानिक अयोग्यताओं से मुक्त हो |
नाबालिग या अवयस्क ग्राहक से अभिप्राय बैंक के उस ग्राहक से है जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है अथवा वयस्कता प्राप्ति से पूर्व यदि कोर्ट ऑफ वार्डस द्वारा संरक्षक नियुक्त किया गया हो तो ऐसे व्यक्ति की आयु 21 वर्ष से कम है। इंग्लैण्ड के कानून के अनुसार 21 वर्ष से कम आयु वाला व्यक्ति अवयस्क माना जाता है ।
यद्यपि भारतीय प्रसंविदा अधिनियम की धारा 11 के अनुसार अवयस्क को प्रसंविदा करने के योग्य नहीं माना जाता, किन्तु राघवाचारियर V/s. श्री निवास विवाद, 1917 में मद्रास उच्च न्यायालय ने अवयस्क के पक्ष में किया गया बन्धक (Mortgage) प्रवर्तनीय माना है। प्रसंविदा अधिनियम की धारा 68 के अनुसार अवयस्क की सम्पत्ति उसको उपलब्ध जीवनरक्षक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उत्तरदायी है। अन्य दशाओं में दिये गये ऋण अथवा अन्य कार्यों के लिये वह स्वयं व्यक्तिगत रूप में उत्तरदायी नहीं माना जाता। चूंकि अवयस्क को उपरोक्त अधिनियम के अन्तर्गत कोई अनुबन्ध करने का अधिकार नहीं है अतः नाबालिग के विरुद्ध किसी भी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही (Legal Proceedings) सम्भव नहीं होती।
नाबालिग या अवयस्क का खाता (Minor’s Account) – बैंकों द्वारा प्रायः नाबालिग (अवयस्क) को बचत खाता (Saving Account) खोलने का अधिकार दिया जाता है किन्तु उसे चालू खाता (Current Account) खोलने का अधिकार व इजाजत नहीं है केवल विशेष परिस्थितियों में ही बैंक नाबालिग को चालू खाता खोलने की अनुमति दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में बैंक को विशेष सावधानी रखनी चाहिये क्योंकि चालू खाते में अधिविकर्ष (Overdraft) अथवा ऋण प्रदान करने के बाद ऋण वसूली पर नाबालिग के विरुद्ध न्यायालय में कोई वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। नाबालिग के पक्ष में सावधि खाता (Fixed Deposit Account) भी खोला जा सकता है पर वह भी केवल उसके हितार्थ ही रहेगा-
नाबालिग का बचत खाता (Saving Account) –
अवयस्क अथवा नाबालिग का बचत खाता खोलते समय बैंकों द्वारा उन्हें दो भागों में बांटा गया है—
(i) 10 वर्ष से कम आयु वाले नाबालिग –
10 वर्ष से कम आयु वाले नाबालिग व्यक्तियों का बचत खाता उसके सहज अभिभावक (Natural Guardian) अथवा न्योयालय द्वारा मनोनीत अभिभावक के साथ खोला जा सकता है जिसमें खाता परिचालन का अधिकार अभिभावक को ही होता है। भारतीय हिन्दू अवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 (Indian Hindu Minority and Guardianship Act, 1956) के अन्तर्गत नाबालिग का स्वाभाविक अभिभावक उसका पिता (father) होता है और पिता की मृत्यु के बाद उसकी माता (mother) को स्वाभाविक अभिभावक माना जाता है किन्तु मुस्लिम एक्ट के अनुसार नाबालिग का स्वाभाविक अभिभावक उसका पिता तथा पिता की मृत्यु के बाद पिता द्वारा लिखित वसीयत में मनोनीत व्यक्ति अथवा पिता के पिता अथवा न्यायालय द्वारा मनोनीत व्यक्ति को नाबालिग का स्वाभाविक अभिभावक माना जाता है। अतः अवयस्क के खाते का परिचालन उसके स्वाभाविक अभिभावक द्वारा ही किया जा सकता है। पर न्यायालय द्वारा मनोनीत अभिभावक को अवयस्क के खाता परिचालन का अधिकार नहीं होता।
(ii) 10 वर्ष की आयु पूर्ण करने अथवा उससे अधिक आयु वाले अवयस्क (नाबालिग को अपने नाम से बैंक में बचत खाता खोलने तथा उसके परिपालन का अधिकार दिया गया है। कुछ बैंकों ने जमा शेष की अधिकतम राशि 50 हजार रु. तथा बचत खाता से राशि निकालने की एक बार में अधिकतम राशि दस हजार रु. की सीमा निर्धारित कर रखी है। ऐसे नाबालिग के लिये सावधि जमा (Time Deposit) की कोई सीमा नहीं है किन्तु बैंकों को इस खाते के विरुद्ध ऋण देने तथा देय तिथि (Due Date) से पूर्व भुगतान करने की मनाही है।
अवयस्क के खाता खोलने में सावधानियां
(Precautions in Opening Minor’s Account)
अतः नाबालिग के बचत खाता एवं सावधि खाता खोलते समय बैंक को निम्नांकित सावधानियां रखनी चाहिये-
(1) नाबालिग की जन्मतिथि (Date of Birth) को लिखवाना तथा उसकी सत्यता की जांच जरूरी है।
(2) नाबालिग के बालिग होने अथवा 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर खाते के परिचालन हेतु अभिभावक अथवा अभिभावक की अनुपस्थिति में बैंक के किसी ग्राहक से उसके हस्ताक्षर प्रमाणित करा लेना जरूरी है।
(3) अभिभावक की मृत्यु हो जाने की स्थिति में खाते का रुपया नाबालिग के बालिग (major) हो जाने पर अथवा न्यायालय द्वारा मनोनीत अभिभावक को नाबालिग
की देखरेख हेतु दिया जा सकता है। नाबालिग की मृत्यु हो जाने पर उसके खाते की रकम अभिभावक को दी जा सकती है।
(4) अवयस्क को ऋण – बचत खाते में अवयस्क को ऋण नहीं देना उचित है।
क्योंकि कुछ वैधानिक अपवादों को छोड़, बैंक ऋण के लिये उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता ।
(5) अवयस्क द्वारा लेखपत्रों पर हस्तान्तरण एवं परिक्रमण (Transfer and Endorsement) के लिये उसे उत्तरदायी नहीं माना जा सकता, अतः सावधानी जरूरी है।
(6) भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 30 के अन्तर्गत अवयस्क व्यक्ति को फर्म के लाभ के लिये साझेदार बनाया जा सकता है पर फर्म के ऋणों के लिये उसे व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, अतः साझेदारी फर्म के खाता खोलने एवं परिचालन में सावधानी जरूरी है।
(7) नाबालिग द्वारा ऋण की गारन्टी देने की स्थिति में वैधता के अभाव में बैंक को गारन्टर (Guarantor) के विरुद्ध कोई अधिकार नहीं है अतः नाबालिग की गारन्टी नहीं लेनी चाहिये।
(8) नाबालिग एजेन्ट नियुक्त हो सकता है किन्तु उसके कार्यों के लिए प्रधान (Principal) ही उत्तरदायी होता है नाबालिग नहीं, अतः सावधानी जरूरी है |
विनिमय साध्य लेख-पत्रों पर अवयस्क के हस्ताक्षर –
यद्यपि भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 26 के अन्तर्गत नाबालिग व्यक्ति को लेख-पत्रों के लेखन, बेचान, सुपुर्दगी तथा पृष्ठांकन का अधिकार है और वह अपने अतिरिक्त अन्य सभी पक्षों को उत्तरदायी बना सकता है। स्पष्ट है कि नाबालिग का स्वयं का कोई उत्तरदायित्व नहीं है। किन्तु यदि उपरोक्त कार्य उसकी अवयस्कता के समय हो, पर उसकी स्वीकृति वयस्कता प्राप्ति के बाद दी गई हो तो उसे उत्तरदायी ठहराना संभव है।
अवयस्क द्वारा आयु के बारे में मिथ्या-वर्णन (Wrong Statement About Age) – अगर कोई इकरार करते समय अवयस्क अपनी आयु का मिथ्या-वर्णन करता है, उदाहरणार्थ — बैंक से ऋण लेते समय अपनी आयु 18 वर्ष से अधिक बता देता है और ऋण ले लेता है। अगर ऋण लेने के बाद अवयस्कता (नाबालिग होने के आधार पर ऋण चुकाने से मना कर दे तो भी न्यायालय इस मिथ्या आयु वर्णन के बावजूद नाबालिग की रक्षा करेंगे। लेसली लि. V/s शील विवाद में ब्रिटिश न्यायालय ने अवयस्क को उत्तरदायी नहीं माना। भारत में भी अयोध्या प्रसाद V/s चन्दनलाल विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तथा टिक्कीलाल V/s कमलचन्द विवाद में नागपुर उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट निर्णय दिया कि झूठी आयु बताकर नाबालिग द्वारा प्राप्त ऋण की वसूली का अधिकार ऋणदाता को नहीं है |
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